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करें माफ़ और रहें आनंद में…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Dec 17, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अकसर आपने लोगों को परिस्थिति, क़िस्मत या भाग्य, रिश्तों अथवा लोगों को दोष देते हुए सुना होगा, ‘हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?’; ‘मेरी तो क़िस्मत ही फूटी हुई है…’; ‘काम निकलते ही लोग भूल जाते हैं…’; ‘मैं तो सभी के लिए अच्छा करता हूँ फिर भी पता नहीं क्यूँ मेरे साथ ही बुरा होता है।’ आदि…


वैसे इनके इस तरह के विचारों के पीछे अकसर सच्चाई छुपी होती है अर्थात् इनके जीवन में कई घटनाएँ ऐसी घटी होती हैं जो इन्हें ऐसा सोचने के लिए मजबूर करती हैं। लेकिन दोस्तों मेरा मानना है कि दूसरे हमारे साथ कैसा व्यवहार करेंगे; वो हमें किस नज़र से देखेंगे; वे हमें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर छोड़ देंगे या हमारा साथ निभाएँगे ; यह हमारे हाथ में नहीं है। जीवन, रिश्ते या इंसानों या प्रकृति के बारे उनकी सोच उनका नज़रिया हमें नहीं पता। लेकिन उनकी सकारात्मक या नकारात्मक बातों या क्रियाओं पर हम क्या प्रतिक्रिया देंगे, उसके लिए निश्चित तौर पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हम ज़िम्मेदार रहेंगे। यहाँ मैंने ‘ज़िम्मेदार’ शब्द पर इतना ज़ोर इसलिए दिया है दोस्तों क्यूँकि बीतते समय के साथ ही हमारी प्रतिक्रिया, जीवन के प्रति हमारे नज़रिए को विकसित करेगी। अपनी बात को मैं हाल ही में सोशल मीडिया पर पढ़े मिर्ज़ा ग़ालिब के एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ-


एक दिन मिर्ज़ा ग़ालिब के मन में कुछ विचार आया और वे अपनी शेरवानी उठा जंगल में बहुत ज़्यादा दूरी पर स्थित मस्जिद की ओर चल दिए। गर्म दोपहर को काफ़ी देर तक पैदल चलते रहने के कारण मिर्ज़ा काफ़ी थक गए थे, इसलिए रास्ते में छायादार पेड़ देख उन्होंने उसकी छाँव में कुछ देर आराम करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी शेरवानी को पेड़ की एक टहनी पर टांगा और उसकी छाँव में सुस्ताने लगे। अत्यधिक थके होने के कारण जल्द ही मिर्ज़ा की आँख लग गई।


उसी वक्त एक चोर उस रास्ते से गुजरा और उसकी नज़र गहरी नींद के आग़ोश में सोए मिर्ज़ा पर पड़ी। बेख़बर से सोए राहगीर को देख, उसने पेड़ की टहनी पर टंगी शेरवानी पर हाथ साफ़ कर दिया। कुछ देर बाद जब मिर्ज़ा की नींद खुली तो वे पेड़ की टहनी पर शेरवानी ना देख कुछ देर के लिए परेशान हुए, उन्हें शेरवानी जाने का अफ़सोस भी हुआ। लेकिन अगले ही क्षण वे मुस्कुराए और बोले, ‘हे ईश्वर, तू उस चोर का भला करना, उसकी उम्र लम्बी करना। ना जाने किन परेशानियों और परिस्थितियों की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा।’


दोस्तों, अगर आप गहराई से मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रतिक्रिया का आकलन करके देखेंगे तो आप उसमें जीवन को बेहतरीन तरीके से जीने का एक सूत्र छुपा हुआ पाएँगे। उस सूत्र को समझने के लिए हमें उपरोक्त घटना को दो अलग-अलग नज़रिए से देखना होगा। पहले नज़रिए के आधार पर हम सोच सकते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब बड़े नेक दिल इंसान थे। वे दूसरों के दुःख-दर्द को भली भाँति महसूस कर पाते थे, इसलिए उन्होंने चोरी को, चोर के नज़रिए से देखा और स्थिति-परिस्थिति का आकलन भी उसी आधार पर किया।


चलिए अब इसी घटना को हम दूसरे नज़रिए से देखते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब अपना जीवन शांति के साथ जीना चाहते थे। इसलिए वे अपने मन पर किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार को हावी नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सच्चाई को स्वीकारा और चोर को माफ़ कर अपने दिल पर अनावश्यक बोझ नहीं बढ़ाया। साधारण शब्दों में इसी बात को समझा जाए तो मिर्ज़ा को पता था चोरी गई शेरवानी का मिलना अब नामुमकिन है, तो फिर उसे याद करके खुद को तकलीफ़ देने से क्या फ़ायदा? इसलिए उन्होंने खुद के मन की शांति को बरकरार रखने के लिए चोर को माफ़ कर दिया।


इसलिए दोस्तों, मैं शांतिपूर्ण जीवन को क़िस्मत की नहीं, बल्कि चुनाव की बात मानता हूँ। जो परिस्थितियां मेरे नियंत्रण में नहीं होती हैं, उन्हें मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ क्यूँकि अगर उसे मैंने स्वीकार नहीं किया तो दुखी होकर तो मुझे उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा। याद रखिएगा, सुख, दुःख, हानि, लाभ, जीवन और मृत्यु सब-कुछ तो उस ईश्वर के ही हाथ में है। तो आइए दोस्तों, आज से हम हर परिस्थिति, फिर वह अच्छी या बुरी, सभी को स्वीकार करने की ताक़त अपने अंदर विकसित करते हैं और इस जीवन के हर पल का आनंद लेते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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