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ख़ुशी का मूल मंत्र…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 17, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत हम एक प्यारी सी कहानी से करते हैं। मंदिर के पास चाय बेचने वाला रामू आज बहुत थक गया था क्योंकि आज त्यौहार होने के कारण मंदिर में बहुत ज़्यादा भीड़ थी और इसी वजह से दिन भर उसकी दुकान पर ढेरों ग्राहक बने रहे। दिन भर, बिना एक पल का ब्रेक लिए काम करते रहने के कारण रामू काफ़ी थका हुआ महसूस कर रहा था और शाम होते-होते तो उसे सिर में तेज़ दर्द भी महसूस होने लगा था।


सरदर्द के कारण जब उसे खुद की स्थिति हाथ से निकलती नज़र आई तो उसने अपनी दुकान के समीप ही स्थित मेडिकल स्टोर से सरदर्द की गोली लाकर खाने का निर्णय लिया। उसने अपने साथी कर्मचारी को दुकान पर ध्यान देने का निर्देश दिया और पास के मेडिकल स्टोर पर पहुँचा और सरदर्द की गोली खा वही थोड़ी देर सुस्ताने के लिए बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब रामू को अच्छा लगा तो उसने मेडिकल स्टोर पर कार्य कर रही लड़की से प्रश्न करते हुए कहा, ‘रश्मि, आज राजू भाई, केमिस्ट दुकान पर नहीं दिख रहे हैं, कहाँ गए वे?’ रश्मि मुस्कुराते हुए बोली, ‘रामू भैया, आज दिन भर अति व्यस्तता के कारण राजू भैया का सर दुखने लगा था। इसलिए वे मुझे दुकान सम्भालने का कहकर आपकी चाय की दुकान पर कड़क चाय पीने गए हैं। जाते-जाते वे मुझे कह रहे थे कि आपके हाथ की बने एक कप गर्मागर्म चाय पीते ही उनका सरदर्द ठीक हो जाएगा।


रश्मि का जवाब सुनते ही राजू कुछ पलों के लिए तो एकदम अवाक खड़ा रह गया, उसकी हालत, ‘काटो तो खून नहीं समान’ थी। उसने खुद को सम्भाला और धीरे से रश्मि को बोला, ‘ओह मैं समझ गया, मैं अभी जाकर उनके लिए एक अच्छी चाय बनाता हूँ।’ मेडिकल स्टोर से जाते-जाते रामू सोच रहा था कि सरदर्द का इलाज खुद के पास याने समस्या का हल खुद के पास होने के बाद भी वह क्यों उसके समाधान के लिए दूसरे के पास गया?


दोस्तों, बात सुनने में बड़ी साधारण और अजीब लग रही है, लेकिन हक़ीक़त में यह अपने अंदर एकदम सच्चे और गहरे संदेश को लिए हुए है। असल में, यह कहानी जो हमारे अंदर है उसे बाहर खोजने की हमारी प्रवृति को बताती है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मेरी नज़र में शांति एवं ख़ुशी मन की एक अवस्था है क्योंकि हम कितने शांत और सुखी हैं, इसकी अवधारणा हमारा मन ही तय करता है। जैसे, कई लोग शांति और ख़ुशी पाने के लिए जाने क्या-क्या जतन करते हैं, लेकिन फिर भी असंतुष्ट ही रहते हैं। इन लोगों से अगर आप बात करेंगे तो पाएँगे कि पूरी दुनिया नापने और दुनिया भर की चीज़ें बटोरने के बाद भी इन्हें अभी भी अपने जीवन में कुछ ना कुछ कम नज़र आता है और इसी वजह से यह लोग असंतुष्ट रहते हैं अर्थात्, पहले वे सुख और शांति को पैसे, पद, प्रतिष्ठा, अन्य संसाधन या भौतिक चीजों के माध्यम से पाने का प्रयास करते हैं और जब उनको यह सब चीज़ें मिल जाती है तो भी उन्हें अपने अंदर एक ख़ालीपन का एहसास महसूस होता है। वे महसूस करते हैं कि सब कुछ होने के बाद भी, कुछ ना कुछ अधूरा ही है। लेकिन जब वे इस अधूरेपन को मिटाने के लिए पूजा-पाठ या ध्यान का सहारा ले अपने अंदर की यात्रा करते हैं अर्थात् खुद के अंदर ही खुद को पाते हैं, तो सही मायने में संतुष्टि, तृप्ति, ख़ुशी और शांति को पा पाते हैं। जी हाँ दोस्तों, ईश्वर ने स्वयं को और हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजों को हमारे अंदर ही छिपाया है। लेकिन अक्सर बाहरी चकाचौंध में भटकने की वजह से हम उसे बाहर तलाशते हैं और परेशानी भरा जीवन जीते हैं। आईए दोस्तों, आज से सबसे पहले खुद के अंदर खुद को खोजते हैं और इस जीवन को उद्देश्यपूर्ण तरीक़े से जीते हैं क्योंकि असली शांति, ख़ुशी और संतुष्टि हमारे अपने दिल में है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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