top of page

ख़ुशी महसूस करवाने वाली 6 धारणाएँ जो असल में हमारी ख़ुशियाँ चुराती हैं - भाग 1

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Jan 18, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन को पूर्णता के स्तर तक खुश रहते हुए जीने की चाह हम सभी में इतनी ज़्यादा होती है कि हम हर पल उसे पाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, अपना सर्वश्रेष्ठ देते है। लेकिन अक्सर ग़लत धारणाओं का पीछा करते हुए उसे अपने जीवन में पा नहीं पाते हैं जैसे - अच्छे कैरियर या ढेर सारे पैसों से सफलता या ख़ुशी पाना। गहराई में जाकर अगर आप देखेंगे तो पाएँगे कि भ्रामक विज्ञापनों ने हमारी मूल सोच को ही प्रदूषित कर दिया है, जिसकी वजह से हम ग़लत धारणाएँ बना, अपने जीवन को उलझनों से भरा बना लेते हैं। अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में विज्ञान विभाग के निदेशक एमिलियाना साइमन-थॉमस का कहना है, ‘लोकप्रिय मीडिया और मार्केटिंग द्वारा हमें ख़ुशी के विषय में इतने भ्रामक तरीके से बताया जाता है कि हम उन चीजों को ख़ुशी पाने का साधन मान लेते हैं जो वास्तव में हमें उससे दूर करती है।’ हालाँकि पश्चिमी दुनिया के मुक़ाबले हम भारतीय एक समाज के रूप में ज़्यादा बेहतर स्थिति में हैं। हमारे धर्म, हमारे समाज, हमारी संस्कृति में शांति और ख़ुशी जैसे चरम सुखों को पाने के विषय में ज़्यादा बेहतर तरीके से बताया है। हालाँकि आँखें मुंद कर पश्चिम का अनुसरण करने के कारण हमारे कई युवा आजकल भटक रहे हैं। आईए, आज हम उन 5 कारणों को समझने का प्रयास करते हैं जिनके विषय में हमारे युवाओं या हमें यह बताया जाता है कि यह हमें खुशहाल बनाते हैं, लेकिन हक़ीक़त में यह हमें हमारी आंतरिक ख़ुशी से कई बार कोसों दूर ले जाते हैं।


1) नकारात्मक भावों को दबाना या नज़रंदाज़ करना

अक्सर हमें लगता है कि हर पल मौज में रहना, खुश रहना एक आसान नहीं, अपितु बहुत ही बड़ा लक्ष्य है। इसलिए अक्सर लोग हमेशा खुश रहने की चाहत में अपने भय, क्रोध, आक्रोश या अन्य नकारात्मक भावों को दबाने या नज़रंदाज़ करने का प्रयास करते हैं। लेकिन येल विश्वविद्यालय में संज्ञानात्मक वैज्ञानिक और मनोविज्ञान के प्रोफेसर लॉरी सैंटोस द्वार की गई रिसर्च के परिणाम बताते हैं कि खुश रहते हुए सार्थक जीवन जीने के लिए हर समय अच्छा महसूस करने के प्रयास अंततः नकारात्मक भावों को लगातार दबाने के कारण भावनात्मक रूप से ज़्यादा अस्थिर बनाते हैं, जो अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी बाधा है। एक अन्य अध्ययन से यह भी पता चला है कि हताशा, घृणा जैसी भावनाओं को दबाना इंसान को आक्रामक बनाता है, आपके सम्बन्धों को कमजोर करता है याने घनिष्ठता कम करता है और असामयिक मृत्यु के जोखिम को भी बढ़ाता है। वैसे भी साथियों, संतुलित भावनाओं के बिना ख़ुश रहने का सोचना कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है। इसलिए नकारात्मक भावों को दबाने या नज़रंदाज़ करने के स्थान पर उन्हें डील करना सीखें और साथ ही यह भी स्वीकारें कि एक अच्छे जीवन या ख़ुशी के अच्छे एहसास के लिए नकारात्मकता का एहसास का होना भी आवश्यक है।


2) शहरी जीवन को बेहतर मानना

रिसर्च का एक आँकड़ा बताता है कि 72 प्रतिशत गाँव या क़स्बों में रहने वाले लोग शहरी जीवन को बेहतर मानते हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह शहरी चकाचौंध का आकर्षण होता है। जैसे मुंबई को मायानगरी के रूप में देखना या ऐसा शहर मानना जो कभी सोता नहीं है, जहाँ कि जीवनशैली या चकाचौंध का आकर्षण आपको आकर्षित करता है, कहीं से भी आपकी आंतरिक शांति के लिए आवश्यक नहीं है।


कनाडा स्थित वाटरलू विश्वविद्यालय के एक न्यूरोसाइंटिस्ट कॉलिन एलार्ड द्वारा किया गया एक अध्ययन बताता है कि हमारे अंतर्मन को प्रकृति द्वारा 150 लोगों के सामाजिक ढाँचे के बीच रहने के हिसाब से बनाया गया है। लेकिन जब आप ऐसे स्थानों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों की ओर रुख़ करते हैं, जहाँ कि आबादी इससे कई गुना अधिक होती है, वहाँ अक्सर हम खुद को अजनबियों की भीड़ से घिरा पाते हैं। जो हमें असुरक्षित, भावनात्मक रूप से डरा हुआ या अनिश्चितता का अनुभव करा हमारे अंदर कोर्टिसोल जैसे तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन के स्तर को बढ़ा सकता है। वैसे भी लोग उन स्थितियों में मानसिक रूप से संघर्ष करते हैं जहाँ वे अपनी परिस्थितियों पर खुद का नियंत्रण नहीं पाते हैं, जो कि शहरों में आम है। अक्सर आप शहरों में दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं या चुनौतियों से निपटने के लिए स्वयं को अक्षम पाते हैं। जैसे गाड़ियों के शोर करते हॉर्न की आवाज़ को रोकना, शहरी सफ़ाई या भीड़ भरे शहरी क्षेत्र की सफ़ाई के लिए आप कुछ नहीं कर सकते। लेकिन अगर आप सौभाग्य से शहरी क्षेत्र में ही रह रहे हैं तो आपको स्वयं को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए योजना बनानी होगी। जैसे, स्वयं की आवश्यकताओं या व्यवहार के अनुरूप एक इनर सर्कल विकसित करना। अनावश्यक रूप से भीड़ वाले क्षेत्रों में जाने से बचना, अपने आसपास अपनी आवश्यकता के अनुरूप माहौल विकसित करना आदि।


आज के लिए इतना ही दोस्तों, बाक़ी चार सूत्रों पर चर्चा हम आने वाले दिनों में करेंगे।


निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

10 views0 comments

Comments


bottom of page