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नज़ारे बदलना हो तो सर्वप्रथम अपना नज़रिया बदलें…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 18, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आलोचना करना, दूसरों में कमियाँ देखना मेरी नज़र में एक ऐसी बीमारी है, जो आलोचना करने वाले के पूरे नज़रिए, पूरे दृष्टिकोण को बर्बाद कर सकती है। जिस तरह मक्खी गंदगी के ऊपर ही भिनभिनाती है, गंदगी के ढेर पर ही जाकर बैठती है, ठीक उसी तरह आलोचना और निंदा करने वाला व्यक्ति भी सामने वाले इंसान की हज़ार अच्छाइयों को देखे या पहचाने बग़ैर, उसकी चंद कमियों पर अपना पूरा ध्यान लगा कर बैठ जाता है। ऐसे लोग कई बार तो दूसरों के बारे में सुनी-सुनाई बातों के आधार पर धारणा बना बैठ जाते हैं और सच्चाई से कोसों दूर रहते हुए, उन्हीं धारणाओं के आधार पर जीवन जीते हैं और इसी वजह से कई बार वे ग़लतियाँ कर जाते हैं। अपनी बात को मैं एक छोटी सी लेकिन बड़ी प्यारी सी कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


राजपुर में एक व्यक्ति के बारे में सामान्य लोगों के बीच एक धारणा बन गई थी कि उसका चेहरा बहुत मनहूस है। लोग अक्सर आपस में उसके बारे में कहा करते थे कि अगर गलती से भी कोई उसका चेहरा सुबह-सुबह देख ले तो उसका वह दिन बर्बाद ही हो जाता है। एक दिन राजपुर के सभी रहवासियों ने उस बंदे की मनहूस होने की शिकायत राजा से कर दी। राजा, जो इस तरह की बातों पर सामान्यतः विश्वास नहीं किया करता था, ने व्यक्तिगत जाँच करने के बाद इस केस का फ़ैसला करने का कहा।


कुछ पलों तक इस विषय में विचार करने के बाद राजा ने अपने मंत्री को आदेशित कर उस व्यक्ति को राज दरबार में बुलाया और उसे एक दिन राज महल में ही रुकने का कहा। अगले दिन सुबह राजा ने सबसे पहले राजमहल में उस तथाकथित मनहूस व्यक्ति का मुँह देखा। हालाँकि मुँह देखने की वजह से राजा के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घटी बस उस दिन संयोग से अति व्यस्तता के कारण राजा भोजन नहीं कर सका। प्रजा द्वारा इस घटना को भी उस व्यक्ति की मनहूसियत से जोड़ने की वजह से राजा भी इस नतीजे पर पहुँच गया कि निश्चित तौर पर उस साधारण से व्यक्ति का चेहरा सचमुच में मनहूस है और ऐसे मनहूस को किसी भी हालत में ज़िंदा रहने का अधिकार नहीं है। राजा ने उसी पल अपने राज्य के जल्लाद को बुलाया और उस व्यक्ति को मृत्युदंड देने का हुक्म सुना दिया।


राजा के हुक्म को सुन मंत्री को बहुत बुरा लगा, उसने तुरंत राजा के निर्णय पर अपना विरोध दर्ज कराया और बोला, ‘महाराज आप इस निर्दोष को क्यों मृत्यु दंड दे रहे हैं?’ राजा ने थोड़ा सा चिढ़ते हुए कहा, ‘मंत्री जी आपको इतना भी नहीं मालूम है कि

आज सुबह सबसे पहला इसका चेहरा देखने के बाद मुझे दिन भर भोजन नसीब नहीं हुआ।’ राजा की बात पूरी होते ही मंत्री ने एक गहरी ठंडी साँस भरते हुए कहा, ‘सर्वप्रथम तो महाराज गुस्ताखी के लिए क्षमा करें। जिस तरह सुबह सर्वप्रथम आपने इस व्यक्ति का चेहरा देखा था, ठीक उसी तरह इस व्यक्ति ने भी सर्वप्रथम आपका मुख देखा। इसका मुख देखने से तो आपको सिर्फ़ भोजन नहीं मिला, लेकिन आपका मुख सर्वप्रथम देखते ही इसे मृत्युदंड मिल रहा है। अब आप स्वयं गम्भीरता पूर्वक विचार कर निर्णय लें कि दोनों में से कौन बड़ा मनहूस है।’


वैसे दोस्तों, अब आप समझ ही गए होंगे मैंने क्यों आलोचना या निंदा की वजह से बनी धारणा के आधार पर जीवन जीने के लिए मना किया था। याद रखिएगा दोस्तों, इस दुनिया में कोई भी इंसान मनहूस, सौ प्रतिशत बुरा या बिना काम का नहीं है, असल में यह सारी कमियाँ सामान्यतः देखने वाले के नज़रिए में रहती हैं। जी हाँ साथियों, नकारात्मकता या मनहूसियत सामान्यतः हमारे देखने या सोचने के ढंग में होती है। इसीलिए कहा गया है, ‘नज़रिया बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं!!!’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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