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ज़िंदगी एक पाठशाला…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Updated: Oct 25, 2022

Oct 23, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में रोज़ अपने आस-पास घटती घटनाओं को देख एक ही विचार मन में आता है, ‘जीवन वह पाठशाला है, जहाँ हर व्यक्ति एक शिक्षक और हर घटना एक सबक़ है।’ जी हाँ साथियों, अगर आप मेरी बात पर थोड़ा सा गंभीरता से विचार करेंगे तो समझ पाएँगे कि आज तक आप जिनसे भी मिले और जीवन में जो भी घटना घटी, उसने हमें कुछ ना कुछ ज़रूर सिखाया है। इसीलिए, मैंने हमारी ज़िंदगी में आए हर इंसान को शिक्षक और जीवन में घटी हर घटना को एक सबक़ कहा है।


अपनी बात को मैं हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। कल दीपावली के लिए सजे बाज़ार की रौनक़ निहारते हुए मैं गाड़ी में बैठ अपने मित्र के आने का इंतज़ार कर रहा था। तभी एक युवा सिंघाड़े बेचने वाली बुजुर्ग महिला के पास पहुँचा और अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हुए सिंघाड़े का भाव पूछने लगा। पहली बार तो बुजुर्ग महिला ने उसके लहजे को नज़रंदाज़ करते हुए भाव बता दिया। लेकिन उसके बाद उस युवा ने पुराने अशिष्ट अन्दाज़ में ही बुजुर्ग महिला को 2 किलो सिंघाड़े गोल काट कर देने का कहा। इस बार सड़क किनारे ज़मीन पर बैठ कर सिंघाड़े बेच रही बुजुर्ग महिला का तेवर थोड़ा सा बदल गया और उसने गोल काट कर सिंघाड़े देने से इनकार कर दिया। उस युवा ने एक बार फिर अपने उसी लहजे में कहा, ’25-50 रुपए ज़्यादा ले लेना और ज़रा जल्दी दे दे।’ इतना कहकर वह युवा अंग्रेज़ी में बुदबुदाता हुआ बोला, ‘ज़रा सा मौक़ा मिलते ही ये लोग लूटना शुरू कर देते हैं।’



बुजुर्ग महिला ने उस युवा की कही बात और उसकी मौजूदगी को लगभग नकारते हुए कहा, ‘कहीं ओर से ले लो, यह सिंघाड़े बेचने के लिए नहीं है।’ महिला की बात से चिढ़ते हुए मुँह बनाकर वह युवा आगे बढ़ गया। बुजुर्ग महिला का जवाब सुन मैं हैरान था क्यूँकि उसके पास कुल मिलाकर शायद 10 किलो सिंघाड़े होंगे, जिन्हें वह धूप में सड़क पर बैठकर बेचने का प्रयास कर रही थी, लेकिन ज़्यादा भाव में भी देने के लिए तैयार नहीं थी। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं उनके पास पहुँचा और नम्र आवाज़ में निवेदन करते हुए आधा किलो गोल काटे सिंघाड़े देने का कहा। बुजुर्ग महिला ने उसी पल सिंघाड़े तोले और काट कर मुझे दे दिए। अब मेरी हैरानी और बढ़ गई थी। मैंने उसी पल उनसे कहा, ‘अम्मा, वह लड़का आपको अभी ज़्यादा पैसे देकर सिंघाड़े देने के लिए कह रहा था पर आपने उसे बेचने से इनकार कर दिया।’ मैं आगे कुछ कहता उसके पहले ही वह बुजुर्ग महिला बोली, ‘भैया, मैं उसको सिखाना चाहती थी कि हर चीज़ को पैसे के सामर्थ्य से नहीं ख़रीदा जा सकता है।’



उस महिला के शब्दों ने मुझे जीवन की एक बड़ी सीख दे दी थी। मैंने उन्हें धन्यवाद कहा और वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठ गया। कुछ पलों बाद सिंघाड़े खाते वक्त मैं सोच रहा था जीवन को बेहतर तरीके से चलाने के लिए सिर्फ़ पैसों का सामर्थ्य काफ़ी नहीं है। उसके लिए तो हमें मानव जीवन के सबसे बड़े सामर्थ्य, विनम्रता और सहनशीलता को अपने अंदर विकसित करना होगा। जी हाँ साथियों, सामर्थ्य का अर्थ कभी भी सामने वाले को अपनी ताक़त, फिर चाहे वह पैसों की हो या शारीरिक, के बल पर अपने सामने झुकाना नहीं होता। अपितु सामर्थ्य तो सब कुछ होने के बाद भी झुककर रहने में ही होता है। इसीलिए मेरा मानना है, जीवन की महानता, सामर्थ्य के साथ विनम्रता का आना है।


लेकिन आजकल अक्सर इसका विपरीत अधिक देखने में नज़र आता है। आजकल लोग सामर्थ्य बनते ही विनम्रता को भूल जाते हैं और पैसे या ताक़त के बल पर ही सब कुछ पाने का प्रयास करते हैं। याद रखिएगा साथियों, आप जीवन में सही मायने में तभी सफल हो सकते हैं जब आपके पास अच्छे स्वास्थ्य के साथ पैसा और सम्मान भी हो और यह तभी आ सकता है जब आप अपने अंदर दूसरों के लिए सम्मान का भाव जागृत कर सकें। अर्थात् पैसों और ताक़त के साथ अपने अंदर शालीनता, विनम्रता और इंसानियत भी बढ़ा सकें। उदाहरण के लिए आप भगवान श्री कृष्ण को देख सकते हैं, वे बलवान होने के साथ-साथ जीवन भर शीलवान भी रहे।


पूरी गम्भीरता के साथ साथियों एक बार सोच कर देखिएगा, भला वह सामर्थ्य किस काम का, जो हमारी विनम्रता को खत्म कर हमारे अंदर अहंकार बढ़ाता हो। शारीरिक अथवा पैसे के बल का सही उपयोग लोगों को झुकाना या सम्मान प्राप्त करना नहीं है बल्कि लोगों को सम्मान देने के लिए करना है। याद रखिएगा, बिना झुके संवाद नहीं विवाद होता है। तो आइए साथियों, इस दीपावली पर हम प्रण लेते हैं कि हम अपने जीवन को झुक कर जिएँगे ताकी दूसरों के आशीर्वाद भरे हाथ सहजता के साथ हमारे सिर तक पहुँच सकें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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