Sep 9, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, यह साल भावनात्मक रूप से मेरे लिए थोड़ा मुश्किल या तकलीफ़ों भरा रहा क्यूँकि कोरोना की वजह से मैंने अपने कुछ क़रीबियों को हमेशा के लिए खो दिया था। आज जब मैं पलट कर उनके जीवन को देखता हूँ तो कई बार बड़े विरोधाभासी ख़याल आते हैं, जैसे हममें से कई लोग इतनी मेहनत सिर्फ़ और सिर्फ़ अमीर बनकर मरने के लिए कर रहे हैं। सुनने में दोस्तों, यह थोड़ा परेशानी भरा लग सकता है लेकिन कुछ हद तक है यह बिलकुल सही भी। अगर आप हमारी जीवनशैली को ध्यान से देखेंगे तो आप पाएँगे कि अधिकांश भारतीय अपने पूरे जीवन को तो ग़रीबी में, समझौता करते हुए जीते हैं, लेकिन वे मरते अमीर हैं अर्थात् वे अपनी मृत्यु के बाद अपनी अगली पीढ़ी के लिए पैसे, प्रॉपर्टी या किसी अन्य रूप में काफ़ी पूँजी छोड़कर जाते हैं। मुझे नहीं पता अपनी अगली पीढ़ी के जीवन को बेहतर या आरामदायक बनाने के लिए खुद के जीवन को कष्टप्रद बनाना कितना सही है। लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि भावनात्मक निवेश के साथ खुद के जीवन को आरामदायक बनाने के विषय में सोचना आवश्यक है। आईए अगले दो दिनों में हम उन पाँच भावनात्मक निवेशों के बारे में जानने-समझने का प्रयास करते हैं जो हमें अमीर जीवन जीने से रोकते हैं-
1) प्रॉपर्टी में निवेश
प्रॉपर्टी में निवेश करना हमारे यहाँ सबसे कम जोखिम वाला और निश्चित रूप से बेहतर रिटर्न देने वाला निवेश माना जाता है। इसीलिए आम भारतीय के लिए यह सबसे पसंदीदा निवेश बना हुआ है। लेकिन अगर आप गहराई से देखेंगे तो पाएँगे कि हमारे वरिष्ठों ने ना सिर्फ़ खुद के लिए बल्कि अपने उन बच्चों के लिए भी घर बना लिए हैं जो विदेश या गृह राज्य के बाहर बस गए हैं। लेकिन अगर आप अगली पीढ़ी से इस विषय में चर्चा करेंगे तो आप पाएँगे कि उनकी इन घरों या प्रॉपर्टी में दिलचस्पी ना के बराबर है, फिर भले ही ये घर कितने भी बड़े क्यूँ ना हों। अपनी बात को मैं एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ-
मेरे एक करीबी और उनकी पत्नी की पिछले वर्ष 57 वर्ष की आयु में कोविद की वजह से मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवन भर बचत करके अपने गृहनगर में काफ़ी बड़ा घर, फार्म हाउस आदि बनाया था। लेकिन पति-पत्नी दोनों की मृत्यु लगभग एक साथ होने की वजह से उनके बाद इस प्रॉपर्टी की देखरेख के लिए भी कोई नहीं था। परिचित के दोनों बच्चे विदेश से उच्च शिक्षा लेकर वहीं बस गए थे और उन्होंने वहीं की नागरिकता भी ले ली थी। दोनों बच्चों की इस बड़ी सम्पत्ति, जिसे उनके पिता ने अपनी पूरी जवानी लगाकर, पेट काट कर बनाया था, में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। वसीयत के आधार पर जब उक्त सम्पत्ति दोनों बेटों के नाम हो गई तो उन्होंने अपने एक परिचित के नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी बनाकर उसे बेच दिया और फिर उससे प्राप्त पैसे को उनके नए गृह देश भेज दिया गया। अब सोचकर देखिए हम जिनके लिए बड़ी सम्पत्ति बना रहे हैं उनके पास उसे देखने के लिए ही समय नहीं है, तो फिर खुद के आज के सुख को क़ुर्बान करके अपने जीवन को इसके लिए बर्बाद करने से क्या फ़ायदा। मेरा तो मानना है कि सम्पत्ति में उतना निवेश अच्छा है जितने में आप अपना सर छुपा सको और खुद के जीवन को सुरक्षित बना सको।
2) गहनों में निवेश
भारतीयों का दूसरा प्रिय निवेश है सोने-चाँदी या अन्य धातुओं के गहनों को लेना। वैसे मैं इसे भावनात्मक निवेश में पहले नम्बर पर रखता हूँ क्यूँकि इसे हम सिर्फ़ अपने ही नहीं बल्कि अपने परिवार के हर सदस्य के जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव या पल से जोड़कर रखते हैं। जैसे, जन्म, मुंडन, जन्मदिन, सगाई, शादी आदि। लेकिन अगर आप देखेंगे तो पायेंगे कि नई पीढ़ी का लगाव इन गहनों से भी नहीं है क्यूँकि उन्हें इनकी डिज़ाइन पुराने जमाने की लगती है और दूसरी बात वे रिस्क को देखते हुए नक़ली गहने पहनना ज़्यादा पसंद करते हैं। हालाँकि मैं इस निवेश के ख़िलाफ़ नहीं हूँ पर मेरा मानना है कि हमें इसमें निवेश अपनी भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, शुद्ध धातु के रूप में करना चाहिए ना की गहनों के रूप में।
आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम अगले तीन भावनात्मक निवेशों के बारे में समझने का प्रयास करेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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