निंदा ना करें…
- Nirmal Bhatnagar
- Mar 31
- 3 min read
Mar 31, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, हमारा समाज अक्सर दूसरों की निंदा करने की आदत में लिप्त रहता है। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘परनिंदा सुख बहुत रे!’ लेकिन मेरा इस विषय में थोड़ा अलग मत है। मेरा मानना है कि किसी की आलोचना करना और उसकी कमियों को उजागर करना एक ऐसा स्वभाव बन चुका है, जो न केवल दूसरों को आहत करता है, बल्कि निंदक के मन में भी अशांति उत्पन्न करता है। प्रारंभ में, दूसरों की आलोचना करने में एक अस्थायी आनंद महसूस होता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह मानसिक अशांति और नकारात्मकता को जन्म देता है। जब हम लगातार दूसरों की गलतियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारा आत्म-विकास भी बाधित हो जाता है।
दोस्तों, हर व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण और स्वभाव होता है। किसी के प्रति नकारात्मक धारणा बनाना आसान है, लेकिन यह दृष्टिकोण हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दूसरों की आलोचना करके हम अपने भीतर असंतोष और तनाव को जन्म देते हैं। वैसे, उपरोक्त सभी बातों को हम सब जानते हैं, लेकिन इसके बाद भी मौका मिलते ही निंदा करने से चूकते नहीं है। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आख़िर निंदा करने के पीछे क्या कारण होता है? तो आगे चलने से पहले मैं आपको बता दूँ कि लोग अलग-अलग कारणों से निंदा करते हैं। कुछ लोग इसे केवल अपना समय बिताने का साधन मानते हैं, जबकि कुछ स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए दूसरों की कमियां गिनाते हैं। यह स्वभाव आत्म-संतुष्टि का झूठा एहसास दिला सकता है, लेकिन यह कभी भी सच्ची खुशी नहीं देता। इसके अलावा, निंदा करने वाले लोग अक्सर अपनी असफलताओं या असुरक्षाओं को छुपाने के लिए ऐसा करते हैं। जब हम दूसरों पर उंगली उठाते हैं, तो हमारी अपनी कमियां दृष्टिगत नहीं होतीं, जिससे हमें अस्थायी संतुष्टि मिलती है।
उपरोक्त स्थितियों के आधार पर बहुत स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि आज के युग में निंदा से बचे रहना असंभव ही है। इसलिए अगर आप शांत जीवन जीना चाहते हैं तो बेहतर तो यही होगा कि निंदा का सामना करना सीख जाएँ और इसके लिए सबसे पहले यह स्वीकार लें कि निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं है। वे किसी भी परिस्थिति में अपनी आलोचना की आदत को नहीं बदलते। इसलिए, समझदार व्यक्ति वही है जो इन टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहता है। समय और ऊर्जा को प्रतिवाद में व्यर्थ करने के बजाय, आत्म-विकास पर ध्यान देना अधिक उत्पादक है।
सफल लोग आलोचनाओं को अपने आत्मबल को बढ़ाने का साधन मानते हैं। वे नकारात्मक टिप्पणियों को प्रेरणा में बदलकर अपने लक्ष्यों की ओर निरंतर अग्रसर रहते हैं। जब आप अपने उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो एक समय ऐसा भी आता है जब निंदक स्वयं निराश हो जाते हैं।
दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य अनावश्यक दबाव से बचकर जीवन जीना है तो सबसे पहले स्वीकार लें कि हर व्यक्ति को ईश्वर ने किसी न किसी उद्देश्य से बनाया है। किसी की निंदा करना, ईश्वर की रचना का अनादर करने के समान है। दूसरों की आलोचना करके हम स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह वास्तविक आत्म-सम्मान नहीं है। जो व्यक्ति अपने आत्म-विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करता है, वह दूसरों की आलोचना करने के बजाय आत्म-विकास की दिशा में अग्रसर होता है। आलोचना से अधिक प्रभावी है प्रशंसा करना और दूसरों को प्रेरित करना। इसलिए दोस्तों, किसी भी इंसान की निंदा करने के स्थान पर उसे ईश्वर की रचना मानकर उसका सम्मान करें।
अंत में निष्कर्ष के तौर पर इतना ही कहना चाहूँगा कि निंदा करने की प्रवृत्ति को त्यागकर, हमें आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास की ओर बढ़ना चाहिए। जब हम दूसरों की सफलताओं को सराहते हैं और उनकी अच्छाइयों को अपनाते हैं, तब हम भी मानसिक शांति और संतोष की अनुभूति करते हैं। इसलिए, निंदा से बचें, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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