Dec 13, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इस दुनिया में 2 तरह के लोग होते हैं, पहले वे जो इतिहास बनाना जानते हैं और दूसरे वे जो इतिहास का हिस्सा बन, समय के साथ खो जाते हैं। अगर आप इन दोनों तरह के लोगों के जीवन को क़रीब से देखेंगे तो पाएँगे कि दोनों को ही ईश्वर ने समान परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच क़िस्मत या जीवन बनाने के मौके दिए, लेकिन जीवन के प्रति नज़रिया सहीं ना होने के कारण एक जीवन से शिकायतें करता हुआ या उसमें कमियाँ खोजता हुआ इतिहास का हिस्सा बन गया, वहीं दूसरे ने उन्हीं सब कारणों अर्थात् कमियों या चुनौतियों को ही अपनी सफलता की वजह बना लिया। अपनी बात को मैं आज एक ऐसी ही सच्ची कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
सोशल मीडिया के मेरे एक मित्र अपने किसी व्यक्तिगत कार्य से बनारस गए। बनारस में घूमने जाने के लिए साइकिल रिक्शे की आवश्यकता महसूस हुई, उन्होंने अपने आसपास नज़र घुमाई तो एक युवा साइकिल रिक्शा पर समाचार पत्र पढ़ता हुआ दिख गया। उन्होंने जैसे ही उससे बातचीत शुरू करी तो उन्हें एहसास हुआ कि यह युवा साधारण नहीं है, वह अच्छा-ख़ासा पढ़ा-लिखा है। मित्र ने जब शिक्षा के विषय में उस युवा से पूछा तो पता चला कि उसने अर्थशास्त्र के साथ पोस्ट ग्रैजुएशन कर लिया है और साथ ही अभी अर्थशास्त्र से एक विषय को लेकर पी॰एच॰डी॰ कर रहे हैं। चूँकि वह ‘NET’ नेट परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं इसलिए आने वाले समय में खुद को किसी अच्छे कॉलेज या संस्थान में प्रोफ़ेसर के रूप में देखना चाहते हैं।
मित्र, उस युवा के जोश और ज़िंदगी के प्रति नज़रिए को देख हैरान थे। जब उन्होंने रिक्शा चलाने की वजह पूछी तो पता चला कि उनके पिता का काफ़ी पूर्व देहांत हो चुका था और बड़ा होने की वजह से परिवार की ज़िम्मेदारी उनपर आ गई थी। उसी ज़िम्मेदारी के कारण वे पढ़ाई के साथ-साथ हफ्ते में तीन दिन रिक्शा चलाकर धन अर्जित करते हैं। और हाँ, धन की पूर्ति के लिए वे अपनी माँ को कुछ करने नहीं देते। इस विषय में उनका कहा है, ‘माँ का दुलार और आशीर्वाद ही काफ़ी है, उससे ही सब कुछ हो जाएगा।’
आगे बढ़ती बातचीत के साथ मित्र की उत्सुक्ता और ज़्यादा बढ़ती जा रही थी। उन्होंने जब उससे परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में पूछा तो पता चला कि इस युवा का एक छोटा भाई भी है, जिसे वे पोलिटेक्निक कॉलेज से सिविल में डिप्लोमा करवा रहे हैं। मित्र ने जब उनसे किसी सरकारी या समाजसेवी संस्थान अथवा किसी अन्य तरीके की मदद के विषय में पूछा तो इस युवा का जवाब चौकानें वाला था। उसने हंसते हुए कहा, ‘सर, मेरा नाम मुकेश मिश्र है और मैं जाति से ब्राह्मण हूँ, इसलिए मैं आरक्षण व्यवस्था के अंदर किसी तरह का लाभ लेने के लिए पात्र नहीं हूँ। वैसे भी जब जन्म से ब्राह्मण हूँ तो श्रम कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना हमारे लिए धर्म सम्मत है। इतिहास गवाह है ब्राह्मणों ने तो भिक्षा मांग मांगकर देश का निर्माण किया है। हम तो दान लेकर समाज को वापस दान करना जानते हैं। हमें सरकार ही नहीं किसी से कोई अपेक्षा नहीं है। किसी का उपकार लेकर जीना हमें पसन्द नहीं है। वैसे भी जीवन हमारा है, तो उसे बेहतर हमें ही बनाना होगा। हमारा जो स्वाभिमान हैं, ज़रा से लाभ के लिए हम उसे बेच नहीं सकते। हम भगवान परशुराम के वंशज हैं, इसलिए पूरे स्वाभिमान के साथ मेहनत कर, रिक्शा चला कर कमा रहे हैं और अपने लक्ष्य पूरे कर रहे हैं। हम पकौड़ा तल कर अपने और अपने भाई की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, तो कर रहे हैं। आप देखियेगा, एक दिन हम खड़े हो जाएँगे। हमारी रिसर्च पूरी हो गई है, बस थीसिस प्रिंट करवाने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं। उसके बाद पी॰एच॰डी॰ पूरी करके किसी उचित स्थान पर अपनी योग्यता सिद्ध करेंगे।’
दोस्तों अब आप समझ ही गए होंगे कि मैंने पूर्व में क्यों कहा था कि इतिहास बनाने वाले अर्थात् क्लास कैटेगिरी के लोग जीवन के प्रति सही नज़रिया रख, अपनी सफलता की नींव डालते हैं। वे जीवन से शिकायतें करने, उसमें कमियाँ खोजने के स्थान पर उन्हीं कमियों या चुनौतियों को अपनी सफलता की वजह बना लिया। इसीलिए तो मैं कहता हूँ दोस्तों क़िस्मत, हालात अथवा परिस्थितियाँ कैसी भी क्यूँ ना हो ‘ज़िंदगी फिर भी हसीन है…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments