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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

क्या आप अपने बच्चे को ‘सुपर किड’ बना रहे हैं…

Sep 15, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, चलिए आज के लेख की शुरुआत एक प्रश्न से करते हैं, ‘बताइये गाड़ी में ब्रेक क्यों होते हैं?’ क्या कहा आपने? गाड़ी रोकने के लिए, और हाँ कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि गाड़ी को चलाते समय कंट्रोल करने के लिए। सही सुना ना मैंने? अरे यह क्या… इस प्रश्न पर कुछ लोगों के हँसने की आवाज़ क्यों आ रही है। हंसने के स्थान पर आप जरा अपना मत भी बता दीजिए। अच्छा आप कह रहे हैं, ‘इतना घिसा-पिटा पुराना प्रश्न क्यों पूछ रहा हूँ? भई गाड़ी के ब्रेक असल में गाड़ी को तेज चलाने के लिए होते हैं।’


दोस्तों, मैं आप सभी लोगों की सराहना करना चाहूँगा क्योंकि आप सभी ने किसी ना किसी रूप में इस प्रश्न का जवाब दिया है। साथ ही मैं आपको यह भी बताना चाहूँगा कि मेरी नज़र में आप सभी के जवाब सही हैं क्योंकि ब्रेक को देखने का हम सब का नज़रिया अलग-अलग हो सकता है। जी हाँ साथियों, आप सभी लोग सही हैं क्योंकि यह व्यक्तिगत धारणा का मामला है। अगर आप मुझसे मेरा नज़रिया साझा करने के लिए कहेंगे तो मैं कहूँगा, ‘कार के ब्रेक हमें इसे तेज चलाने की आज़ादी देते हैं।’ चलिए अब मैं एक छोटा सा अंतिम प्रश्न आप लोगों से और पूछ लेता हूँ।


अब आप में से कितने लोग मेरे इस नज़रिये से सहमत हैं कि कार के ब्रेक हमें इसे तेज चलाने की आज़ादी देते हैं? लगभग सभी, सही कहा ना? फिर दोस्तों, यही बात हम अपने बच्चों को क्यों नहीं सीखा पा रहे हैं? स्पष्ट नहीं हुआ ना मैं क्या कहना चाह रहा हूँ? तो चलिए पहले घटना विस्तार से बता देता हूँ। आज सुबह समाचार पत्र को हाथ में लिया ही था कि मेरी नज़र एक समाचार पर जाकर अटक गई। इंदौर में ग्यारहवीं कक्षा की एक छात्रा ने सिर्फ़ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि त्रैमासिक परीक्षा में कम नंबर आने पर उसे उसके पिता ने और खुले बाल घूमने पर उसे उसकी बहन ने टोक दिया था। आप स्वयं गंभीरता से सोच कर बताइये क्या यह इतना बड़ा कारण था जिसकी वजह से एक प्यारी सी बच्ची को अपनी जान देना पड़े? मेरी नज़र में तो नहीं।


असल में दोस्तों, हम अपने बच्चे को ‘सुपर किड’ याने हर क्षेत्र में नंबर वन आने वाला बनाने की चाह में उन्हें असफलता का मूल्य सीखना ही भूल गए हैं। कहीं ना कहीं हम उन्हें यह नहीं बता पा रहे हैं कि असफलता हमें बड़ी सफलता के लिए तैयार करती है। एक खिलाड़ी को देखिए वह मैच हारने के बाद सिर्फ़ रोता ही नहीं रहता है। मैच के बाद वह अपनी ग़लतियों का आकलन करता है और उन्हें कैसे सुधारा जा सकता है इस पर विचार करता है और अंत में योजनाबद्ध तरीक़े से प्रैक्टिस कर उस गलती को दूर कर आने वाले मैचों के लिये या जीत के लिए ख़ुद को तैयार करता है। बस; यही हमें बच्चों को ज़िंदगी के विषय में सिखाना होगा। इसका सबसे आसान रास्ता है, हंसी-मजाक, मस्ती में बच्चों को अपनी ग़लतियों को, उससे मिली सीखों को बताइये। साथ ही उन्हें यह भी बताइये कि आने वाले जीवन में आपको इस गलती से मिली सीखों ने कैसे बेहतर या सफल बनाया।


अगर मेरे इस लेख को कुछ बच्चे पढ़ रहे हों तो मैं उनसे सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि आपके माता-पिता या परिवार के सभी बड़े लोग और आपके शिक्षक असल में आपकी ज़िंदगी के वो ब्रेक हैं, जो आपको जीवन में तेज़ी से आगे बढ़ने याने सफलता के शिखर को छूने की आज़ादी देते हैं। असल में वे आपको आगे बढ़ने से रोक नहीं रहे हैं, वे तो आपको अपने अनुभव से ज़िंदगी की राह में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर रहे हैं।


अंत में इतना ही कहना चाहूँगा दोस्तों, ज़िंदगी हमेशा उतार-चढ़ाव से भरी ही होती है। इसमें अच्छा-बुरा, ऊँच-नीच, सफलता-असफलता, सुख-दुख आदि सब चलता ही रहता है। हमें अपने बच्चों को बस इतना ही सिखाना है कि वे उपरोक्त सभी बातों को नज़रंदाज़ कर हर हाल में खुश रह सकें।

-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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