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प्रभावी संवाद के लिए सुनना और समझना है जरूरी…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Apr 8
  • 3 min read

Apr 8, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, अक्सर हम संवाद को कहे जाने वाले शब्दों से जोड़ कर देखते हैं। लेकिन यह महज शब्दों का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह तो दिल और दिमाग को जोड़ने की प्रक्रिया है। जी हाँ, प्रभावी संचार का अर्थ केवल सही शब्द बोलना नहीं है, बल्कि सामने वाले की भावनाओं और विचारों को समझना भी है। जब हम सच में किसी को सुनते हैं, तब ही एक सार्थक बातचीत संभव होती है।


अक्सर माना जाता है कि संवाद का उद्देश्य अपने विचारों को व्यक्त करना है। लेकिन वास्तव में यह अधूरी धारणा है, हकीकत में तो संवाद दोतरफा प्रक्रिया है। जी हाँ! सही संवाद में केवल बोलने की नहीं, बल्कि सुनने की भी अहम भूमिका होती है। यदि हम सामने वाले को ध्यान से सुनते हैं और उसके विचारों को समझने का प्रयास करते हैं, तो ही संवाद अधिक प्रभावी और सार्थक बन पाता है। लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं हो पाया तो कहीं और समझी गई बात के बीच गहरी खाई उत्पन्न हो जाती है। इसी बात को समझाते हुए ख़लील जिब्रान ने कहा है, ‘जो कहा गया है और जो समझा गया है, उसमें और जो कहा नहीं गया है, लेकिन कहना चाहा गया है, उसमें अधिकतर प्रेम खो जाता है।’ अर्थात् हम अपनी भावनाओं और विचारों को हमेशा शब्दों में पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं हो पाते। कभी-कभी लोग अपने असली विचार या भावनाएँ छुपा लेते हैं या ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते। ऐसी स्थितियों में यदि हम धैर्यपूर्वक सुनें और संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया दें, तो हम संवाद को सार्थक बना सकते हैं।


दोस्तों, इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ, हर सफल बातचीत की शुरुआत एक अच्छे श्रोता से होती है। जब हम ध्यानपूर्वक सुनते हैं, तो हम न केवल शब्दों को बल्कि उनकी गहराई और भावनाओं को भी समझ पाते हैं। इससे सामने वाले को यह महसूस होता है कि उसकी बातों को महत्व दिया जा रहा है, जिससे रिश्ते मजबूत होते हैं। अगर आप संवाद कौशल में ख़ुद को बेहतर बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले ख़ुद को एक अच्छा श्रोता बनायें क्योंकि एक अच्छा संवाद; सुनने वाले से शुरू होता है। इसके लिए आपको निम्न चार बातों को अपनाना होगा जो आपको सामने वाले से भावनात्मक रूप से जुड़ने में मदद करेगी-

१) बिना बाधा के सामने वाले को बोलने देना

२) बीच में टोकने से बचना

३) आँखों का संपर्क बनाए रखना

४) सहानुभूति और समझदारी दिखाना


इसके अतिरिक्त, संवाद के दौरान नकारात्मक बातों से बचें। जब आप नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं या नकारात्मक भाव प्रदर्शित करते हैं या फिर किसी को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं, तब आप स्वयं को ही कमजोर साबित करते हैं। याद रखिएगा, आलोचना करना और दूसरों की गलतियों को उजागर करना अक्सर सामने वाले को आहत करता है और अक्सर संबंधों में खटास भी लाता है। इसलिए ही कहा गया है, ‘जब आप किसी और को बुरा दिखाने की कोशिश करते हैं, तब आप कभी भी अच्छे नहीं लग सकते। इसलिए दोस्तों, अपने शब्दों को चुनते समय सावधानी बरतें और हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ। आलोचना करने से बेहतर है कि रचनात्मक सुझाव दें और समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करें।


अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि संवाद का सार सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि भावनाओं और समझ में छुपा होता है। जब हम अच्छे श्रोता बनते हैं, दूसरों की भावनाओं को समझते हैं और नकारात्मकता से बचते हैं, तो संवाद अधिक प्रभावी और सार्थक बन जाता है। इसके लिए हर बातचीत को एक अवसर के रूप में लें, जिसमें आप न केवल अपनी बात कह सकें, बल्कि दूसरों को भी समझ सकें। यही प्रभावी संचार की सच्ची कला है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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