Jan 7, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जनवरी 3 को हमने ‘बच्चों को चखने दें अलग-अलग क्षेत्रों का स्वाद…’ लेख में समझा था कि बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान होना किस तरह उन्हें बेहतर ज़िंदगी बनाने में मदद करता है। वैसे तो इस पर आप सभी की ढेरों प्रतिक्रियाएँ आई लेकिन मैं आज उनमें से एक विशेष प्रतिक्रिया पर चर्चा करना चाहूँगा, जिसमें पाठक ने कहा था, ‘मैं आपसे सहमत हूं, मेरा बच्चा 13 साल का है और हर साल वह अलग-अलग खेलों में हाथ आजमाता है। जैसे तैरना, स्कैटिंग, क्रिकेट, अबैकस आदि। मैं उसे कभी किसी चीज के लिए मजबूर नहीं करता और साथ ही उसे खुश व संतुष्ट करने की कोशिश करता हूं। यहाँ तक कि मैंने अपने करियर में कई क्षेत्रों में कोशिश की और अभी भी 42 साल की उम्र में नई चीजें सीख रहा हूं और नए उद्यमों की जानकारी ले रहा हूं।अलग-अलग क्षेत्रों को परखने से हम किसी एक क्षेत्र विशेष में विशेष योग्यता तो नहीं प्राप्त कर पाते लेकिन ‘जैक ऑफ ऑल’ ज़रूर बन जाते हैं। मुझे नहीं पता कि इस प्रकार की सोच हमारे जीवन को खुशहाल बना सकती है या नहीं और साथ ही क्या हम परिवार की जरूरत को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से सम्पन्न बन पाते हैं? मैंने अपने जीवन में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा है और अभी भी आर्थिक रूप से व्यवस्थित नहीं हो पाया हूं।’
हालाँकि, यहाँ मेरे हिसाब से एक नहीं, तीन प्रश्न है। पहला, ‘जैक ऑफ ऑल’ बनने से क्या हम सफल हो पाएँगे? दूसरा, क्या इस तरह का कार्य हमें ख़ुशी दे सकता है? तीसरा, क्या यह रास्ता हमें आर्थिक सम्पन्नता की ओर ले जाता है? चलिए, आज के लेख से इनके समाधान खोजने का प्रयास करते हैं-
बच्चों का थोड़े-थोड़े समय में अलग-अलग क्षेत्रों में हाथ आज़माना मेरी नज़र में कहीं से भी ग़लत नहीं है। लेकिन जब वह अलग-अलग क्षेत्रों में हाथ आज़माता है, तब उसकी प्रतिक्रिया, पसंद-नापसंद को पहचानना बड़े होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। जब आप समय से बच्चे की विशेषता को पहचान जाते हैं तब आप उसे ‘जैक ऑफ ऑल एंड मास्टर ऑफ वन’ बना पाते हैं। अपनी बात को मैं आपको दुनिया के महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन के जीवन की एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।
विद्यालय से कमजोर बच्चा कह कर निकाले जाने के बाद आइंस्टीन की माताजी ने उनकी शिक्षा और परवरिश की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली। जब उन्होंने बारीकी से आइंस्टीन के व्यवहार का अध्ययन किया तो उन्हें पता लगा कि आइंस्टीन जिज्ञासु प्रवृत्ति के हैं लेकिन वे किसी एक चीज़ पर लम्बे समय तक फ़ोकस नहीं रख पाते हैं। आइंस्टीन की माँ चूँकि संगीत में महारत रखती थी इसलिए उन्हें पता था कि संगीत से प्रेम व्यक्ति में धीरज अर्थात् पैशेंस और फ़ोकस का विकास कर सकता है। उन्होंने एक शिक्षक की मदद से आइंस्टीन को वायलिन सिखाना शुरू किया।
कुछ दिन तो सब ठीक चला लेकिन एक दिन किसी बात पर आइंस्टीन अपने शिक्षक पर इतने अधिक नाराज़ हुए कि उन्होंने वायलिन अपने शिक्षक के सिर पर दे मारा। माँ जिन्हें अपनी विचारधारा पर पूर्ण विश्वास था उन्होंने आइंस्टीन के व्यवहार को देख हार नहीं मानी और कुछ दिनों का ब्रेक देकर एक दूसरे शिक्षक को बुलाकर आइंस्टीन को वापस से वायलिन सिखाना शुरू कर दिया। कालांतर में आइंस्टीन एक बेहतरीन वैज्ञानिक बनने के साथ-साथ एक बेहतरीन वायलिन वादक भी बने। आइंस्टीन वायलिन को अपना सबसे प्रिय साथी मानते थे। वायलिन से उनके लगाव का अंदाज़ा आप उनकी कही इस बात लगा सकते हैं कि, ‘मुझे पता है कि मेरे जीवन में सबसे ज्यादा खुशी मुझे मेरे वायलिन से मिली है।’
उपरोक्त किस्से का अगर आप बारीकी से अध्ययन करेंगे तो आप पाएँगे कि आइंस्टीन की माताजी ने आइंस्टीन की कमजोरी और विशेषता दोनों को पहचाना और उसे नर्चर किया। बच्चों को अलग-अलग क्षेत्र में हाथ आज़माते हुए यही कार्य हमें भी करना है। दूसरे प्रश्न के विषय में, मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि जब आप कार्य अपनी पसंद का करते हैं तब आप खुश अपने आप रहते हैं क्योंकि आप अपने अंतर्मन के साथ सामंजस्य बैठा कर चलते हैं और रही बात आर्थिक सफलता की, तो उसके लिए आपको स्वयं को आर्थिक रूप से शिक्षित करना होगा या अपनी वर्तमान स्थिति को बेहतर तरीके से एनालाइज करना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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