Feb 18, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, अक्सर हमें लगता है कि जीवन में विकल्पों का होना हमारे जीवन को बेहतर और आसान बनाता है। लेकिन मेरा व्यक्तिगत अनुभव इसके ठीक विपरीत है। मेरा तो मानना है कि ज्यादा विकल्पों का होना हमें भ्रम में डालकर हमारे निर्णय लेने की क्षमता पर नकारात्मक असर डालता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ ज़्यादा विकल्पों का होना हमारे निर्णयों को मुश्किल बनाता है। चलिए इसी बात को हम एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।
शहर के मध्य रहने वाले सेठ धनीराम को अमीर कारोबारियों में अग्रणी माना जाता था। एक दिन बाजार से घर आते समय रास्ते में उनका पैसों और जरूरी कागजातों से भरा बैग कहीं गिर गया। इस बात का एहसास उन्हें घर पहुँचने के बाद हुआ। उन्होंने तुरंत उसे खोजने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहने पर वे घर के मंदिर में गए और ईश्वर से प्रार्थना करते हुए बोले, ‘प्रभु, उस बैग में फैक्ट्री के महत्वपूर्ण कागज और मेहनत से कमाए हुए पैसे थे। प्रभु अगर मुझे बैग ना मिला तो बड़ा नुक़सान हो जायेगा।’ इतना कहकर सेठ ने एक ठंडी साँस ली और फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘हे प्रभु! अगर मेरा कागजात और रुपयों से भरा बैग मिल जाए, तो मैं आपको प्रसाद चढ़ाऊँगा और गरीबों को भोजन कराऊँगा।’
दूसरी ओर संयोग से सेठ का बैग एक बेरोजगार युवक को मिला और उसने बैग को खोलकर उसमें से उसके मालिक का नाम और वे कहाँ रहते हैं यह पता करा और बैग लेकर उनके घर पहुँच गया। सेठ, जो उस वक्त पूजा करके उठे ही थे, ने दरवाजा खोला और घर आए युवक के हाथ में बैग देख कर खुश हो गए। वे कुछ कहते उससे पहले ही वह युवा बैग उनकी ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘सेठ जी, यह लीजिए अपनी अमानत संभालिये। आपका बैग मुझे बाजार में मिला था। बैग हाथ में आते ही सबसे पहले सेठ ने उसे चेक किया और फिर सब कुछ सलामत पा ईश्वर को धन्यवाद देते हुए युवा की प्रशंसा की और फिर इनाम के रूप में कुछ रुपये देने का प्रयास करने लगा। जिसे युवक ने यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि ‘बैग लौटाना उसका फर्ज था।’
युवा का जवाब सुन सेठ मुस्कुराया और कुछ क्षण सोचते हुए बोला, ‘क्या तुम कल वापस आ सकते हो?’ युवा ने तुरंत ‘हाँ’ में सर हिला दिया। असल में उस क्षण सेठ के मन में कुछ और चल रहा था। वे सोच रहे थे कि अगले दिन वे उसे किसी और रूप में उसे उपहार दे देंगे। अगले दिन तय समय पर वह युवक एक बार फिर सेठ के घर पहुँचा, जहाँ सेठ ने उसकी खूब खातिरदारी की, लेकिन कोई उपहार वगैरह नहीं दिया।
कुछ देर रुकने के बाद वह युवक सेठ के घर से निस्वार्थ भाव से चला गया। सेठ मन ही मन प्रसन्न था कि उसे उसके कागजात और रुपये भी वापस मिल गए और कुछ इनाम भी नहीं देना पड़ा। कुल मिलाकर कहा जाये तो काफी सारे रुपये बर्बाद होने से बच गए। इतना ही नहीं, सेठ भगवान से बैग मिलने पर प्रसाद चढ़ाने और गरीबों को भोजन कराने का वादा भी भूल गए। कुल मिलाकर कहा जाये तो सेठ के पास अच्छे कर्म करने के दो विकल्प थे, पहला युवा का आभार व्यक्त करते हुए इनाम देने का और दूसरा भगवान को प्रसाद चढ़ा कर गरीबों को भोजन कराने का। कुछ दिनों बाद सेठ को एक और विकल्प नजर आया, उस ईमानदार युवक को नौकरी पर रखने का। विचार आते ही उन्होंने युवा को खोजा और उससे चर्चा करी तो उन्हें पता चला युवक को पहले ही एक दूसरे सेठ ने मुनीम के रूप में नौकरी पर रख लिया है। अर्थात् उनके हाथ से तीसरा विकल्प भी छूट गया था। जब सेठ ने उस युवा को नौकरी देने वाले व्यापारी से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने उस युवा को बैग उठाते और बिना ललचाये लौटाते देखा था। इसलिए उन्होंने बिना कोई और विकल्प तलाशे उसे उसी दिन नौकरी पर रख लिया था।
दोस्तों, यकीन मानियेगा अगर उस युवा से बैग लौटाने के विषय में गहराई से पूछा जाता तो वो यही कहता, ‘मेरे पास इसे लौटाने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था।’ दोस्तों, अगर आप उपरोक्त कहानी पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि जिसके पास ज़्यादा विकल्प थे, उसे सबसे कम लाभ मिला और जिसे एक ही विकल्प मिला था उसने उस मौक़े को बेहतर तरीक़े से भुनाया। इसे आप निम्न तीन बातों के आधार पर समझ सकते हैं-
1) युवक के पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उसने बिना सोचे बैग लौटा दिया।
2) दूसरे सेठ ने तुरंत निर्णय लिया और युवक को काम पर रख लिया।
3) बैग का असली मालिक यानी पहला सेठ, कई विकल्पों में उलझकर निर्णय नहीं ले पाया और अंत में एक ईमानदार कर्मचारी खो दिया।
इस आधार पर कहा जाये तो यह कहानी विकल्पों के बीच उलझने और सही समय पर सही निर्णय लेने की सीख देती है। जब हमारे पास बहुत सारे विकल्प होते हैं, तो हम अक्सर उलझ जाते हैं और सही निर्णय लेने में देर कर देते हैं। कई बार जल्दी और सही निर्णय लेना ही हमें आगे बढ़ा सकता है। इसलिए, विकल्पों में फंसने के बजाय सही और त्वरित निर्णय लेना सीखें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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