top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

आत्मसंतोष से पाएँ सुख…

Jan 16, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, आत्मसंतोष के बिना सुख की परिकल्पना करना मेरी नज़र में बेमानी है। जी हाँ, अगर आप गहराई से इस विषय में सोचेंगे तो पाएँगे कि जब तक आपके मन में कुछ भी पाने की आस या तमन्ना है, तब तक आपका मन अशांत रहेगा और जब तक मन अशांत होगा तब तक संतुष्टि के भाव की कल्पना बेमानी ही है। चलिए, अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, सेठ धर्मचन्द की गिनती शहर के सबसे धनी लोगों में हुआ करती थी। गाँव के लोग उन्हें बड़ा क़िस्मत वाला मानते थे। वैसे माने भी क्यों ना? प्रभु कृपा से उनके पास धन, समृद्ध व्यापार, सुशील और सुंदर पत्नी, संस्कारी संतान आदि सब कुछ था। एक दिन सेठ धर्मचन्द बिना किसी को कुछ कहे अपने घर से निकल पड़े। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो वे किसी बात से परेशान हैं या फिर किसी गहरी चिंता में डूबे हुए हैं। कोई भी इंसान उन्हें दूर से देखकर भी बता सकता था कि वे अवसाद के शिकार हैं।


बिना लक्ष्य के भटकते-भटकते सेठ पास ही के एक गाँव तक पहुँच गए, जहाँ सड़क किनारे एक कुम्हार भजन गुनगुनाते हुए मटकियाँ बेच रहा था। सेठ को कुम्हार के चेहरे पर एक अलग ही संतुष्टि का भाव नज़र आ रहा था। वे सोचने लगे कि सड़क किनारे व्यापार करने वाला इतना संतुष्ट और सुखी कैसे हो सकता है? वे इसका राज जानने के लिये बेचैन हो गये और उसके समीप जाकर बैठ गए। कुम्हार ने भजन गाते-गाते ही उन्हें पीने के लिए पानी दिया और वापस अपनी भक्ति में रम गया।

कुछ देर पश्चात सेठ उससे बोले, ‘क्या आप मेरे साथ मेरे शहर में व्यवसाय करना पसंद करेंगे?’ कुम्हार मुस्कुराता हुआ बोला, ‘उससे क्या होगा?’ सेठ बोले, ‘आप थोड़ा ज़्यादा पैसा कमा पाएँगे और साथ ही मैं आपसे सुख और संतुष्टि का पाठ सीख पाऊँगा।’ सेठ का जवाब सुन कुम्हार मुस्कुराया और बोला, ‘मान लो मैं तुम्हारी बात मान कर तुम्हारे शहर में बस गया और तुम्हारी मदद से मैंने वहाँ अपना व्यापार भी जमा लिया और साथ ही बहुत सारा पैसा भी कमा लिया। अब यह बताओ कि मैं उस पैसे का करूँगा क्या?’ सेठ पूर्ण गंभीरता के साथ बोले, ‘फिर आप अपना जीवन प्रभु कीर्तन करते हुए मौज में पूर्ण संतुष्टि के भाव के साथ बिताइयेगा।’ इतना सुनते ही कुम्हार ज़ोर से हँसा और बोला, ‘वो तो मैं आज भी बिता रहा हूँ। फिर किस बात के लिए इतनी परेशानी मोल लूँ?’


कुम्हार की बात ने सेठ को झकझोर दिया। वे कुछ पलों तक तो कुछ बोल ही नहीं पाए। फिर बड़ी मुश्किल से ख़ुद को सम्भालते हुए बोले, ‘वैसे तुम ठीक ही तो कह रहे हो। पर मैं अभी तक यह समझ नहीं पाया हूँ कि सब-कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हारे जितना संतुष्ट और सुखी क्यों नहीं हूँ?’ सेठ का प्रश्न सुन कुम्हार एक चिंतक या सचेतक की भाँति बोले, ‘सेठ, बस अपना हाथ उल्टा करना सीख जाओ, फिर सब ठीक हो जाएगा।’ कुम्हार का जवाब सुनते ही सेठ बोले, ’हाथ उल्टा करना? मैं कुछ समझ नहीं पाया।’ कुम्हार पूर्ण गंभीर स्वर में बोला, ‘सेठ पाने की लालसा में हाथ खुला रखने के स्थान पर, जो है उसे देना सीखो। जिस दिन आप देना सीख जाएँगे उस दिन आप आनंद की राह पर चलना सीख जाएँगे। सेठ स्वार्थ त्याग परमार्थ चुनो। फिर सब ठीक हो जाएगा।


बात तो दोस्तों, कुम्हार की एकदम सटीक थी। इस दुनिया में ज़्यादातर लोगों के दुखी और परेशान रहने का सबसे बड़ा कारण जो है उसका सुख उठाने के स्थान पर, जो नहीं है उसे पाने के चक्कर में उलझे रहना है। आप स्वयं सोच कर देखिए; अगर हम जो है उसमें खुश रहना सीख लें तो दुःख अपने आप ही चले जाएँगे। याद रखियेगा दोस्तों, आत्म संतोष से बड़ा कोई और सुख है ही नहीं। जिसके पास सन्तोष रूपी धन है, वही सही मायने में सुखी है; आनंद में है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

11 views0 comments

Comments


bottom of page