Feb 14, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक प्यारी सी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, सुदूर एक गाँव के बीच से एक नदी बहा करती थी जिसके एक किनारे पर गाँव का मंदिर और बाज़ार था, तो दूसरे किनारे पर गाँववासी रहा करते थे। इसी वजह से गाँववासियों को छोटे-मोटे काम के लिए भी नाव से नदी पार करके दूसरी ओर जाना पड़ता था। उसी गाँव में रहने वाले एक साधु महाराज को भी मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए नाव से नदी की दूसरी ओर जाना पड़ता था। लेकिन नाविक उनसे कभी इसके पैसे नहीं लेता था। साधु महाराज भी नाविक के इस कार्य के बदले में ज्ञान और धर्म की कुछ बातें नाविक से साझा कर लिया करते थे। जैसे, अर्थ सहित श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक सुनाना, धर्म की बारिकियाँ समझाना आदि। नाविक भी साधु महाराज की बातों को बड़े ध्यान से सुनकर अपने अंतर्मन में बैठाता जाता था।
एक दिन साधु महाराज जी ने नाविक को अपने घर पर बुलवाया और उसे अपने बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, ‘वत्स, मैं पहले एक बहुत बड़ा धनी व्यापारी था। ईश्वर की कृपा से सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक एक दुर्घटना में मैंने अपने पूरे परिवार खो दिया। इस घटना से मिले दर्द और उपजे वैराग्य की वजह से बाद मैंने सब-कुछ छोड़ दिया और साधु बन गया। लेकिन उस समय बहुत सारा संचित धन आज भी मेरे पास रखा है जिसे मैं तुमको देना चाहता हूँ। इस धन से तुम अपने और अपने परिवार के जीवन को संवार सकते हो।’
नाविक ने साधु की बात तो बड़े ध्यान से सुनी लेकिन उनकी आशा के विपरीत धन लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘साधु महाराज जी, मैं आपसे यह धन नहीं ले सकता हूँ क्योंकि बिना मेहनत के कमाया धन घर में जाते ही हम सब का आचरण बिगाड़ देगा। हो सकता है, इस धन की वजह से मैं और मेरे परिवार वाले मेहनत करना बंद कर दें, आलसी बन जाएँ और लोभ व लालच के चुंगल में फँस जाएँ। नदी पार करते वक्त दिए उपदेश में आप ही ने तो मुझे सिखाया था कि हम हर पल ईश्वर की नज़रों में रहते हैं, तो फिर मैं उस पर अविश्वास क्यों करूँ? जो मेरी क़िस्मत में होगा वह मुझे मेरी मेहनत के बदले अपने आप मिल जाएगा।’ इतना कहकर नाविक ने साधु महाराज जी को प्रणाम किया और अपने रास्ते चल दिया।
दोस्तों, आप स्वयं सोच कर देखिए दोनों में असली साधु कौन था? वह व्यक्ति जो आपदा आने पर भगवा पहन साधु बन कर बैठ गया या वह नाविक। साधु को सभी धर्मग्रंथ याद थे, लेकिन उसके बाद भी वह धन का लोभ छोड़ नहीं पा रहा था। वह हर पल उस धन के लिए सुपात्र खोजने में लगा रहता था। दूसरी ओर नाविक अनपढ़ था, उसे धर्म के बारे में भी ज़्यादा कुछ पता नहीं था लेकिन फिर भी वह साधु से ईश्वर या धर्म के बारे में सुनी गई बातों पर पूर्ण आस्था के साथ विश्वास रखता था और उन बातों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता था। इसीलिए उसने श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक से मिली सीख के आधार पर बिना मेहनत के आए पैसे को ठुकरा दिया। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उसने संसार में लिप्त रहकर भी, निर्लिप्त रहना सीख लिया था। उसने सिद्ध कर दिया था कि धर्म की बातों का ज्ञान होना ज्ञानी या धर्मात्मा नहीं बनाता है बल्कि उसे अपने आचरण में लाना, धर्मात्मा बनाता है। इसीलिए दोस्तों मेरी नज़र में वह नाविक असली साधु था।
दोस्तों, अक्सर हम जानकार होने को शिक्षित या ज्ञानी होने की निशानी मान लेते हैं, लेकिन मेरी नज़र में जानकारी होना और जानकार होना, दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। हो सकता है, आपमें से कुछ लोग मेरी इस बात से सहमत ना हों या वे जानकारी होना या जानकार होने के बीच के बारीक अंतर को लेकर दुविधा में हों, तो मैं आगे बढ़ने से पहले बता दूँ कि जानकार व्यक्ति उस पेन ड्राइव के समान है, जिसमें दुनिया भर का ज्ञान तो रखा जा सकता है। लेकिन, पेन ड्राइव खुद अपने अंदर रखे ज्ञान का उपयोग कर, बेहतर नहीं बन सकती है। अर्थात् जानकार व्यक्ति के पास विभिन्न क्षेत्रों की सूचनाएँ तो होती हैं, लेकिन वह इन सूचनाओं का उपयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए नहीं कर पाता है। उदाहरण के लिए हम सभी जानते हैं आज की बचत हमारे कल के जीवन को आसान बनाती है। अर्थात् हमें बचत के फ़ायदे के बारे में जानकारी है, लेकिन हम इस विषय के जानकार नहीं हैं। इसलिए हम इस जानकारी से अपने जीवन को बेहतर नहीं बना पाते हैं। इस आधार पर देखा जाए तो जानकारी होना याने सूचना होना और जानकार होना याने उस क्षेत्र में विशेषज्ञ या ज्ञानी होना है। विचार करके देखिएगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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