Feb 22, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा कुछ लोग अपना काम बेहतर तरीके से करने के स्थान पर, अपना ज्यादातर समय दूसरों की कमियाँ निकालने में या उनकी बुराई करने में बर्बाद करते हैं। इतना ही नहीं ऐसा करने के पीछे अक्सर उनका लक्ष्य ख़ुद को बेहतर साबित करना होता है। लेकिन सोच कर देखिए क्या किसी को नीचा दिखाकर, कमियाँ निकालकर ख़ुद को बेहतर बनाया जा सकता है? चलिए, इसी बात को एक ऐसी कहानी से समझने का प्रयास करते हैं, जो इस सवाल का जवाब देने के साथ-साथ निश्चित तौर पर आपको ख़ुद को निखारने पर मजबूर करेगी।
बात कई साल पुरानी है, जंगल के बीच में एक घने पेड़ के ऊपर एक कौआ और एक कोयल रहा करते थे। कोयल की आवाज़ इतनी मधुर थी कि उसे सुन पूरा जंगल आनंदित हो जाता था। वहीं दूसरी ओर कौवे की कांव-कांव सुन परेशान। इस सब के बाद भी वैसे तो सब ठीक चल रहा था लेकिन कोयल को उसकी मीठी आवाज़ के कारण मिलने वाली तारीफ़ और प्यार को देख, कौवे को थोड़ी जलन हुआ करती थी। वो अक्सर इस विषय में सोच कर परेशान हुआ करता था।
एक दिन कौए ने सोचा, ‘अगर कोयल की आवाज़ को कोई सुन ही नहीं पाये तो हमारी प्रसिद्धि के बीच का अंतर हमेशा के लिए खत्म ही हो जायेगा।’ विचार आते ही कौवे ने निर्णय लिया कि अब मैं कोयल की आवाज़ को दबा कर ही दम लूँगा। जिससे उसे प्रशंसा मिलना अपने आप ही बंद हो जाएगी। अब जब भी कोयल गाना शुरू करती, कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगता। उसके इस व्यवहार से गुजरते वक्त के साथ जंगल के अन्य सभी जानवर परेशान हो गए। उन्हें कौवे के बर्ताव के कारण जंगल में सुकून ख़त्म होता सा महसूस होने लगा। जिसके कारण गुज़रते वक़्त के साथ जंगल के सभी जानवर कौवे से दूर होने लगे।
एक दिन परेशान कौवा जंगल के सबसे बुद्धिमान माने जाने वाले उल्लू के पास पहुँचा और उनसे अपनी समस्या का हल पूछने लगा। इस पर बुद्धिमान उल्लू ने कौए से कहा, ‘तुम चाहे जितनी भी कांव-कांव कर लो, लेकिन तुम कोयल जैसी मीठी आवाज़ नहीं पा सकते। अगर तुम कोयल जितना मान-सम्मान पाना चाहते हो तो कोयल की तरह अपनी आवाज को मधुर बनाने का प्रयास करो, न कि उसे नीचे गिराने की।
वैसे दोस्तों, कौए वाली गलती ही तो आम तौर पर इंसान करता है। जब वह किसी दूसरे इंसान की विशेषज्ञता या हुनर का मुक़ाबला नहीं कर पाता है, तो वह उसकी कमियाँ निकालने और उसे गिनाने का प्रयास करता है। आप स्वयं सोच कर देखिए क्या ऐसा करना सही है? क्या दूसरों की ग़लतियाँ या कमियाँ निकालने से वह इंसान बेहतर बन सकता है? नहीं ना! मेरी नजर में तो किसी की बुराई करके यह सोचना कि इससे हम अच्छे बन जाएँगे या ख़ुद को अच्छा साबित कर पायेंगे, एक बड़ी भूल ही है।
तो आइए दोस्तों, आज से हम यह संकल्प लेते हैं कि हम दूसरों में बुराइयाँ या कमियाँ खोजने के स्थान पर ख़ुद को बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे अर्थात् अपने समय को दूसरों की निंदा करने में बर्बाद करने के स्थान पर ख़ुद को निखारने में लगायेंगे क्योंकि इस दुनिया में हमारे सिवा हमें कोई और बेहतर नहीं बना सकता है। याद रखियेगा दोस्तों, हमारी समृद्धि, हमारी ख़ुशी, हमारा सुख, हमारे अपने आचरण में छुपा होता है। अगर आप चाहते हैं कि दुनिया आपको अच्छा और बेहतर माने तो अभी ख़ुद को अच्छा बनाना शुरू कर दीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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