फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
हार का भी मनाएँ जश्न
Aug 7, 2021
हार का भी मनाएँ जश्न!!!
ज़िंदगी के पूरे मज़े लूटना है तो हार का भी जीत के समान जश्न बनाना सीखना होगा। जी हाँ दोस्तों, आप सभी को मेरी बात थोड़ी अटपटी लग रही होगी क्यूँकि यह हमारी आम धारणा के ख़िलाफ़ है। आमतौर पर हार तनाव, दबाव व नकारात्मक भाव
लाकर हमारे जीवन में पूर्व में मिली अनगिनत जीतों की ख़ुशी हमसे छीन लेती हैं। फिर सवाल आता है इसका जश्न कैसे बनाया जा सकता है? तो मेरा जवाब है, ‘बिलकुल एक बच्चे की तरह।’ जी हाँ, यह बिलकुल सम्भव है, चलिए मैं इसे एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ-
हर वर्ष की तरह इस बार भी गर्मियों की छुट्टी में राज पूर्व में बनाए गए प्रोग्राम के अनुसार परिवार के साथ केरल घूमने गया। केरल में एक दिन वे समुद्री तट पर घूमने गए। राज का छोटा बेटा, पहली बार समुद्र को देख बहुत ज़्यादा उत्साहित था। काफ़ी देर तक समुद्री लहरों के साथ खेलने के बाद उसका ध्यान वहाँ फैली हुई ढेर सारी रेत, प्लास्टिक की कुछ ख़ाली बोतलों व रेत पर बनाई कलाकृतियों पर गया।
उस प्यारे से छोटे बच्चे ने भी रेत और ख़ाली बोतलों को इकट्ठा कर महल बनाना शुरू कर दिया। कई घंटों की कड़ी मेहनत के बाद उस छोटे से वास्तुकार ने रेत से एक प्यारा सा महल, ख़ाली बोतलों के ऊपरी हिस्से से महल के बुर्ज, टॉवर और संतरी बनाए। साथ ही लोगों द्वारा फेंकी गई आईसक्रीम स्टिक की मदद से उसने एक बहुत सुंदर पुल और महल तक जाने का रास्ता बनाया।
इस बच्चे ने बड़ी मेहनत, एकाग्रता और दृढ़ता के साथ इस भव्य महल को आकार दिया। अपने सपनों की सुंदर दुनिया बनाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसे बनाते समय उसे ना तो भूख का एहसास था और ना ही धूप की तपन महसूस हो रही थी। अपनी मेहनत को यूँ साकार होता देख बच्चा ख़ुशी के मारे उछल रहा था, अपने परिवार के सभी सदस्यों को बुला-बुला कर उसे दिखा रहा था।
दोस्तों ठीक इसी तरह तो हम सभी लोग अपने कार्य करते हैं। सबसे पहले एक सपना देखना, फिर काग़ज़ पर उसे पूरा करने के लिए योजना बनाना। उसके बाद बड़ी मेहनत, दृढ़ता और कई समझौतों के साथ, बिना दिन-रात देखे, परिवार से दूर रहकर अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलने का प्रयास करना, और फिर हम उन्हें पूरा होता हुआ देख खुश होते है। लेकिन उस बच्चे और हम बड़ों के नज़रिए में सारा परिवर्तन इसके बाद आता है।
वह बच्चा ज्वार की वजह से उठने वाली बड़ी-बड़ी लहरों को देखने के लिए अपने पिता से ज़िद करके समुद्र किनारे रुकता है। जब भी कोई ऊँची, बड़ी लहर किनारे की ओर आती है वह ख़ुशी से ताली बजाने, जोर से चिल्लाने लगता है, जबकि उसे पता है यह लहर उसकी दिन भर की मेहनत पर पानी फेर जाएगी, उसके सपनों के महल को साथ बहाकर ले जाएगी। इसके ठीक विपरीत हम सभी बड़ों को भी पता होता है कि जीवन में विपरीत समय कभी भी आ सकता है। कभी भी हमारे खेल का अंत हो सकता है लेकिन हम जानते-बुझते भी उसकी उपेक्षा करते है।
दोस्तों मुझे तो कई बार ऐसा लगता है जैसे हम पढ़े-लिखे, अनुभवी लोगों के मुक़ाबले बच्चे अधिक बुद्धिमान है क्यूँकि उन्हें अच्छे और सफल जीवन को जीने का राज पता है। इसे आप दोनों के व्यवहार को देखकर समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए जैसे ही बढ़ती उम्र की लहर या किसी भी रूप में असफलता हमारे साम्राज्य को खत्म करने के लिए हमारी ओर आती हुई दिखती है, हम घबरा जाते हैं। रेत सी फिसलती अपनी ज़िंदगी या यूँ कहूँ अपने बनाए महल को बचाने के लिए तमाम तरीक़े अपनाने लगते हैं। जबकि हमें पता है इस जीवन का, जीवन में घटने वाली तमाम घटनाओं का, जीवन में मिले तमाम तमग़ों का असली मालिक कोई ओर है।
हमारी प्रतिक्रिया के विपरीत बच्चा अपनी मेहनत को यूँ खत्म होता देख भी दुखी नहीं होता, उसके मन में किसी प्रकार का डर नहीं रहता, किसी प्रकार का कोई पछतावा नहीं होता। वह हैरान नहीं होता क्यूँकि वह जानता था कि ऐसा ही होगा। वह मुस्कुराता है, अपने औज़ार (खिलौने) उठाता है और फिर से अपने माता-पिता का हाथ पकड़ नए सपनों के सृजन में लग जाता है। इसलिए दोस्तों अगर वाक़ई अपने जीवन को सौ प्रतिशत जीना चाहते हैं तो जीवन में जीत के समान ही हार को स्वीकारना शुरू करें क्यूँकि हार को स्वीकारते ही आप फिर से नए लक्ष्यों को पाने की दिशा में अपने कदम बढ़ा सकते हैं, नए सपनों का निर्माण कर सकते हैं। याद रखें, असफलता मिलने पर हमें उसे बच्चे की तरह स्वीकारना होगा और एक बार फिर से बच्चे के दिल के साथ निर्माण करना होगा। जी हाँ दोस्तों, जीवन ऐसे ही चलता है, उसकी प्रक्रिया को सलाम करने और हमेशा मुस्कुराने में ही जीवन का सार छुपा हुआ है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर