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‘गूगल ज्ञानी’ - असफलता की निशानी !!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 8, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सबसे पहले तो आपसे हाथ जोड़कर माफ़ी चाहता हूँ क्यूँकि आज के लेख की शुरुआत मैं कुछ कठोर शब्दों से करने जा रहा हूँ। लेकिन जिस तरह कड़वी दवाई स्वास्थ्य को ठीक करने या अच्छा रखने के लिए ली जाती है, ठीक उसी तरह कई बार कड़वे या कठोर शब्द हमें या हमारे भविष्य को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक हो जाते हैं।


आजकल युवा वर्ग की सोच, नज़रिए और कार्य करने के तरीके में एक बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। वैसे यह भी कहा जा सकता है कि युवा वर्ग एक नए चलन की शुरुआत कर रहा है। यह सभी युवा बहुत बड़े सपनों या लक्ष्यों के साथ अपने जीवन को जीना चाहते हैं और उसी आधार पर वे पढ़ाई से लेकर चीजों तक का चुनाव करते हैं। लेकिन अक्सर देखने में आता है कि उनके निर्णय के पीछे आधी-अधूरी जानकारी रहती है। दोस्तों थोड़ा गहराई से जाकर अगर देखेंगे तो आप पाएँगे ये युवा गूगल से लिए गए ज्ञान याने अधूरी, अधकचरी जानकारी के आधार पर स्वयं को ज्ञानी या विशेषज्ञ मान निर्णय लेते हैं। हालाँकि मैं इस बात को पूरे खुले दिल के साथ स्वीकारता हूँ कि आज की पीढ़ी हमारे मुक़ाबले में बहुत अधिक इंटेलिजेंट है लेकिन फिर भी मुझे लगता है, कैरियर के शुरुआती वर्षों में मिली असफलता उनकी इसी सोच का परिणाम होती है। आईए, इन युवाओं की स्थिति को हम गौतम बुद्ध के जीवन की एक घटना से समझने का प्रयास करते हैं।


लोगों को जागरूक करने या उन्हें जीवन का ज्ञान अथवा बोध कराने के उद्देश्य से गौतम बुद्ध रोज़ प्रवचन दिया करते थे। एक दिन उनके प्रवचन समाप्त होते ही अंकमाल नाम का युवा उनके पास आया और बोला, ‘भगवान, आपके प्रवचन से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ। मेरी भी इच्छा है कि मैं इस संसार की कुछ सेवा कर सकूँ। आपको मेरे लिए जो भी कार्य उचित लगे मुझे बताएँ, मैं पूरे संसार में कहीं भी जाकर कार्य करने के लिए तैयार हूँ। मैं भी आप ही की तरह लोगों को धर्म का रास्ता दिखाना चाहता हूँ।’ युवक की बात सुन गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, संसार को आप कोई भी चीज़ तब दे सकते हैं जब आपके पास कुछ हो। सबसे पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ और खुद को संसार को कुछ देने के लिए तैयार करो।’ अंकमाल को भगवान बुद्ध की बात उचित लगी उसने महसूस किया कि वाक़ई वह किसी भी कला में निपुण नहीं है, फिर भला वह संसार को क्या दे सकता है ?’


उक्त विचार आते ही अंकमाल ने भगवान बुद्ध से आशीर्वाद लिया और विभिन्न कलाओं के अभ्यास में जुट गया। 10 वर्ष तक कलाओं के कठोर अभ्यास के कारण अंकमाल चित्रकला, मल्ल विद्या, मल्लाहकारी, बाण बनाने आदि की कला में पारंगत हो गया। इसी वजह से उसकी ख्याति पूरे देश में ‘कला विशारद’ के रूप में फैलने लगी।


ख्याति के साथ अंकमाल में अभिमान भी आ गया था। एक दिन वह उसी अभिमान के साथ भगवान बुद्ध के पास पहुँचा और अपनी कलाओं का बखान करते हुए बोला, ‘प्रभु! अब मैं 24 कलाओं में पारंगत हो गया हूँ, इसलिए संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कुछ ना कुछ सिखा सकता हूँ।’ अंकमाल की बात सुन इस बार भी भगवान बुद्ध मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, अभी तो तुमने 24 कलाएँ सीखी हैं, अभी किस बात का अभिमान? ज़रा एक बार परीक्षा उत्तीर्ण कर लो फिर अभिमान करना।’ अंकमाल को भगवान बुद्ध की बात उचित लगी, उसने उन्हें प्रणाम किया और वहाँ से चला गया।


अगले दिन भगवान बुद्ध भेष बदलकर अंकमाल के पास पहुंचे और उसे अकारण ही भला-बुरा कहने लगे। अनजान व्यक्ति से अनर्गल बातें सुन अंकमाल को बहुत जोर से ग़ुस्सा आया और वह भेष बदले भगवान बुद्ध को मारने के लिए दौड़ा। भगवान बुद्ध वहाँ से मुस्कुराते हुए भाग निकले।


उसी दिन दोपहर में दो युवक भेष बदलकर अंकमाल के पास पहुंचे और बोले, ‘आचार्य, सम्राट हर्ष आपको मंत्री पद देना चाहते हैं, क्या आप स्वीकार करेंगे?’ मंत्री पद के बारे में सुन अंकमाल के मन में लालच जाग गया और वह बोला, ‘हाँ-हाँ, बिलकुल, मैं अभी चलने के लिए तैयार हूँ।’ दोनों युवकों ने मुस्कुराकर बाद में मिलने का कहा और वहाँ से चले गए। अंकमाल को कुछ भी समझ नहीं आया, वह तो बस हैरान था।संध्या के समय अंकमाल जब भगवान बुद्ध से मिलने के लिए पहुँचा। भगवान बुद्ध तब आम्रपाली के साथ थे। आम्रपाली जितनी देर वहाँ रही अंकमाल का पूरा ध्यान उन्हीं के ऊपर केंद्रित रहा।


आम्रपाली के जाने के पश्चात भगवान बुद्ध अंकमाल से बोले, ‘वत्स, परीक्षा स्वरूप में तुमसे सिर्फ़ एक प्रश्न पूछना चाहूँगा, क्या तुमने क्रोध, काम और लोभ पर विजय प्राप्त करने की कला सीखी है?’ अंकमाल को उसी पल दिनभर में घटी सभी घटनाएँ याद आ गई और वह लज्जा से अपना सर झुकाकर वहाँ से चला गया और आत्म विजय की साधना में लीन हो गया।


दोस्तों गूगल ज्ञान के आधे-अधूरे, अधकचरी जानकारी के आधार पर सफल होने का सपना देखने वाले युवाओं से में एक ही बात कहना चाहता हूँ, ‘अगर जीवन में सफल होना चाहते हैं तो सबसे पहले उस क्षेत्र के ज्ञानी बनो जिसमें काम करने का निर्णय लिया है। जब आपके पास ज्ञान हो जाए तब आप इस ज्ञान को काम में लेने का कौशल विकसित करें और अंत में इस ज्ञान और कौशल का उपयोग सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ समाज की भलाई के लिए करें, आपके सपने खुद-ब-खुद पूरे होने लगेंगे।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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