फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे
Mar 14, 2021
जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे…
‘लोग तो धोखा ही देते हैं, हर किसी को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना काम और अपना फ़ायदा नज़र आता है। आप मानो या ना मानो दुनिया मतलबी हो गई है। जिसको देखो अपना उल्लू सीधा करने में लगा है।’ मित्र के घर के दरवाज़े में घुसते ही मेरा स्वागत इस ही तरह के कई और शब्दों के साथ हुआ। मैं समझ गया कि आज मामला कुछ गड़बड़ है। आमतौर पर जब कभी मित्र या उनके परिवार में कुछ भी उनके मन माफ़िक़ नहीं होता है तो वे इसी तरह के नकारात्मक विचारों की बौछार शुरू कर देते है।
मैं दरवाज़े को खटखटाते हुए मुस्कुराहट के साथ अंदर पहुँचा। सभी का अभिवादन करने के पश्चात मैंने मित्र से कहा, यार क्या हो गया जो इतने ग़ुस्से में नज़र आ रहा है। मित्र ने जवाब दिया, ‘अरे यार कुछ नहीं तुझे तो पता ही है कोरोना के बाद से ही धंधे की वाट लगी हुई है और ऊपर से अधिकारियों का रोना अलग। लोग पेमेंट समय पर दे नहीं रहे हैं, यह सब अपनी जगह चल रहा था। लेकिन आज अपने शर्मा जी ने भी एक तारीख़ से नौकरी छोड़ने का कह दिया है। जब आए थे तब कुछ नहीं आता था, सब कुछ अपने यहाँ सीखा और अब जब सीख गए तो थोड़े से लालच में चल दिए।’
मैंने मित्र से पूछा, ‘क्या उन्होंने तुम्हारे साथ कोई धोखाधड़ी करी है?’ उसने नहीं में जवाब दिया। मैंने फिर पूछा, ‘तो फिर कुछ और गलती या गलत व्यवहार किया है क्या उन्होंने?’ तो वे बोले, ‘नहीं यार, ऐसा भी कुछ नहीं।’ मुझे मित्र का जवाब सुनकर थोड़ा अचरज हुआ। मैंने उससे कहा, ‘भाई वो अपने जीवन के बीस साल तुम्हारे साथ ईमानदारी से काम करके जाने का कह रहे हैं। उनकी अपनी भी प्राथमिकताएँ और जिम्मेदारियाँ हो सकती हैं। मेरे अनुसार तुम्हें उनसे एक बार चर्चा करके सही कारण का आकलन करना चाहिए और अगर उनकी सही समस्या समझ में आएँ तो यथाशक्ति उन्हें दूर करने का प्रयास करो या उन्हें दूर करने में उनकी मदद करो। कुछ नहीं तो अपने अनुभव से उन्हें सही रास्ता दिखाओ। अगर इसके बाद भी बात ना बने या तुम उनकी समस्या का हल निकालने में सक्षम ना हो तो तुम्हें उन्हें स-सम्मान विदा करना चाहिए।
मेरा इतना कहते ही मित्र थोड़ा सा चिढ़ गए और बोले, ‘तू सबको अपने जैसा मत समझ, दुनिया एकदम चंट और चालक है। अपना उल्लू सीधा होते ही ठेंगा दिखा देती है। मुझे मित्र का ये नकारात्मक रवैया बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था, जब तक शर्मा जी उनके साथ, उनके अनुसार काम कर रहे थे तब तक सब ठीक था लेकिन आज जब वे नौकरी छोड़ रहे हैं तो उनमें जमाने की बुराइयाँ नज़र आ रही है। मैंने उन्हें एक छोटी सी कहानी सुनाई-
एक बार गाँव के चौपाल पर बहुत सारे लोग एक कार्यक्रम के लिए इकट्ठा हुए। कार्यक्रम शुरू होने में थोड़ी देर थी इसलिए लोगों ने आपस में चर्चा करना शुरू कर दिया। कुछ लोग भगवान को सभी को अलग-अलग संसाधन देने के लिए कोसने लगे, भला बुरा कहने लगे। उस समूह के पास एक साधु-महात्मा बैठे हुए थे, उन्हें लोगों की बात पसंद नहीं आयी, उन्होंने लोगों को समझाने का प्रयत्न करा और कहा, ‘जैसा तुम सोचते हो वैसा भगवान तुम्हारे साथ करता है।’ पर कोई उनकी बात मानने के लिए तैयार ही नहीं था। कार्यक्रम के बाद महात्मा जी ने सभी लोगों को लिया और खेत पर ले गए।
उस खेत पर बहुत सुंदर गुलाब लहलहा रहे थे, वहीं उसके पास के खेत पर तम्बाकू उगा हुआ था। गुलाब के पौधों वाले खेत से ख़ुशबू उठ रही थी वहीं तम्बाकू वाले खेत से बदबू। महात्मा जी नीचे झुके और तम्बाकू वाले खेत से मिट्टी उठा कर बोले, ‘यह ज़मीन बहुत बुरी है, लोगों के साथ पक्षपात करती है। देखो इधर इसने गुलाब उगा कर ख़ुशबू दे दी और इधर तम्बाकू उगाकर बदबू। देख लिया ना इसका पक्षपात पूर्ण रवैया?’ महात्मा की बात सुन गाँव वाले बोले, ‘नहीं-नहीं यह पक्षपात पूर्ण रवैया बिलकुल नहीं है। जिस खेत के मालिक ने जिस चीज़ के बीज बोए वह उसी की फसल पा रहा है। अर्थात् जिसने गुलाब बोया था उसे गुलाब मिला और जिसने तम्बाकू बोया था उसे तम्बाकू।
मैंने कहानी को वहीं छोड़ दिया और मित्र से कहा, ‘देखो भगवान की बनाई हुई यह सृष्टि भी एक प्रकार का खेत ही है। उसमें तुम कर्मों या विचारों के जो बीज बोते हो, वही फसल की भाँति कई गुना बढ़कर तुम्हारे पास लौटकर आते हैं। शर्मा जी का ही उदाहरण ले लो, तुम्हारा यह व्यवहार देखकर उनके मन में क्या चल रहा होगा, सोचकर देखो। मुझे लगता है वे अभी सोच रहे होंगे, ‘मैंने इस मतलबी के लिए अपने जीवन के महत्वपूर्ण बीस वर्ष गँवा दिए? इन्हें तो कभी भी मेरी बढ़ती हुई ज़िम्मेदारियों और ज़रूरतों का एहसास ही नहीं होता। अच्छा हुआ जो मैंने इसे छोड़ने का निर्णय ले लिया।’ मेरी बात सुन मित्र एकदम अवाक थे। मैंने भी इस बात को वहीं छोड़ा और परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने के लिए अंदर चला गया। याद रखिएगा दोस्तों, जिस तरह आपकी दुकान या फ़ैक्टरी, उसका सामान या मशीनरी आपके ऐसेट होते हैं ठीक उसी तरह अच्छा मानव संसाधन भी आपके व्यापार के लिए ऐसेट ही होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com