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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

डर और जिज्ञासा का सही प्रयोग आपको बेहतर बना सकता है…

Jan 4, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हर इंसान चाहता है कि वह कुछ ऐसा करे जिससे वह अपनी छाप किसी ना किसी रूप में इस दुनिया में छोड़ सके। लेकिन अक्सर दैनिक जीवन में आने वाली चुनौतियों और विपरीत परिस्थितियों से निपटने या ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में ज़्यादातर लोग ऐसे उलझते है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब वह अपने लक्ष्य को बीच में ही छोड़, जीवन की राह में आगे निकल गए है। जी हाँ दोस्तों, फ़ोकस, प्लान और सही प्राथमिकताओं का पता ना होने के कारण ज़्यादातर लोग अपनी शक्तियों और क्षमताओं का सही प्रयोग नहीं कर पाते हैं।


आप स्वयं ही सोच कर देखिए, जिस इंसान को परमपिता ईश्वर ने विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एकदम अनूठा, अनोखा और विशेष शक्तियों से सम्पन्न बनाया था, वह खुद अमिट छाप छोड़ने के अपने लक्ष्य को भूल, भटक गया है, आख़िर क्यों? मुझे तो लगता है इसकी मुख्य वजह ईश्वर द्वारा प्रदत्त दो भावों का ग़लत प्रयोग करना है। ईश्वर ने हमें निडर और जिज्ञासु बनाया था, तभी तो हम बचपन में बड़ों द्वारा ऊपर उछाले जाने पर हंसा करते थे और किसी के चुटकी या ताली बजा कर आकर्षित करने पर, उनकी नक़ल कर ताली और चुटकी बजाने का प्रयास किया करते थे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो निडरता के साथ, स्वाभाविक रूप से हर पल नई चीजों को सीखने के लिए तैयार रहा करते थे।


अगर आप गम्भीरता और गहराई के साथ सोच कर देखेंगे तो पाएँगे कि निडरता और जिज्ञासा की वजह से ही इंसान आज इतना बेहतर बन पाया है। शायद इसीलिए नेल बार्कस ने कहा है, ‘यदि आप खुद को चुनौती देते हुए आश्चर्य और खोज की भावना के साथ, हमेशा नई चीजों को करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं, तब आप जीवन को समृद्ध रूप में जी पाते हैं।’ लेकिन समय के साथ बदलती प्राथमिकताओं, जीवन के प्रति बदलते नज़रिए और कम्फ़र्ट ज़ोन में रहने या हर कार्य को सही नहीं, आसान तरीक़े से करने की चाह में हमने जिज्ञासा और डर के भाव का गलत प्रयोग करना शुरू कर दिया जिससे हमने खुद को ईश्वर द्वारा प्रदत्त जीवन के विशेष उद्देश्य से दूर कर, इस दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने के अवसर को गँवा दिया। अपनी बात को मैं एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। जैसा मैंने आपको पूर्व में कहा था एक छोटा बच्चा निडर और जिज्ञासु होता है इसीलिए हवा में उछाले जाने पर हँसता है, जिज्ञासा की वजह से हर सामान को अपनी क्षमताओं के हिसाब से परखता है। लेकिन जब यही बच्चा घुटने चलते हुए पलंग या टेबल के नीचे घुसता है तो हम पहली बार उसके मन में ‘बाऊ’ का डर बैठाते हैं। इसी तरह जब वह अपनी जिज्ञासा की वजह से अंधेरे कमरे या स्टोर रूम में जाता है तो हम ‘वहाँ भूत है’ कहते हुए उसके मन में डर बैठाते हैं, उसकी जिज्ञासा को मारते हैं। यह सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं होता बल्कि बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता जाता है और यह डर कभी कैरियर तो कभी रेस में पीछे छूट जाने, तो कभी जीवन की किसी अन्य घटना से जोड़कर बड़ा बना दिया जाता है। कम्फ़र्ट ज़ोन या आरामदायक परिस्थितियों में रहते हुए इन छोटे उद्देश्यों की पूर्ति को डर से जोड़ने के चक्कर में हम भूल जाते हैं कि हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त दो भावों, डर और जिज्ञासा का ग़लत प्रयोग कर रहे हैं।


उपरोक्त बात की गहराई को आप सी॰ एस॰ लूयस के इस कथन से भी समझ सकते हैं कि, ‘जब तक आप किसी चीज़ को करेंगे नहीं, उसे जान नहीं पाएँगे और इस दुनिया में लोग तब तक प्रयास नहीं करते हैं जब तक वह उनके लिए अतिआवश्यक ना हो जाए।’ याद रखिएगा दोस्तों, ईश्वर ने जिज्ञासा खुद को खोजने, अपनी असीम क्षमताओं को पहचानने और मूल तत्व का रहस्य जानने के लिए बनाई थी। इसके साथ ही ‘डर' इसलिए बनाया था ताकि हम अपनी क्षमताओं का प्रयोग मानवता या इंसानियत के विरुद्ध ना करें और इस धरती को सभी जीवों के लिए बेहतर बना सकें। तो आईए आज से हम मिशेल ओबामा के कथन, ‘नई चीजों को स्वीकारो, उन्हें करने का प्रयास करो। डरो मत और अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर निकल कर ऊँची उड़ान भरो।’ के अनुसार कार्य करते हैं और जिज्ञासा व डर का सकारात्मक रूप से प्रयोग कर जीवन में नई ऊँचाइयों को छूते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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