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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अपनापन…

Oct 30, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। कई साल पहले, छोटे से एक गाँव में नंदनी नाम की लड़की रहा करती थी। उसका बचपन हंसते-खेलते, मज़े से गाँव में मस्ती करते हुए बीता था। गाँव का हर इलाक़ा यहाँ तक कि उसकी मिट्टी की ख़ुशबू भी नंदनी को अपनेपन का एहसास कराती थी। चुलबुली नंदनी अपने व्यवहार, संस्कार और जीवन मूल्यों के कारण पूरे गाँव की चहेती थी। नंदनी जितनी चुलबुली थी, उतनी ही पढ़ाई में भी अच्छी थी। इसलिए उसके परिवार ने उसका दाख़िला उस इलाक़े के सबसे अच्छे स्कूल में करवा दिया था।


जैसा कि सामान्यतः ग्रामीण परिवेश में होता है, एक प्रतिभाशाली और नेक बच्चे को बड़ा करने, उसे बेहतर बनाने, उसका भविष्य सुखद बनाने में पूरा समाज योगदान देता है। ऐसा ही कुछ नंदनी के साथ भी हुआ। इसलिए बढ़ती उम्र के साथ उसके सपने भी बड़े हुए। अब जब-तब उसके मन में प्रश्न आता कि ‘क्या यही उसकी पहचान है? क्या उसकी ज़िंदगी सिर्फ इस गाँव तक सीमित है? ऐसे अनेक प्रश्नों ने नंदिनी के मन में बदलाव की चाह काफ़ी बढ़ा दी और उसने आगे की शिक्षा और अपने जीवन को अगले स्तर पर ले जाने के लिए, शहर जाने का फैसला किया।


लेकिन शहर पहुँचते ही उसका जीवन पूरी तरह बदल गया। शहर की गगनचुंबी इमारतों, वहाँ की रौनक़ और चमचमाती गाड़ियाँ जहाँ उसे प्रेरित करती थी, वहीं भीड़ में होने के बाद भी उसे अकेलेपन का एहसास कराती थी। लेकिन किसी तरह नंदिनी ने अपनी शिक्षा अच्छे अंकों के साथ पूरी करके, शहर में ही नौकरी करना प्रारंभ कर दिया। अब उसके पास नये दोस्त, नई पहचान और वह सब कुछ था जिसके सपने वह देखा करती थी। लेकिन फिर भी दिल के किसी कोने में एक अजीब सा अधूरापन था। समय के साथ उसे एहसास हुआ कि बड़ा नाम, बेशुमार दौलत, चमचमाती गाड़ी और बड़ा बंगला बनाने की चाह में उसके जीवन से अपनेपन का एहसास कोसों दूर चला गया है। वह अक्सर सोचती कि, ‘क्या यही वह जगह है जहाँ मैं अपनी पहचान ढूँढने आई थी? क्या मैं वाक़ई ऐसा जीवन जीना चाहती थी? क्या यही वो सफलता थी जो मैं पाना चाहती थी?’ उत्तर के रूप में अक्सर उसका अंतर मन ‘शायद नहीं…’ बोलता था।


वैसे ऐसा ही कुछ हाल गाँव में उसके परिवार का भी था। वे भी अपनी चंचल बेटी के बिना जीवन के अधूरेपन के एहसास के साथ जी रहे थे। एक दिन इसी अधूरेपन के एहसास के साथ उसकी माँ ने उसे चिट्ठी लिखी। जैसे ही नंदिनी को चिट्ठी मिली, उसने तुरंत उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ना शुरू किया, ‘प्रिय नंदिनी, स्नेह और आशीर्वाद बेटा, गाँव में सभी तुम्हें बहुत याद करते हैं। तुम्हारी हंसी से सजी हुई शामें अब सुनी हो गई हैं। घर का आँगन तुम्हारे बिना खाली-खाली सा लगता है।’ चिट्ठी पूरी होते-होते नंदिनी की आँखें नम हो गई। उसे याद आया कि गाँव में कैसे सभी लोग ख़ुशी-ख़ुशी अपनेपन के साथ रहा करते थे और उसकी हर ख़ुशी में, हर सफलता पर वे ऐसे खुश होते थे, मानो वो उनकी खुद की जीत हो। यहाँ शहर में उसने दौलत-शोहरत सब कुछ कमाया, लेकिन इसकी क़ीमत प्यार और अपनेपन से चुकाई।


उसे समझ आ गया था कि सारी भौतिक बातों से ज़्यादा ज़रूरी अपनेपन का एहसास है। शहर ने उसे एक पहचान दी थी, लेकिन गाँव ने उसे प्यार और अपनापन दिया था। गाँव में उसे उन लोगों का साथ मिला था जो उसके दर्द को अपना दर्द, उसकी खुशियों को अपनी ख़ुशी मान उसमें शामिल होते थे, और बिना कहे ही एक-दूसरे के दिलों में रहा करते थे। वो समझ गई थी कि ‘पहचान आपको समाज में जगह देती है, लेकिन अपनापन दिल में।’ कुछ दिनों बाद, नंदिनी ने वापस गाँव लौटने का फैसला किया। जब वह गाँव वापस आई, तो उसे देखते ही लोग दौड़ते हुए आए। उसकी माँ ने उसे गले से लगा लिया, और जो आँगन उसके बिना सूना था, फिर से ज़िंदा हो उठा।


दोस्तों, यह कहानी सिर्फ़ नंदिनी की नहीं बल्कि हर उस युवा की है जो जीवन बनाने की चाह में अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान राह पर निकल जाता है और कई बार भौतिक चीजों की चाह में अपनापन और भावनाओं को ख़त्म कर अपने जीवन को मुश्किल बना लेता है। इस बात का एहसास मुझे हाल ही में एक युवा की काउन्सलिंग के दौरान हुआ। याद रखियेगा दोस्तों, जीवन में भौतिक सफलता भी ज़रूरी है, लेकिन उससे कई ज़्यादा ज़रूरी भावनात्मक स्थिरता है जो अपनेपन के एहसास के साथ मिलती है और अपनापन किसी स्थान या पहचान से नहीं बल्कि उन रिश्तों से आता है जो दिल से जुड़े होते हैं।


जी हाँ दोस्तों, अपनापन वह भाव है जो सिर्फ हमारे होने से नहीं, बल्कि दूसरों के साथ जुड़े रिश्तों से उपजता है। यह वह भावना है जो हमें ज़मीन से जोड़ती है, फिर चाहे हम कितनी भी ऊँचाई पर क्यों न हों। अपनापन हमें एहसास दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं, हमारी जिंदगी में ऐसे लोग हैं जो हमें दिल से चाहते हैं, हमारे साथ खड़े रहते हैं। इसलिए दोस्तों, आपके लिये दुनिया की सर्वोत्तम जगह वही है जहाँ आपके पास ‘अपनापन’ हो।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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