Aug 4, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, अहंकार एक ऐसा भाव है जो आपके अंदर ढेरों योग्यताएँ होने के बाद भी जीवन में सही तौर पर सफल नहीं होने देता है। अब आप सोच रहे होंगे, ‘सही तौर पर सफल’ होने का अर्थ क्या है तो मैं आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूँ कि जब आप अपने जीवन में खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखते हुए अपने कार्यक्षेत्र, रिश्तों और सामाजिक जीवन में समन्वय बनाते हुए संतुष्टि के साथ जीवन जी पाते हैं, तब आप स्वयं को सही मायने में सफल मान सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सफलता असल में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, भौतिक आदि क्षेत्रों में संतुष्टि का दूसरा नाम है।
लेकिन अगर आप शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, भौतिक आदि क्षेत्रों में से किसी एक में सफल होकर, उस पर अहंकार करते हैं तो अक्सर आप बाक़ी क्षेत्रों पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अहंकार आपको यथार्थ से दूर कर, सही जीवन के असली सुख से वंचित कर देता है। चलिए अपनी बात को मैं आपको एक छोटी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
सामान्य तौर पर शांत रहने वाली नदी को अपने वेग, अपने प्रवाह पर बड़ा घमंड हो गया था। असल में सहायक नदियों द्वारा बार-बार की जाने वाली झूठी तारीफ़ों ने उसके सोचने-समझने के तरीके को ही बदल दिया था। अब उसे लगता था कि वह अपने प्रवाह के वेग से इंसान, जानवर, घर, पेड़, पहाड़, आदि किसी को भी उखाड़ कर अपने साथ बहाकर ले जा सकती है। एक दिन नदी ने अपने इसी अहंकार और घमंड से वशीभूत होकर बड़े गर्व के साथ समुद्र से कहा, ‘बड़े भाई बताओ मैं अपने साथ तुम्हारे लिए उपहार स्वरूप क्या लेकर आऊँ? घर, गाड़ी, पेड़, जानवर या इंसान… जो भी तुम चाहो मैं तुम्हारे लिए ला सकती हूँ।’
विशाल समुद्र अपने अनुभव से तुरंत समझ गया कि नदी को अपने वेग पर ज़रूरत से ज़्यादा घमंड हो गया है और इसी घमंड की वजह से नदी निरंकुश स्वभाव की होती जा रही है। समुद्र को लगा अगर इसके घमंड को सही समय पर नहीं तोड़ा गया तो यह प्रकृति के अन्य तत्वों के लिए काफ़ी नुक़सानदायक रहेगा।
विशाल समुद्र ने तुरंत अपनी योजना के तहत नदी से बड़े विनम्र भाव से कहा, ‘बहन, वैसे तो मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। लेकिन फिर भी तुमने इतने प्यार से पूछा है तो एक काम करो मेरे लिए थोड़ी सी ताजी हरी घास ले आओ।’ नदी ने बिना सोचे-समझे अपने उसी घमंडी अन्दाज़ में जवाब देते हुए कहा, ‘बस इतना ही, मैं अभी इसे लेकर आती हूँ।’
नदी किनारे बगीचे के समीप से गुजरते वक्त नदी ने अपना पूरा जोर लगा दिया, लेकिन घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार कोशिश करी, लेकिन वह हर बार असफल रही। आख़िर में हाल यह हुआ कि नदी ने हार माँ ली और लटका हुआ मुँह लेकर समुद्र के पास पहुँच गई और बोली, ‘बड़े भाई मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने में असफल रही हूँ। मैंने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया , मेरा वेग इतना अधिक था कि कई पेड़ अपनी जड़ से उखड़कर मेरे साथ बहने लगे, कई पत्थर रास्ते में कट गए और तो और एक बड़ी भारी बिल्डिंग को भी इससे काफ़ी नुक़सान पहुँचा। लेकिन जब भी मैंने घास को उखाड़ने के लिए बल लगाया, वह एकदम से झुक गई और मुझे उसके ऊपर से ऐसे ही गुजरना पड़ा।’
आशा करता हूँ दोस्तों इस कहानी में छुपे अहंकार के नुक़सान और जीवन जीने के मूल मंत्र को आप सभी समझ ही गए होंगे, लेकिन फिर भी एक बार हम संक्षेप में उन्हें हमारे जीवन को बेहतर बनाने वाले पाँच आसान जीवन सूत्रों के रूप में समझ लेते हैं-
पहला सूत्र - जो भी व्यक्ति अपने व्यवहार से पहाड़ की तरह कठोर होता है, वह आसानी से उखाड़ दिया जाता है। इसके विपरीत जो इंसान घास से झुकना सीख ले अर्थात् अपने व्यवहार में नम्रता ले आए वह विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी निखरकर विजेता बन जाता है।
दूसरा सूत्र - जीवन में कई बार असली जीत या ख़ुशी, हारकर मिलती है। अर्थात् जीवन में जीत या ख़ुशी का मतलब हर बार जीतने के लिए लड़ाई लड़ना नहीं है, बल्कि अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर उससे बचना है।
तीसरा सूत्र - विनम्र स्वभाव एक साधारण इंसान को भी विशेष बना सकता है।
चौथा सूत्र - अहंकार के प्रभाव में आकर यह सोचना कि, ‘जो कुछ भी घट रहा है उसकी वजह मैं हूँ।’, मूर्खता से अधिक कुछ भी नहीं है। संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह प्रकृति के नियम या फिर ईश्वरीय इच्छा या परमात्मा की योजना के तहत हो रहा है, हम तो बस एक निमित्त मात्र है। इसीलिए तो शायद कहा गया है बीज की यात्रा वृक्ष तक, नदी की यात्रा सागर तक और मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक है।
पाँचवाँ सूत्र - सुखी और अर्थपूर्ण जीवन के लिए हमेशा याद रखिएगा, ‘वक्त का समंदर अब तक जाने कितने सिकंदरों को निगल गया है तो फिर हम किस खेत की मूली हैं? जिस दिन परमात्मा द्वारा दिया गया कार्य पूर्ण हो जाएगा हम इस दुनिया से विदा हो जाएँगे।’ तो साथियों अगर लोगों की यादों में, उनके दिलों में अमर होना चाहते हो तो अहंकार छोड़कर, विनम्र बन जाओ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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