Oct 22, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, यक़ीन मानियेगा जिस तरह दिनभर की भागदौड़ से हमारा तन गंदा होता है, ठीक उसी तरह दिनभर में मिले नाना प्रकार के अनुभवों से हमारा मन भी ख़राब होता है। लेकिन अक्सर हम मन को नज़रंदाज़ करते हुए सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने तन को फिट रखने का प्रयास करते हैं और यह भूल जाते हैं कि मन की सफ़ाई या उसका फिट रहना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना तन का। जी हाँ दोस्तों, मन की सफाई जितनी आवश्यक है, अक्सर उस पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता और अक्सर दिखावा पसंद इस दुनिया के दिखावटी लोग बाहरी याने रूप सज्जा को ही सब कुछ मान, अपना पूरा ध्यान शरीर को शुद्ध याने अच्छा रखने में लगा देते हैं। ऐसे लोग अक्सर भूल जाते हैं कि मन को लगातार नज़रंदाज़ करना ही, उसके ख़राब होने की सबसे प्रमुख वजह है। जब आप मन को नज़रंदाज़ करते हैं, तब वह भ्रम जाल में फँसता है, तर्क-वितर्क और कुतर्क में उलझता है। जबकि अगर आपका लक्ष्य असली सुख और शांति के साथ जीना है, तो आपको मन को इन सब बातों से बचाना होगा। याद रखियेगा, बाहरी चकाचौंध, दिखावटी जीवन ही हमारे मन का लिप्सा और वासना में उलझना है, जबकि इससे मुक्ति पाना ही हमें असली सुख और शांति की ओर ले जाता है।
अब आप निश्चित तौर पर मेरी इस बात से तो सहमत होंगे कि तन जितना ही आवश्यक मन को स्वस्थ रखना है। लेकिन अब आपके मन में दूसरा प्रश्न आ रहा होगा, ‘कैसे?’ चलिए आज हम मन को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक कुछ बातों को सीखने और समझने का प्रयास करते हैं। मेरी नज़र में इस दिशा में आगे बढ़ने का सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम होगा इस बात को स्वीकारना कि स्वस्थ और शुद्ध मन से ही लिप्साओं और कामनाओं को भावनाओं में बदला जा सकता है। वैसे तो लिप्साओं और कामनाओं को भावनाओं में बदलने के कई रास्ते हो सकते हैं लेकिन मेरी नज़र में सबसे आसान रास्ता अपने अंदर “देने के भाव” को पैदा करना है। अर्थात् आपको दान और सामाजिक हित के कार्यों को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करना सीखना होगा।
दूसरा रास्ता; किसी भी कार्य को पूर्ण मनोयोग से करना हो सकता है क्योंकि जब आप दैनिक जीवन में किए जाने वाले हर कार्य को पूर्ण मनोयोग से करने लगते हैं, तब काम याने कर्म ही आपके लिये साधना या पूजा हो जाता है। इसके लिए आपको अपने जीवन को प्लान करना होगा अर्थात् यह तय करना होगा कि आप कैसा जीवन जीना चाहते हैं। उसके बाद आपको अपने लक्ष्य को पाने के लिए एक योजना बनाना होगी और अंत में इस योजना पर आधारित कार्यों को प्राथमिकताओं पर रखते हुए कर्म करना होगा।
इसके साथ ही दोस्तों, तीसरे सूत्र के रूप में हमें उन कार्यों को पहचानना होगा जो हमारे मन के ऊपर नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव डालते हैं और उसके बाद हमें नकारात्मक बातों और कार्यों से दूरी बनाना होगी और सकारात्मक बातों और कार्यों को दैनिक जीवन में बार-बार दोहराना होगा। जैसे, लोगों की निंदा करना या अपने अंतर्मन को मारते हुए झूठी तारीफ़ करना, विवेकहीन निर्णय लेना और विवेकहीन जीवन जीना, आदि नकारात्मक भावों से बचना होगा और अपने दायरे को बढ़ाना, सहनशीलता का विकास करना, देना, अपना परिवार और नेटवर्क बढ़ाना आदि जैसे सकारात्मक भावों को रोज़मर्रा के जीवन में अपना बनाना होगा। ध्यान और सकारात्मक जीवन की फ़िल्म देखना भी आपको इसमें मदद कर सकता है।
दोस्तों, यदि आप वास्तव में अपने जीवन का सदुपयोग करना चाहते हैं, तो साहस का अभ्यास करें और अपनी क्षमताओं के आगे जाकर उपरोक्त बातों को अपनायें, डर की सीमाओं के आगे जाकर अपना जीवन जियें। इसके बिना अपने मन को साफ़ रख सुखी और शांत जीवन कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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