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बड़े लक्ष्यों से ज़्यादा ज़रूरी है, बच्चों का बड़ा आत्मविश्वास…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 21, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पेरेंटिंग या बच्चों का लालन-पालन जहाँ कुछ माता-पिता के लिए संतोष देने वाला अनुभव होता है, तो कुछ के लिए तनाव भरा। आपके लिए यह अनुभव कैसा रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चों को आप किस उद्देश्य को लेकर बड़ा कर रहे हैं अर्थात् आप उन्हें अपने सपनों का राजकुमार या राजकुमारी बनाना चाह रहे हैं या फिर आप उन बच्चों को खुद के अंदर छुपी भगवान की बनाई अप्रतिम कृति को खोजने में मदद कर रहे हैं। जब आप बच्चों को अपनी सोच का एक्सटेंशन मानते हैं, तो वे तनाव, दबाव व आत्मविश्वास की कमी से जूझते हुए बड़े होते हैं और अगर इसके विपरीत आप उन्हें खुद को खोजने, खुद को जानने और अपनी क्षमताओं को पहचानने का मौक़ा देते हुए, जीवन में आगे बढ़ाते हैं तो वे ना सिर्फ़ जीवन में बड़े लक्ष्यों को पाते हैं, बल्कि खुश, मस्त रहते हुए अपना बचपन जीते हैं। दूसरे तरह से बच्चों का लालन-पालन करते वक्त आपका रोल उन्हें सिर्फ़ सही दिशा देना होता है। जिससे वे आपके अनुभव से लाभ लेते हुए, कम से कम ग़लतियाँ करते हुए, अपने जीवन में सफल हो पाएँ। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


हर पिता की तरह, पक्षियों के राजा बाज ने अपने बच्चे को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उड़ना और शिकार करना सिखाना शुरू किया। अभी बाज के बच्चे को खुद से उड़ते, पिता के साथ शिकार करते कुछ ही दिन हुए थे कि उसे ऐसा लगने लगा था कि वह सब-कुछ सीख गया है। अब वह जब भी मौक़ा मिलता हवा में कलाबाज़ियाँ कर के सभी के सामने अपनी धाक जमाने का प्रयास किया करता था। एक दिन वह अपने पिता के पास पहुँचा और बोला, ‘पिताजी, वह देखो सूअर, मैंने सुना है, उसका मांस बड़ा स्वादिष्ट होता है। क्या मैं उसका शिकार कर लूँ?’


पिता जो उस बच्चे की क्षमताओं को अच्छे से जानते थे ने, बड़े प्यार से उसे समझाते हुए कहा, ‘ज़रूर बेटा तुम उसका शिकार करने के लिए ही बने हो लेकिन अभी तुम तैयार नहीं हो। सूअर एक बड़ा शिकार है, इसलिए अभी तुम चूहे से शुरुआत करो।’ हालाँकि बाज का बच्चा पिता की बात से सहमत नहीं था लेकिन फिर भी कोई उपाय ना देख उसने उनकी सलाह पर काम करना शुरू किया और कुछ ही दिनों में पूर्ण कुशलता के साथ चूहों का शिकार करना सीख गया। इससे उसका आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ गया।


बढ़े हुए आत्मविश्वास के साथ एक दिन वह फिर अपने पिता के पास पहुँचा और बोला, ‘पिताजी, क्या मैं अब सुअर का शिकार कर आऊँ?’ पिता ने एक बार फिर उसे रोकते हुए कहा, ‘थोड़ा और रुको और पहले ख़रगोश का शिकार करना सीखो।’ कुछ ही दिनों में बाज के बच्चे ने कुशलता पूर्वक ख़रगोश का शिकार करना भी सीख लिया और एक बार फिर सूअर का शिकार करने की आज्ञा लेने अपने पिता के पास पहुँच गया। पिता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘यकीनन तुम अब एक अच्छे शिकारी बन गए हो लेकिन मेरा सुझाव है कि तुम पहले मेमने का शिकार करना भी सीख लो।’ बाज ने अनमने मन से पिता की सलाह पर काम करना शुरू किया और जल्द ही मेमने का शिकार करने में पारंगत हो गया। पिता, जो अपने बच्चे पर, उसकी निखरती हुई क्षमताओं पर पैनी निगाह बनाए हुए थे एक दिन पेड़ की डाल पर बैठे अपने बच्चे के पास पहुंचे और मुस्कुराते हुए बोले, ‘देखो, वह सुअर जा रहा है, जाओ उस पर झपट पड़ो और उसका शिकार करो।’ बाज के बच्चे ने फ़ौरन नीचे की ओर उड़ान भरी और कुछ ही पलों में सूअर का शिकार कर अपना मनपसंद खाना खाया।’


दोस्तों, सोच कर देखिए अगर पिता ने उसे पहली बार शिकार करने से ना रोका होता तो क्या होता? नन्हा बाज निश्चित तौर पर असफल होता और यह असफलता उसके आत्मविश्वास पर विपरीत प्रभाव भी डाल सकती थी। इसके विपरीत नन्हे बाज के पिता ने पहले उसे छोटे शिकार में माहिर बनाया, जिसकी वजह से उसका आत्मविश्वास और काबिलियत दोनों बढ़ी और वह अंततः अपने बड़े लक्ष्य को सफलता पूर्वक पा पाया।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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