Aug 20, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, सर्वप्रथम आप सभी को कृष्णाष्टमी अर्थात् कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई! वैसे तो दोस्तों, मैं इतना सामर्थ्यवान या समझदार नहीं हूँ कि 16 कलाओं और 64 विधाओं के पारखी भगवान श्री कृष्ण को समझा या उन पर टिप्पणी कर सकूँ। मेरा तो बल्कि यह मानना है कि जिसके स्मरण मात्र से ही इस मृत्युलोक या भवसागर को पार किया जा सकता है उसे समझने या उस पर चर्चा करने से क्या फ़ायदा? मुझे तो लगता है अगर आप स्वयं को सिर्फ़ पूरी तरह उन्हें समर्पित कर दें तो भी जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
लेकिन, फिर भी दोस्तों, बुद्धिमत्ता, चातुर्य, युद्ध नीति, आकर्षण, प्रेम भाव, गुरुत्व, सुख-दुःख और भी ना जाने क्या-क्या सिखाने वाले भगवान श्री कृष्ण को थोड़ा बहुत, जितना भी समझ पाया हूँ, फिर चाहे वह धर्म, राजनीति या नीति किसी से भी संदर्भित क्यूँ ना हो, को मैं आपसे 10 बिंदुओं में साझा करने का प्रयास करता हूँ। यक़ीन मानिएगा अगर यह मेरे जैसे व्यक्ति के जीवन को बेहतर बना सकते हैं तो यक़ीनन आपके जीवन को भी बदलने की क्षमता रखते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं-
1) कृष्ण पूर्णता या समग्रता का नाम है
अगर आप कृष्ण के जीवन में झांक कर देखेंगे तो आप पाएँगे कि जहाँ कृष्ण एक ओर विलासिता पूर्ण जीवन जीते दिखते हैं तो वहीं दूसरी ओर वे महान त्यागी के रूप में भी नज़र आते हैं। इसी तरह कृष्ण कभी शांति प्रिय तो ज़रूरत पड़ने पर क्रांति प्रिय भी नज़र आते हैं। जहाँ एक ओर वे मृदु भाषी हैं तो दूसरी ओर कठोर भी नज़र आते हैं। कृष्ण कभी मौन प्रिय तो कभी वाचाल नज़र आते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो कृष्ण में सब है और हाँ सब अपने आप में पूर्ण भी है। जहाँ उनमें सुदामा के लिए मित्रता का पूरा भाव नज़र आता है तो धर्म विरुद्ध कार्यों के लिए कंस या कौरवों के प्रति पूर्ण बैर। अर्थात् कहीं तो वे पूरी आसक्ति दिखाते हैं तो कहीं पूरी अनासक्ति, इसीलिए मैंने पूर्व में कहा कृष्ण पूर्णता या समग्रता का नाम है।
2) समयानुसार ईश्वर द्वारा दिए गए अपने रोल को पूर्णता के साथ निभाना
अगर आप कृष्ण के जीवन को देखेंगे तो आप पाएँगे कि उन्होंने समयानुसार दिए गए अपने हर रोल को पूर्णता के साथ निभाया था फिर चाहे वे उनकी बाल लीलाएँ हों या फिर गम्भीर भाव के साथ निभाया प्रौढ़ जीवन तो फिर कांत भाव के साथ गोपियों का उन्हें अपना बनाना या फिर योगिराज बन योगियों को अपना बनाना।
3) पद, प्रतिष्ठा, पैसे से ज़्यादा नैतिकता का सम्मान करना
कृष्ण जो स्वयं भगवान थे लेकिन उसके बाद भी सच्चाई का साथ देने के लिए दूत बने। इतना ही नहीं पद, पैसे एवं प्रतिष्ठा से मज़बूत कौरवों को अपनी चतुरंगिणी सेना सौंप खुद सारथी बन पांडवों का साथ दिया।
4) अन्याय, अत्याचार और अनीति से लड़ना
भगवान श्री कृष्ण के जीवन को अगर आप देखेंगे तो आप पाएँगे कि उन्होंने हमेशा धर्म का साथ देकर अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी है। जहाँ सामान्य जीवन में इंसान अपनों और सामर्थ्यवान या शक्तिवान व्यक्ति के ख़िलाफ़ बोल नहीं पाता है वही श्री कृष्ण ने मात्र सात वर्ष की आयु में इन्द्र को चुनौती देकर उनका अभिमान नष्ट किया। इसी तरह अपने ही कुल के लोग जब कुमार्ग या अनैतिक तरीक़े से जीवन में चले तो उन्होंने बिना किसी संकोच व मोह के उनका परित्याग कर दिया। अत: अन्याय, अत्याचार और अनीति का विरोध ही श्री कृष्ण की सच्चा अनुसरण होगा।
5) रिश्तों को पूर्णता के साथ निभाना
बात भाई के रूप में द्रौपदी का मान बचाने की हो या फिर देवकी अथवा यशोदा के साथ माँ का रिश्ता निभाना। अगर आप देखेंगे तो दाऊ, सुभद्रा, राधा, गोपियों, बाल ग्वालों सहित हर किसी से भगवान कृष्ण ने हर रिश्ते को पूर्णता के साथ निभाया। यहाँ तक कि कौरवों को भी ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने उपकृत किया, उनकी मदद करी।
6) परिस्थिति कैसी भी क्यों ना हो मीठा बोलना और शांत रहना
भगवान कृष्ण का हमेशा बांसुरी को साथ रखना भी हमें एक महत्वपूर्ण सीख देता है। बांसुरी को अगर आप देखेंगे तो आप पाएँगे कि उसमें अनेक सुराख़ रहते हैं, लेकिन जब इसमें फूंक मारी जाती है तो ध्वनि मीठी ही निकलती है। इससे हमें अपने जीवन को आसान और सुरम्य बनाने की एक बड़ी महत्वपूर्ण सीख मिलती है कि अपने व्यवहार का सदैव अहंकार, क्रोध और लालच से दूर रख मीठी वाणी का प्रयोगकर प्रेम और शांति के साथ जीवन जीना चाहिए।
7) मन को जीतें और प्रकृति के सानिध्य में रहें
भगवान श्री कृष्ण ने राधा से मिले दो उपहार वैजयंती माला और मोर पंख को सदैव अपने ऊपर धारण कर रखा। पहला उपहार वैजयंती माला, जो विजय का प्रतीक है, को उन्होंने अपने गले में, तो मोर पंख, जो प्रकृति का प्रतीक है, को अपने माथे पर धारण करा। इससे उन्होंने हमें संदेश दिया कि जीवन को अर्थपूर्ण जीते हुए सफल होने के लिए सफलता को अपने अंदर मत उतरने दो और प्रकृति को सर्वोपरि स्थान दो। इसके साथ ही मन और दिमाग़ को सदैव सकारात्मक रखो।
8) नेतृत्व ही परिणाम बदलता है
दोस्तों, अगर आप कौरवों और पांडवों की तुलना करेंगे तो आप पाएँगे कि कौरव सैन्य बल से लेकर पैसे, सैनिकों की संख्या से लेकर कर्ण या भीष्म अथवा द्रोणाचार्य जैसे योद्धाओं के साथ, हर स्थिति-परिस्थिति में बेहतर थे। लेकिन पांडवों के पास श्री कृष्ण जैसा नेतृत्व था जिसने तमाम स्थितियों को पलट उन्हें विजेता बना दिया था। इससे हमें सबसे बड़ी सीख मिलती है कि संसाधन या टीम नहीं हमें सही नेतृत्व जीवन में बेहतर बनाता है।
9) अहंकार का करें त्याग
यह पता होने के बाद भी कि वे स्वयं ईश्वर या भगवान है, श्री कृष्ण ने इस बात का कभी अहंकार नहीं करा इसी वजह से हर परिस्थिति में शांत नज़र आए। दोस्तों, किसी सफलता पर अहंकार के बाद असफलता क्रोध, द्वेष जैसे नकारात्मक भाव पैदा कर आपकी शांति भंग करती है और आप वर्तमान में अपना पूर्ण, कभी भी नहीं दे पाते हैं।
10) जीवन अंधकार से प्रकाश की यात्रा है
भगवान कृष्ण की बात की जाए और गीता का उल्लेख ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है? भगवान कृष्ण ने गीता के उपदेश से अर्जुन की उलझन दूर करी थी। अर्थात् गीता के माध्यम से भगवान ने संदेश दिया था कि जीवन की यात्रा उलझन से सुलझन या अंधकार से प्रकाश की यात्रा है। जितना आप भगवान श्री कृष्ण के विचारों से खुद को सुलझाते जाएँगे, अपने जीवन को बेहतर बनाते जाएँगे।
इन्हीं विचारों के साथ आपको एक बार फिर कृष्णाष्टमी अर्थात् कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई देते हुए विदा लेता हूँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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