Oct 31, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुँचा और बोला, ‘गुरुजी!, इस पूरी दुनिया में सारी भागदौड़ किस चीज़ को पाने के लिए है?, यह जानना मेरे लिए इसलिए भी आवश्यक है क्यूँकि मेरा लक्ष्य अपने जीवन को पूर्णता के स्तर तक जीना है।’ शिष्य का प्रश्न सुन गुरु को भान हो गया कि अब इसे जीवन का सबसे ज़रूरी पाठ पढ़ाने का वक्त आ गया है अन्यथा यह भी निन्यानवे के फेर में पड़, उलझ जाएगा। गुरु ने शिष्य से कहा, ‘वत्स!, मैं ज़रूर तुम्हारे प्रश्न का जवाब दूँगा लेकिन क्या तुम उससे पहले मेरा एक कार्य कर दोगे?’, शिष्य के हाथ जोड़ हाँ में सर हिलाते ही गुरु बोले, ‘वत्स!, आश्रम के पीछे खुले मैदान में गौ माता विचरण करते हुए चर रही हैं उन सभी को सुरक्षित गोशाला में बंद कर आओ।’
गुरुजी से आदेश पाकर शिष्य तुरंत आश्रम के पीछे खुले मैदान में पहुँच गया और वहाँ बहुत सारी गौ माताओं को एक साथ देख चिंता में पड़ गया। वह सोचने लगा आख़िर मुझे यह कैसे पता चलेगा कि मैंने सभी गौ माताओं को सुरक्षित गोशाला में पहुँचा दिया है? वह इस विषय में सोच ही रहा था कि उसकी नज़र गौ माता की पीठ पर लिखे अंकों एक, दो, दस, पंद्रह जैसे नम्बरों पर पड़ी। वह तुरंत खुश हो गया और गिनती के आधार पर गौ माताओं को गोशाला में पहुँचाने लगा।
कुछ ही देर में मैदान में दिख रही सभी गौ माताएँ गोशाला में पहुँच गई, लेकिन उसके बाद भी शिष्य मैदान और उसके आस-पास के इलाक़े में और गौ माताओं को तलाशने लगा। कभी वह पेड़ के पीछे तलाशता, तो कभी वहाँ आसपास मौजूद बस्तियों में जाकर देखता। गौ माता की इस तरह खोज करते-करते कई घंटे गुजर गए लेकिन शिष्य को संतुष्टि नहीं मिल रही थी। शिष्य एक बार फिर गोशाला में गया और सभी गौ माताओं को बड़े ध्यान से देखा, उन्हें गिना और एक बार फिर ख़ाली मैदान के आस-पास के क्षेत्र में गौ माता को खोजने लगा। उसे लग रहा था कि शायद अभी भी गौ माता गोशाला के बाहर है।
दूसरी ओर गुरुजी भी उसके लोटने का इंतज़ार कर रहे थे। जब काफ़ी समय बीत गया तो वे स्वयं आश्रम के पीछे गए और शिष्य को बुला कर बोले, ‘वत्स!, क्या खोज रहे हो?’ पसीने-पसीने हुआ शिष्य गुरु को देख वापस आया और उन्हें प्रणाम करते हुए बोला, ‘गुरुजी!, एक गो माता नहीं मिल रही है, बस उन्हें ही खोजने का प्रयास कर रहा हूँ?’ गुरु हल्की मुस्कुराहट के साथ बोले, ‘वत्स!, तुम्हें कैसे पता चला कि एक गौ माता कम है?’ शिष्य बोला, ‘गुरुजी!, सभी गौ माताओं की पीठ पर 1 से 100 तक नम्बर लिखे थे। उन्हें ही आधार मान मैंने संख्या का अंदाज़ा लगाया। वैसे सारी गौ माताएँ तो मिल गई हैं बस 99 वें नम्बर वाली एक गौ माता कम है।’ गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘वत्स!, तुमने सभी गौ माताओं को सुरक्षित गोशाला में पहुँचा दिया है। वहाँ 99वें नम्बर वाली गो माता थी ही नहीं। असल में लक्ष्य पूर्ण हो जाने के बाद भी तुम अपने समय, ऊर्जा और जीवन को उस गौ माता को खोजने में लगा रहे थे, जो वहाँ थी ही नहीं। ऐसा ही अक्सर हमारे जीवन में भी होता है सभी कुछ पाने या पूर्णता की चाह; बिना पूर्णता को समझे करना, उस गौ माता को खोजने के सामान है, जो वहाँ थी ही नहीं।’
दोस्तों, आपको ऐसा नहीं लगता यही स्थिति हममें से ज़्यादातर लोगों की है। हम सब भी तो सब कुछ पाने की चाह में ऐसे अस्पष्ट लक्ष्यों का पीछा करते हैं जिन्हें पाना सम्भव ही नहीं होता। उपरोक्त कहानी में 99वीं गौ माता उन चीजों को प्रदर्शित करती है जिन्हें पाने के लिए हम बेचैन हैं, पर वो हमें कभी मिलती नहीं, क्यूँकि हक़ीक़त में वे होती ही नहीं है। जैसे परफ़ेक्ट जीवन का होना, जिसमें कोई समस्या ना हो। ऐसे रिश्तों की चाह रखना जिसमें कभी अनबन या मन-मुटाव ना हो, ऐसी नौकरी या व्यवसाय की आस रखना जिसमें सब-कुछ एकदम सामान्य रूप से चलता रहे। सीधे शब्दों में कहा जाए तो ऐसे जीवन की आस रखना जो एकदम आराम से चलता रहे, जबकि हक़ीक़त में वह अस्तित्व में होता ही नहीं है। गहराई से सोचकर देखिएगा दोस्तों, आख़िर सब कुछ पाना या उसकी आस रखना क्यूँ ज़रूरी है? हम किसी भी चीज़ के लिए क्यूँ परेशान रहें, हो सकता है कि 99वे नम्बर की जिस गौ माता को पाने का प्रयास हम कर रहे हैं वो हक़ीक़त में हो ही ना और हमारा जीवन उसके बिना ही पूर्ण हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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