May 7, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मुँह से आवाज़ निकालना और अपनी बात कहना याने वार्तालाप करना; दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। ठीक इसी तरह कानों में शब्दों का जाना और किसी की बात को सुनना भी दो बिलकुल अलग बातें हैं। अक्सर आपने देखा होगा, लोग कहना कुछ चाहते हैं, कहते कुछ ओर ही हैं। ठीक इसी तरह का अंतर आप सुनने और समझने में भी देख सकते हैं। मेरी नज़र में आपसी सम्बन्धों के अच्छे ना रहने की सबसे बड़ी वजह यही है। अपनी बात को मैं आपको गौतम बुद्ध से जुड़ी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।
अक्सर महात्मा बुद्ध लोगों को मानवता का संदेश देने के लिए एक गाँव से दूसरे गाँव जाया करते थे। एक बार ऐसी ही एक यात्रा के दौरान वे एक गाँव में रुके। इस गाँव में उनके शिष्यों के रूप में एक चोर, एक नगर वधु और एक वेद पाठी शिष्य भी था। उस दिन महात्मा बुद्ध एक गम्भीर विषय पर इतने रोचक तरीक़े से बता रहे थे कि कोई भी शिष्य इस विशेष चर्चा और चिंतन को छोड़ जाने के लिए राज़ी नहीं था। प्रवचन का अंत ना होते देख अंत में महात्मा बुद्ध अपने सभी शिष्यों को सम्बोधित करते हुए बोले, ‘आज हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर, चिंतन किया है। मेरा मानना है ऐसे किसी भी विषय को एक दिन में पूर्ण कर पाना सम्भव नहीं है। हम इस पर बाद में कभी चर्चा करेंगे। अभी रात बहुत हो गई है, अब तुम आराम करो क्योंकि तुम्हें अब अच्छा काम करना है।’
इस प्रवचन में एक जिज्ञासु छात्र भी बैठा था। उसने सोचा क्यों ना मैं सभी शिष्यों के घर जाकर देखूँ कि उन्होंने बुद्ध के प्रवचन से क्या सीखा है और वे किस तरह इससे अपने जीवन में परिवर्तन लेकर आ रहे हैं। विचार आते ही वह शिष्य सभी गाँव वालों के पीछे चलते-छलते उनके गाँव तक पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वह सबसे पहले नगर वधु के पास गया। उस वक्त वह नगर वधू अपने घर पर पूरी तरह तैयार होकर गहने वग़ैरह पहन रही थी। आधी रात्रि को उसे इस तरह तैयार होता देख इस जिज्ञासु शिष्य से रहा नहीं गया। उसने उसी पल नगर वधू से आधी रात्रि को तैयार होने की वजह पूछी तो वह बोली, ‘अरे तुम भूल गए! हमें अभी थोड़ी देर पहले ही तो महात्मा बुद्ध, हमारे गुरु देव ने कहा है, ‘अब रात हो गई है, अब आराम करो, तुमको अब काम करना है।’ इसलिए अपने कार्य को अच्छे से करने के लिए अब मैं तैयार हो रही हूँ।’
जिज्ञासु शिष्य उसका जवाब सुन थोड़ी दुविधा में था। उसने महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुनने वाले ओरदूसरे शिष्य से मिलने का निर्णय लिया। वह उसी पल चोर के घर पहुँच गया। वहाँ की स्थिति देख एक बार फिर यह जिज्ञासु शिष्य आश्चर्य में था क्यूंकि उस वक्त चोर सारे हथियार और चोरी के औज़ार निकाल कर चोरी करने जाने के लिए तैयारी कर रहा था। जिज्ञासु शिष्य तुरंत समझ गया कि चोर ने बुद्ध के दिए प्रवचन का अर्थ अपने अनुसार निकाल लिया है।
असल में दोस्तों, कहने-सुनने, लिखने-पढ़ने और देखने-दिखाने में बहुत फ़र्क़ है। यही फ़र्क़ अक्सर दो लोगों के बीच मतभेद से लेकर मन भेद तक पैदा करता है। याने रिश्तों में दरार तक पैदा कर देता है। अक्सर इस दुनिया में लोग बातों के अर्थ; क्या कहा गया है कि अपेक्षा, क्या सुनना चाहते हैं, से निकालते हैं। ठीक इसी तरह वे क्या लिखा गया है कि अपेक्षा, क्या पढ़ा गया है पर आधारित अर्थ निकालते है और ठीक इसी तरह उन्हें क्या दिखाया जा रहा कि अपेक्षा, उन्होंने क्या देखा है पर आधारित धारणा बनाते हैं। अक्सर भावों के कहने और समझने का यही अंतर मतभेद और मन भेद पैदा करता है। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘जो सुनना और समझना नहीं चाहता है उसे कितने भी विस्तार से और अच्छे से समझा दो; वह समझ नहीं पाएगा और जो समझना चाहता है उसे आपके कहे, लिखे और दिखाई गई चीजों की ज़रूरत ही नहीं है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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