Aug 19, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, आप निश्चित तौर पर मेरी इस बात से सहमत होंगे कि सफल होने का अर्थ हम सबने "पैसे वाला होना'' बना लिया है, अर्थात् ‘अगर आप अमीर हो, तो आप सफल हो’, मानना शुरू कर दिया है। कुछ हद तक यह सोच ठीक भी है, ‘पैसा’, कोई बुरी या त्याज्य चीज़ नहीं है, विशेषकर तब जब वर्तमान दुनिया का स्वरूप ही इसके आस-पास बन गया है, जहाँ पैसे के बिना मनुष्य का जीवन निर्वहन सम्भव नहीं है लेकिन इसके बाद भी मुझे लगता है कि पैसा एक संसाधन से अधिक कुछ भी नहीं है और हमें इस बात को कभी भूलना नहीं चाहिए।
सिर्फ़ पैसे कमाने को अपना लक्ष्य बनाना और इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए साम, दाम, दंड, भेद को काम में लेना अर्थात् किसी भी तरह से इसे चारों ओर से बटोरना, मेरी नज़र में सही नहीं ठहराया जा सकता है। पैसा तभी तक शुभ और हितकर है, जब तक उसे कमाते वक्त जीवन की अन्य प्राथमिकताओं जैसे - स्वास्थ्य, रिश्ते, व्यवसाय, समाज, दोस्ती, सेवा आदि का बराबर ध्यान रखा जाए। इसके साथ ही हमें एक महत्वपूर्ण बात हमेशा याद रखना चाहिए कि पैसा वही लाभदायक है, जो पूरी ईमानदारी के साथ कमाया जाए और उसका सदुपयोग किया जाए।
इसके विपरीत अगर आप जीवन की अन्य प्राथमिकताओं को नकारते हुए, किसी भी क़ीमत पर पैसे कमाने के पक्षधर हैं, तो पिछले सप्ताह घटी दो प्रमुख घटनाओं को याद करके देख लीजिएगा, जिसमें डच बैंक के पूर्व सी.ई.ओ अंशु जैन का मात्र 61 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया और दूसरी घटना, जिसमें भारतीय वॉरन बफ़े कहे जाने वाले शेयर बाज़ार के बड़े इंवेस्टर राकेश झुनझुनवाला का किडनी की बीमारी से 62 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। इसी तरह कुछ वर्ष पूर्व एप्पल कम्पनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स का 56 वर्ष की आयु में कैंसर से निधन हो गया ।
अगर आप इन लोगों कि जीवनशैली को ध्यान से देखेंगे तो आप पाएँगे कि इन्होंने अपने कैरियर के शुरुआती वर्षों से लेकर कई सालों तक स्वास्थ्य से लेकर अन्य सभी प्राथमिकताओं को लगातार नज़रंदाज़ किया। जिसका ज़िक्र उन्होंने स्वयं अलग-अलग मौक़ों पर किया। उदाहरण के लिए, एप्पल कम्पनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने जीवन के अंतिम दिनों में कहा था, ‘इस समय, बीमार, बिस्तर पर लेटे हुए और अपने पूरे जीवन को याद करते हुए, मुझे एहसास हुआ कि जिस पहचान और धन पर मुझे इतना गर्व था, आज आसन्न मृत्यु के सामने अर्थहीन हो गया है।’
ठीक इसी तरह दोस्तों राकेश झुनझुनवाला ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘‘पैसे ने मुझे मारुति कार के बजाय मर्सिडीज में यात्रा करने की अनुमति दी है, मैं 1,000 वर्ग फुट के फ्लैट के बजाय 5,000 वर्ग फुट के फ्लैट में रहता हूँ। फोर स्क्वायर सिगरेट पीने के स्थान पर, मैं अब इंडिया किंग्स सिगरेट पीता हूँ और मैं डिप्लोमैट के बजाय ब्लू लेबल व्हिस्की पीने लगा हूँ। इसके अलावा, पैसे से मेरे जीवन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है।’ इतना ही नहीं, एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी कहा था कि ‘इतना पैसा कमाने के बाद मुझे एक बात का एहसास हुआ है कि पैसे कमाने का कोई अंत नहीं है। आज मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास जितना लोग सोचते हैं, उससे कम धन है, लेकिन जितना मुझे वास्तविकता में चाहिए, उससे कहीं अधिक है।’
दोस्तों, जीवन को अगर तीन हिस्सों में बाँटकर देखा जाए तो आप पाएँगे कि प्रारंभिक जीवन अर्थात् बचपन में, हमारे पास पर्याप्त समय और स्वास्थ्य था, लेकिन पैसा ना के बराबर था। मध्य जीवन अर्थात् जवानी में हमारे पास अच्छा स्वास्थ्य और पर्याप्त पैसा है, लेकिन हमारी अपनी प्राथमिकताओं, अपनी इच्छाओं के लिए समय कम है और जीवन के उत्तरार्ध अर्थात् बुढ़ापे में हमारे पास पर्याप्त धन और समय है, लेकिन स्वास्थ्य बहुत कम है।
दोस्तों अगर थोड़ा सा गहराई से सोचेंगे तो आप जीवन की विडम्बना को अच्छे से समझ पाएँगे कि जीवन के विभिन्न पड़ाव पर हम विभिन्न चीजों को साधने के लिए परेशान होते रहे या चिंतित रहे। जीवन के पहले हिस्से में हमें स्वतंत्रता और पैसा चाहिए था, दूसरे हिस्से में हम ख़ुशी, शांति, तनाव रहित जीवन की तलाश में रहे और जब यह सब मिला तब जीवन के तीसरे पड़ाव में हमारे पास अच्छा स्वास्थ्य नहीं था। सीधे-सीधे शब्दों में कहा जाए तो पहले हम पैसों के सपने या उसे पाने के लिए खुद को तैयार करने में जीवन बिताते हैं, फिर हम पैसा कमाने के लिए समय लगाते हैं और अंत में उस पैसे को स्वास्थ्य हासिल करने के लिए खर्च करते हैं। जबकि असली जीवन की कुंजी तीनों को संतुलित करना है।
याद रखिएगा, आप पैसों से अपने लिए कार चलाने के लिए किसी को नियुक्त कर सकते हैं, आपके लिए कोई ओर पैसा कमा सकता है लेकिन आप पैसे से अपने बदले बीमारी को सहन करने वाला नहीं ला सकते हैं। इसलिए हमेशा याद रखिएगा, खोई हुई हर चीज़ आपको वापस मिल सकती है, लेकिन एक चीज है जो खो जाने पर कभी नहीं मिलेगी वह है आपका “जीवन”, उसे फ़ालतू में बर्बाद करने के स्थान पर जिएँ !!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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