Feb 20, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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हाल ही में एक प्रोग्राम के दौरान एक सज्जन मेरे पास आए और एक प्रश्न पूछते हुए बोले, ‘सर, आप हमेशा, हर हाल में, खुश कैसे रह लेते हैं? मेरे अनुसार तो यह सम्भव ही नहीं है। मुझे तो लगता है आप यह सारी बातें सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रेनिंग के दौरान दिखावे के लिए करते हैं।’ एक अच्छे, सकारात्मक प्रोग्राम के बाद लोगों के समूह के बीच में इस तरह का प्रश्न पूरी ट्रेनिंग के प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता रखता था। इसलिए मैंने विवाद से बचते हुए उन सज्जन की समस्या का निराकरण करने का निर्णय लिया और जवाब के रूप में उनसे ही एक प्रश्न पूछ लिया, ‘आपको ऐसा क्यों लगता है?’
वे सज्जन शायद इस प्रश्न के लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने एक ही साँस में जवाब देते हुए कहा, ‘सर, मैंने तो अपने आस-पास हमेशा ही स्वार्थी लोगों को पाया है। फिर वे चाहे परिवार के लोग हों या यार-दोस्त अथवा परिचित। मुझे तो ऐसा लगता है अच्छे और सही लोग अब इस दुनिया में पैदा होना ही बंद हो गए हैं।’
एक पल शांत रहने के बाद मैंने उन सज्जन से कहा, ‘सर, मुझे ऐसा लगता है ईश्वर या प्रकृति ने हम सभी को इस दुनिया में अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भेजा है और शायद इसीलिए सबको अलग-अलग स्वभाव या सोच का बनाया है। शायद इसी वजह से हम सब लोगों के अपने जीवन के लक्ष्य या संकल्प अलग-अलग होते हैं। अगर समय रहते हम इस बात को ना समझ पाएँ तो हम अपने लक्ष्यों, अपने संकल्पों, अपनी सोच, अपने स्वभाव के आधार पर दूसरों से अपेक्षा रखने लगते हैं या उनको अपने तराज़ू में तौलने लगते हैं, इसीलिए दूसरों से या उनकी वजह से असंतुष्ट, परेशान या दुखी रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अपनी धारणाओं के आधार पर दूसरों के जीवन का निरीक्षण या परीक्षण करना, हमें दुख न होने पर भी, दुखी होने का अहसास कराता है।
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मेरा उत्तर शायद उन्हें ठीक लगा इसलिए पहले तो उन्होंने मूक रहते हुए इशारों में हाँ में हाँ मिलाई। मैंने उनके इशारे को नज़रंदाज़ करते हुए पूरी गम्भीरता के साथ बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘अक्सर हम अपनी अशांति, अपने दुःख, अपने अंतरद्वन्द का कारण दूसरों को मान लेते हैं। इसलिए हम उनको बदलकर खुश और सुखी रहना चाहते हैं और इसी वजह से अपनी ऊर्जा, अपने समय और अपने संसाधनों का प्रयोग उनको बदलने के लिए करने लगते हैं। दूसरों को समझने और दूसरों को बदलने के इस प्रयास में हम खुद को जानने और खुद को बदलकर बेहतर बनाने का मौक़ा चूक जाते हैं।’
जी हाँ साथियों, मेरा तो यही मानना है, दूसरों को जानने और बदलने से बेहतर है खुद को जानना और खुद को बेहतर बनाना। इसलिए मेरा सुझाव है कि जब भी आपको ऐसा लगे कि आप दूसरों के कारण चिंता, तनाव, नकारात्मकता के दौर से गुजरते हुए दुखी और परेशान रह रहे हैं तो खुद से एक प्रश्न करिएगा, ‘क्या मैं खुद को इस स्थिति में सही तरीके से पहचान पा रहा हूँ? क्योंकि असंतोष से संतोष या दुःख से सुख की यात्रा आंतरिक शांति से शुरू होती है। इसलिए लोग आपको समझें या ना समझें यह बिलकुल भी चिंता का विषय नहीं है। लेकिन अगर आप खुद को नहीं समझ पाए तो हमेशा किसी ना किसी वजह से चिंतित, परेशान या दुखी रहेंगे। इसलिए अपनी ऊर्जा, अपने समय और अपनी समझ का प्रयोग दूसरों को जानने या समझने में नहीं खुद को जानने में लगाओ । याद रखना, जो खुद को जान लेता है, वह अपने जीवन में किसी भी वजह से घटने वाली सारी समस्याओं के समाधान भी खोज लेता है और खुद को हर हाल में खुश, संतुष्ट और सुखी रखना सीख जाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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