दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
क्या अब प्लास्टिक की महामारी आने वाली है
Aug. 4, 2021
क्या अब प्लास्टिक की महामारी आने वाली है?
सोमवार सुबह जब मैं रायपुर एयरपोर्ट पर उतरा, मैंने अपनी प्लास्टिक शील्ड उतारकर एक बड़े ड्रम में फेंकी, जो इसी काम के लिए रखा था। फिर मैं अपने मित्र का इंतजार करने लगा। वे करीब 90 यात्रियों के मेरे सामने से गुजरने के बाद आए। जब उन्होंने प्लास्टिक शील्ड फेंकी, ड्रम भर चुका था। सिक्योरिटी ने और ड्रम मंगाए। मुंबई में शील्ड मिलने पर भी यही दृश्य था। शील्ड प्लास्टिक की तीन परतों में पैक थी, जिन्हें निकालना पड़ता है। हम सोच रहे थे कि महामारी के बाद हमने कितना प्लास्टिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
थोड़ी-बहुत रिसर्च कर हमने पाया कि ‘एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 के बाद दुनिया में इतने प्लास्टिक मास्क और ग्लव्स बने, जिनसे पूरा स्विट्जरलैंड ढंक सकते हैं। पीपीई किट के कुप्रबंधन के अलावा हर महीने हम 129 अरब फेस मास्क और 65 अरब ग्लव्स दुनियाभर में इस्तेमाल कर रहे हैं। ग्रांडव्यू रिसर्च के मुताबिक वैश्विक प्लास्टिक रेजिन मार्केट की कीमत 2020 में 711 अरब डॉलर आंकी गई थी और 2021 से 2028 के बीच इसके 4.2% की चक्रवृद्धि दर से बढ़ने की संभावना है।
नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉसफिअर एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक इंसानों ने 2010 के बाद से 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक समंदर में फेंका है। यह प्रतिमिनट एक ट्रक कचरा फेंकने के बराबर है।
मैं वर्षों से प्लास्टिक रिसायकिलिंग पर लिख रहा हूं। प्लास्टिक तेल और प्राकृतिक गैस से बनता है। हमेशा से ही स्वच्छ ऊर्जा पर जाने का दवाब रहा है। पर्यावरण के लिए जागरूक कई कंपनियां पेट्रोलियम से बने प्लास्टिक की जगह पेड़-पौधों से बने प्लास्टिक जैसे उत्पाद बना रही हैं, लेकिन इनका उत्पादन महंगा है। यह अस्पष्ट है कि क्या वे ग्राहकों से ज्यादा कीमत वसूलेंगी या अपना लाभ कम करेंगी।
स्वाभाविक है कि समाधान प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना और इसके निपटान के नए तरीके तलाशना है। जैसा कि बिनिश देसाई ने किया, जिनके बारे में मुझे हाल ही में पता चला। वे फेंके गए फेस मास्क से ईंट बना रहे हैं। उन्हें भारत का रिसायकिल मैन कहते हैं। उनकी खोज ब्रिक 2.0 ऐसे समय आई है जब दुनियाभर में प्लास्टिक संकट तेजी से बढ़ा है। मार्च 2020 में लॉकडाउन के बाद सभी ने वॉट्सएप पर वीडियो शेयर किए थे कि कैसे जानवर सड़क पर बैठे हैं और कैसे लॉकडाउन से प्रदूषण घटाने में मदद मिली है। लेकिन देसाई ने पीपीई सूट और मास्क की बढ़ती मांग से भविष्य की उभरती तस्वीर देखी।
इसलिए 27 वर्षीय देसाई ने खुद को घर की लैब में झोंक दिया, जिसे उन्होंने दस वर्ष की उम्र में बनाया था। उन्होंने मास्क में इस्तेमाल हो रहे मटेरियल का अध्ययन किया। फिर परिवार से इस्तेमाल हो चुके मास्क इकट्ठे कर उन्हें दो दिन के लिए डिस्इंफेक्टेंट की बाल्टी में डाल दिया। चूंकि मास्क नॉन-वूवन फाइबर से बनते हैं इसलिए उन्होंने अपनी लैब में बना ‘स्पेशल बाइंडर’ मिलाया।
गुजरात के इको-एक्लेक्टिक टेक्नोलॉजीज के संस्थापक बिनिश का ध्यान हमेशा वेस्ट मटेरियल की रिसायकिलिंग पर रहा है, जिसमें 108 प्रकार के वेस्ट (ज्वेलरी यूनिट, टेक्सटाइल स्क्रैप, पेपर सरप्लस, कॉफी वेस्ट आदि) शामिल हैं, जिनसे वे दीवार, एकाउस्टिक पैनल, पेवर ब्लाक, होम डेकोर जैसे करीब 180 उत्पाद बनाते हैं। नया वैरिएंट ‘ब्रिक 2.0’ ज्यादा टिकाऊ, पारंपरिक ईंट से तीन गुना मजबूत और दोगुना बड़ा तथा आधी कीमत का है।
फंडा यह है कि दुनिया के लिए प्लास्टिक अगला कोविड साबित हो सकता है। हमें मिलकर पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ना होगा।