Dec 20, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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इस रविवार जयपुर में आयोजित ‘वर्ल्ड हेल्थ एंड वेलनेस फेस्ट’ में ‘ह्यूमन लाइब्रेरी’ सेक्शन में विशेषज्ञ के रूप में भाग लेने का मौक़ा मिला। इस पूरे आयोजन का उद्देश्य लोगों में हेल्थ एवं वेलनेस के प्रति जागरूकता लाना था। हालाँकि कम समय में अधिक प्रोग्राम रखने की वजह से पूर्व से तय शेड्यूल के मुताबिक़ यह प्रोग्राम नहीं हो पाया। लेकिन मेरे लिए इसका ना होना भी वरदान बन गया क्यूँकि इस दौरान मैं अपने गुरु श्री एन॰ रघुरामन, मंदिरा बेदी जैसे विशेषज्ञ वक्ताओं को सुन पाया, उनके ज्ञान से लाभान्वित हो पाया।
इसी प्रोग्राम में एक वक्ता ने बहुत ख़ूबसूरती के साथ हमारे जीवन पर बोले गए शब्दों के प्रभाव को समझाया। उनका मानना था कि बोले गए शब्द हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। हालाँकि मेरा मानना इसके थोड़ा इतर था क्यूँकि मेरे अनुसार शब्द से पहले सोच और सोच से पहले विचार और विचार से पहले अनुभव और अनुभव से पहले घटना, साथ या वह माहौल आता है, जिसमें हम अपना वक्त गुज़ारते हैं। लेकिन मैं फिर भी उनकी सोच का सम्मान करते हुए इस विषय में ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा क्यूँकि हो सकता है समय की मर्यादा को देखते हुए उन्होंने संक्षेप में ऐसा कहा हो या फिर उनके अपने अनुभव ऐसे हों। वैसे भी इस पर अधिक चर्चा ‘कौन पहले आया, मुर्गी या अंडा?’, समान साबित होगी।
ठीक इसी तरह मेरा मानना सकारात्मक दृष्टिकोण के प्रति भी है। मेरे अनुसार हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना असम्भव है क्यूँकि दैनिक जीवन में हमें दोनों ही तरह के अनुभव मिलते हैं और अतीत के अनुभव ही किसी विषय को लेकर हमारे नज़रिए को तय करते हैं। इसलिए मैं हमेशा सकारात्मक या नकारात्मक नहीं बल्कि सही दृष्टिकोण के विषय में बात करता हूँ। वैसे तो कम शब्दों में सही दृष्टिकोण को परिभाषित करना मेरी क्षमताओं के बाहर की बात है। लेकिन फिर भी एक लाइन में अगर मैं इसे बताने का प्रयास करूँ तो मैं इतना ही कहूँगा कि हमें नकारात्मक मूड और अति सकारात्मक मूड के समय अपने निर्णय और उस निर्णय के आधार पर किए जाने वाले कार्यों को टालना होगा। हो सकता है अब आपके मन में नया प्रश्न आ रहा हो, ‘जब सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के मूड में निर्णय नहीं लेना है तो हम निर्णय लें कब?’ तो मैं आपको कहना चाहूँगा, ‘जब आप न्यूट्रल मूड में अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर योजना बनाएँ, तब।’
अगर आपकी प्राथमिकता वाक़ई नकारात्मक भावों से बच कर जीवन जीना है तो आपको प्रतिदिन न्यूट्रल मूड, जो सामान्यतः दिन पूर्ण होने के बाद और सोने के पहले या फिर छुट्टी के पूर्व होता है, में अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार निर्णय लेकर, योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना होगा। ऐसा करना सबसे पहले परिणामों को बदल कर आपके अनुभवों को बदलेगा, अनुभव आपके विचार, फिर सोच और फिर नज़रिए को बदलेंगे। नज़रिया बदलते ही आप सही लोगों या माहौल को चुनना शुरू करेंगे और अंततः अपने अंतर्द्वंद को जीत कर शांति के साथ जीवन जी पाएँगे, उसका मज़ा ले पाएँगे।
जी हाँ साथियों, यही वह स्थिति होगी जब आपको दुःख में सुख, हानि में लाभ, प्रतिकूलताओं में अवसर नज़र आने लगेंगे। दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप राह में पड़े पत्थर से घर या सीढ़ी बनाना शुरू कर देंगे। ऐसे लोगों के लिए ज़िंदगी में ऐसी कोई बाधा नहीं है जिससे पार ना पाया जा सके या जिससे प्रेरणा ना ली जा सके। दोस्तों, जीवन जीने का सही तरीक़ा वही है जब आपको अभावों में भी आनन्द के साथ जीना आ जाए। याद रखिएगा, जीवन एक महोत्सव है, इसे प्रत्येक पल प्रभु के प्रति आभारी रहते हुए, उत्सव की तरह जीना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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