जानना, मानना और अपनाना तीनों है अलग…
- Nirmal Bhatnagar
- Apr 1
- 3 min read
Apr 1, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, किसी भी बात को जानना, मानना और उसे अपनाना तीनों ही बातों में बड़ा अंतर होता है। जब आप किसी विषय के बारे मे तथ्यों को इकट्ठा कर लेते हैं, तब आप उसके जानकार बन जाते हैं। इसके पश्चात जब आप इन तथ्यों को अपने अनुभव अपने ज्ञान के आधार पर परख लेते हैं तो आप इस जानकारी पर विश्वास करने लगते हैं अर्थात् आप उसे स्वीकार लेते हैं; उसे मान लेते हैं और जब आप उन बातों या परखे हुए तथ्यों को अपने आचरण में उतार लेते हैं, तब आप उसे अपना लेते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो मात्र ज्ञान प्राप्त कर लेना तब तक पर्याप्त नहीं है, जब तक उसे अपने आचरण में नहीं उतार लिया जाए। आइए इसी बात को हम महात्मा बुद्ध से संबंधित एक प्रेरणादायक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं। एक गाँव में महात्मा बुद्ध के प्रवचन लगभग एक माह से चल रहे थे। इन प्रवचनों को सुनने के लिए एक इंसान प्रतिदिन आया करता था। लेकिन इस सब के बाद भी वह अपने जीवन में कोई बदलाव नहीं देख पा रहा था।
रोज़ की ही तरह एक दिन प्रवचनों के दौरान जब महात्मा बुद्ध ने बताया कि ‘लोभ, द्वेष और मोह मनुष्य को पाप की ओर ले जाते हैं और इनसे बचना ही सच्ची शांति का मार्ग है’। तो इस इंसान के मन में दुविधा उत्पन्न हुई लेकिन किसी तरह उसने स्वयं पर काबू कर लिया। तब तक महात्मा बुद्ध बोले, ‘जो व्यक्ति क्रोध का उत्तर क्रोध से देता है, वह स्वयं को ही अधिक नुकसान पहुँचाता है। वहीं, जो बिना क्रोध किए क्रोध का सामना करता है, वह वास्तव में एक महान युद्ध जीत लेता है।’ इतना सुनते ही वह इंसान दुविधा से भर गया और बोला, ‘महात्मन्, इतने दिनों तक आपका प्रवचन सुनने के बाद भी मेरा स्वभाव दिन-ब-दिन उग्र होता जा रहा है। कृपया इसका समाधान बताइए।’
बड़े धैर्य और करुणा से उसका प्रश्न सुनने के बाद महात्मा बुद्ध ने उससे पूछा, ‘तुम कहाँ से आए हो और प्रवचनों के बाद गंतव्य क्या है।’ उस व्यक्ति ने बताया कि वह श्रावस्ती का निवासी है और प्रवचनों के बाद वह राजगृह से वापस श्रावस्ती जायेगा। इस पर महात्मा बुद्ध ने उससे पूछा, ‘क्या वह बिना चले वह अपने गंतव्य तक पहुँच सकता है।’ इस पर वह व्यक्ति पूरी स्पष्टता के साथ बोला, ‘ऐसा संभव नहीं है। श्रावस्ती पहुँचने के लिए मुझे निश्चित रूप से चलना होगा।’ इस पर महात्मा बुद्ध बोले, ‘ठीक वैसे ही, केवल अच्छी बातें सुनने या जानने से जीवन में कोई बदलाव नहीं आता। जब तक उन बातों को अपने जीवन में लागू नहीं करोगे, तब तक वे निष्फल रहेंगी।’
दोस्तों, महात्मा बुद्ध की यह शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि ज्ञान तभी सार्थक होता है, जब उसे व्यवहार में उतारा जाए। मात्र सुनने और समझने से मनुष्य की सोच या व्यवहार में कोई स्थायी परिवर्तन नहीं आता। जिस प्रकार किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कदम बढ़ाना आवश्यक है, उसी प्रकार आत्म-सुधार के मार्ग पर भी कर्म करना अनिवार्य है। कई बार लोग यह तर्क देते हैं कि परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं हैं, इसलिए वे अच्छी आदतों को अपनाने में असमर्थ हैं। लेकिन यह सोच अपने आप में बाधा बन जाती है। वास्तव में, जब हम अच्छाई को अपनाने का साहस करते हैं, तो धीरे-धीरे परिस्थितियाँ भी हमारे पक्ष में परिवर्तित होने लगती हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो बदलाव की प्रक्रिया छोटी-छोटी सकारात्मक क्रियाओं से शुरू होती है।
इसलिए दोस्तों, जीवन में वास्तविक बदलाव लाने के लिए केवल अच्छी बातें सुनने तक सीमित मत रहिए, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में अमल में लाइये। याद रखियेगा, हर एक सकारात्मक कदम हमें हमारे लक्ष्य के और करीब ले जाता है। इसलिए, ज्ञान को आत्मसात करें, उस पर अमल करें और कर्म करके अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाएं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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