Feb 19, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...
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आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी कहानी से करते हैं जो हमें शांति, विश्वास, प्रेम और आशा का सच्चा अर्थ समझने में मदद करेगी। तो चलिए शुरू करते हैं…
रात का समय था… चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। वहीं पास ही में एक झोपड़ी के अंदर हल्की सी रौशनी टिमटिमा रही थी। वहीं रहने वाले एक बच्चे ने पास जाकर देखा, तो उसे वहाँ चार मोमबत्तियाँ जलती हुई नजर आई। बच्चा पूरे शांत भाव के साथ उन जलती हुई मोमबत्तियों को देखने लगा। तभी अचानक चारों मोमबत्तियों ने आपस में बात करना शुरू किया। पहली मोमबत्ती गहरी लेकिन शांत आवाज़ में बोली, ‘मैं शांति हूँ, लेकिन मतलबी लोगों से भरी इस दुनिया को देख व्यथित हूँ। आज जहाँ देखो वहाँ अशांति, लड़ाई-झगड़ा और हिंसा नजर आती है। इन सबने इतना परेशान कर दिया है कि अब मुझे यहाँ रहने की कोई वजह नजर नहीं आती है।’ इतना कहकर वह मोमबत्ती धीमे-धीमे करके बुझ गई।
तभी दूसरी मोमबत्ती थोड़े हताशा भरे स्वर में बोली, ‘मैं विश्वास हूँ। लेकिन अब इस दुनिया में कोई मुझ पर भरोसा नहीं करता। चारों ओर अब झूठ, फरेब, और धोखा ही नजर आता है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि इस दुनिया में किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है।’ इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।
दोनों मोमबत्तियों की बात ने तीसरी मोमबत्ती के मन पर भी प्रभाव डाला। वह अपनी व्यथा सुनाते हुए बोली, ‘मैं प्रेम हूँ! आज इस एहसान फ़रामोश समाज में हर कोई स्वार्थ आधारित जीवन जी रहा है। इसलिए किसी के पास भी दूसरों के लिए समय नहीं है। हर कोई मैं… मैं… की रट लगा रहा है और इसी वजह से लोगों के दिलों में अब मैं नहीं; नफ़रत और ईर्ष्या ने जगह बना ली है। ऐसे में मेरे यहाँ रहने का कोई औचित्य ही नहीं है।’ तीसरी मोमबत्ती की बात सुन, चौथी मोमबत्ती कुछ कहती उससे पहले ही तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।
तीसरी मोमबत्ती को बुझता देख वो छोटा बच्चा एकदम डर गया। उसे लगा कहीं चौथी मोमबत्ती भी पिछली तीन मोमबत्तियों की तरह अपनी व्यथा कह एकदम से बुझ गई तो मेरा क्या होगा? अंधेरे का विचार आते ही उस छोटे से बच्चे की आँखों में आँसू आ गए। वह डरता हुआ काँपती उदासी भरी मासूम आवाज़ में बड़े दुख के साथ बोला, ‘प्लीज़ तुम मुझे ऐसे अकेला छोड़कर मत जाना। तुम्हें तो मेरे साथ रहना ही होगा। अगर तुम भी चली गई तो मैं क्या करूंगा?’
छोटे से बच्चे के उम्मीद भरे शब्दों को सुन चौथी मोमबत्ती की लौ थोड़ी हिली और बड़ी कोमल लेकिन आश्वस्त करने वाली आवाज़ में बोली, ‘मेरे प्यारे बच्चे, डरो मत! मैं आशा हूँ… जब तक मैं जल रही हूँ, तब तक तुम्हें कोई परेशानी हो ही नहीं सकती। तुम पूर्ण निश्चिंतता के साथ मुझे बाकी मोमबत्तियों को फिर से जलाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हो।’ आशा के शब्दों को सुन उस छोटे से बच्चे ने काँपते हाथों के साथ इस चौथी मोमबत्ती को उठाया और इसकी मदद से बुझी हुई तीनों मोमबत्तियों को फिर से प्रज्वलित कर लिया और उस कमरे में एक बार फिर शांति, विश्वास और प्रेम फिर से लौट आए।
दोस्तों, जीवन में समय एक जैसा नहीं रहता। जीवन में उतार-चढ़ाव या अच्छे-बुरे का होना सामान्य है। अर्थात् जीवन में अंधकार या मन का अशांत होना, विश्वास का डगमगाना सामान्य है। ऐसे विपरीत दौर में इस जीवन को ख़ुशी-ख़ुशी पूर्णता के साथ जीने का एक ही तरीका है, अपने अंतर्मन में आशा की लौ को हर पल जलाये रखना क्योंकि आशा की यह लौ जीवन में कितनी भी चुनौतीपूर्ण स्थितियां क्यों ना आ जाये; शांति, विश्वास और प्रेम को वापस लाने की शक्ति रखती है। याद रखियेगा, आशा के बल पर जीवन में सब कुछ पाया जा सकता है। इसलिए आशा का साथ कभी ना छोड़ें..!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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