Nov 4, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
कुछ दिन पूर्व मध्यप्रदेश के एक शहर रतलाम में सेंट जोसेफ़ कॉन्वेंट स्कूल द्वारा आयोजित ‘मदर्स स्पेशल मीट’ में सकारात्मक पेरेंटिंग विषय पर सम्बोधन देने का मौक़ा मिला। सेमिनार के पश्चात एक महिला मेरे पास आई और बोली, ‘सर, मेरा बच्चा दूसरे बच्चों से बहुत ज़्यादा तुलना करता है। वह अक्सर बोलता है, ‘देखो फ़लाँ बच्चा तो यह करता है, लेकिन मैं नहीं कर पाता…’ या ‘मम्मी, मैं तो रेस में कभी फ़र्स्ट आ ही नहीं पाऊँगा क्यूँकि राजू बहुत तेज दौड़ता है…’ आदि। इतना ही नहीं दूसरे बच्चों द्वारा इन बातों पर चिढ़ाने के कारण अब तो वह कई बार स्कूल जाने के लिए, खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए तैयार ही नहीं होता है।’
महिला की बात सुन मैं मुस्कुराया क्यूँकि मेरा मानना है बच्चे के चरित्र का निर्माण लालन-पालन की हमारी शैली से ही होता है। अगर आपको बच्चे के चरित्र या आदतों में कोई ग़लत बात नज़र आ रही है तो सबसे पहले हमें अपनी शैली को ही बारीकी से देखना होगा कि कहीं हम ही तो जाने-अनजाने में कोई ऐसी गलती नहीं कर रहे हैं जो इस समस्या की मूल जड़ हो। जैसे, अपनी सुविधा के लिए पहले हम बच्चे के हाथ में मोबाइल देते हैं और जब उसको आदत लग जाती है तो परेशान होते हैं।
ख़ैर, प्रश्न सुन मैंने उन महिला से कहा, ‘आपके प्रश्न का जवाब मैं आपको ऑस्ट्रेलिया और उसके आसपास के द्वीपों में रहने वाली कैसोवरी चिड़िया की कहानी से बताने का प्रयास करता हूँ।’ बात कई साल पुरानी है, एक दिन अत्यधिक वज़नी और विशालकाय कैसोवरी चिड़िया बहुत परेशान और चिंतित हाल में जंगल में नीम के पेड़ के नीचे घूम रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह किसी बहुत ही बड़ी दुविधा में थी।
कैसोवरी को परेशान देख नीम के पेड़ ने उससे पूछा, ‘चिड़िया रानी, आज तुम इतनी परेशान क्यूँ लग रही हो?’ कैसोवरी ने एकदम निराशा भरे स्वर में जवाब दिया, ‘क्या बताऊँ नीम भैया!, मैं तो इस जीवन और जंगल से परेशान हो गई हूँ। मैंने इस जंगल को अब हमेशा के लिए छोड़ने का निर्णय लिया है।’ कैसोवरी की बात सुन नीम ने उससे इसकी वजह पूछी तो उसने बताया कि जंगल में रहने वाली अन्य चिड़िया उसे उड़ ना पाने की वजह से बहुत चिढ़ाती हैं। वे कहती हैं, ‘अगर तुम उड़ना नहीं जानती हो, तो चिड़िया कैसे हुई?’ कभी-कभी तो वे मुझे चिढ़ाते हुए कहती हैं, ‘कभी तो तुम हमारे पास भी आकर पेड़ की डाली पर बैठो, आसमान में ऊँचा उड़कर देखो, यह जहां कितना सुंदर है।’ या फिर वे मेरे खान-पान के तरीके पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहती हैं, ‘क्या जानवरों की तरह चरती रहती हो। कभी तो हमारे साथ दाना चुगने चलो।’ आदि। वे सब किसी ना किसी बहाने से मेरी हंसी उड़ाती हैं, जबकि वे सब जानती हैं कि उड़ना या पेड़ों की शाख़ पर बैठना मेरे लिए सम्भव नहीं है।’ इसके बाद कैसोवरी चिड़िया उदासी से आसमान की ओर देखते हुए बोली, ‘अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ? किसी भी चीज़ को सहने की एक सीमा होती है और अब यह बातें वह सीमा पार कर चुकी हैं। मैं तो कई बार ईश्वर से भी पूछ चुकी हूँ कि अगर मुझे उड़ने की क़ाबिलियत नहीं देना थी तो फिर मुझे चिड़िया क्यूँ बनाया? अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रहना चाहती। मैं इस जंगल को हमेशा के लिए छोड़कर जा रही हूँ।’
कैसोवेरी चिड़िया और नीम के पेड़ की बात सुन, पीपल का पेड़ बड़ी भारी आवाज़ में बीच में ही बोला, ‘कैसोवेरी बहन!, तुम कहाँ इन नादान चिड़ियों की बातों में आ गई। अपनी सही क़ीमत जानना चाहती हो तो हम पेड़ों से अपने बारे में पूछो। आज यह जंगल जो इतना घना और फैला हुआ है, वह सब तुम्हारी वजह से हुआ है। तुमने ही हमारे बीजों को दूर-दूर तक फैलाया है। यह चिड़िया जो तुम्हें चिड़ा रही हैं, इन्हें पता ही नहीं है कि जिस पेड पर इनका घोंसला है वह तुम्हारी वजह से ही उगा है। तुम अपनी मज़बूत चोंच से फलों को अंदर तक खाती हो जिसकी वजह से हमारे बीज पूरे जंगल में बिखर जाते हैं और नए पेड़ों का रूप ले लेते हैं। हम पेड़ों के लिए तुमसे बेहतर कोई और चिड़िया हो ही नहीं सकती। नादानों की बातों में पड़ यूँ हमें छोड़ कर ना जाओं।’ पीपल के पेड़ की बात सुन कैसोवेरी चिड़िया को आज अपनी अहमियत का एहसास हुआ था। उसने जंगल को छोड़ कर जाने के विचार को त्यागा और अन्य चिड़ियों की बातों को नज़रंदाज़ करते हुए गर्व के साथ जंगल में रहने लगी।
कहानी पूरी होते ही मैं कुछ पलों के लिए रुका, फिर उन महिला की और मुख़ातिब होते हुए बोला, ‘शायद, अब आप मेरा इशारा समझ गई होंगी। बच्चे बड़े सरल और नादान होते हैं, वे नहीं जानते हैं कि विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में किस तरह रहना चाहिए या अच्छे-बुरे की पहचान कैसे करना चाहिए? कैसोवेरी चिड़िया की ही तरह बच्चे भी कई बार दूसरों को देख, तुलना कर खुद को कमजोर मानने लगते हैं। वे सोचते हैं कि उसके पास तो यह है…, वो है…, वे सब कितने भाग्यशाली हैं… मैं ही अकेला पीछे छूट गया हूँ… आदि… आदि। ऐसी स्थिति में हमें उनकी मदद करना होगी कि वे तुलना से बच अपनी योग्यता को पहचान सकें और उस क्षेत्र में आगे बढ़ सकें और मुझे लगता है इसके लिए प्रतिदिन एक कहानी सुनाने से अच्छा कोई और विचार या तरीक़ा हो ही नहीं सकता है। इसी तरह तो हमारे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी ने हमें मज़बूत और चरित्रवान बनाया था।
जी हाँ साथियों, जीवन के महत्व को हमें ना सिर्फ़ समझना है बल्कि अपने आस-पास मौजूद लोगों को भी समझाना है और इसके लिए सकारात्मक विचारों के आदान-प्रदान से बेहतर कोई और तरीक़ा हो ही नहीं सकता है। जी हाँ साथियों, सकारात्मक विचारों का तोहफा ना सिर्फ़ आपके बल्कि आपके आसपास मौजूद लोगों के जीवन को शानदार बना देगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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