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बढ़ना है आगे तो जलो मत, साथ चलो…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Nov 22, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, काउन्सलिंग के अपने पिछले कुछ सालों के अनुभव में मैंने पाया है कि बच्चों में आज पीयर प्रेशर अर्थात् दूसरों की बराबरी करने की चाह ख़तरनाक रूप ले चुकी है। इसकी भयावहता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बच्चों की चाह को पूरा करने के लिए कई माता-पिताओं को अपने असेट्स को बेचना अथवा लोन तक लेना पड़ रहा है। ऐसा ही एक मामला आज मेरे समक्ष आया जिसमें कोविद के दौरान ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए बच्चे की माँग पर पहले पिता ने लोन लेकर एक बहुत महँगा मोबाइल ख़रीदा और फिर लैपटॉप। इतना ही नहीं इसके बाद पिता ने बच्चे द्वारा ज़िद करने पर उसका दाख़िला शहर की एक महँगी कोचिंग में करवाया और उसे वहाँ तक जाने में दिक़्क़त ना हो इसलिए हाल ही में किश्तों पर एक मोटर साइकिल ख़रीद कर दी। यहाँ ध्यान देने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चा ज़िद करके पिता से यह सब सिर्फ़ दूसरों की बराबरी करने के लिए करवा रहा था।


पिता के अनुसार आज उनकी आमदनी का लगभग 60% हिस्सा बच्चे की ज़रूरत के लिए ख़रीदे गए विभिन्न साधनों की किश्त भरने में चला जाता है। बचे हुए पैसों से वे बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पालन-पोषण करने का प्रयास कर रहे हैं और कई बार तो स्थिति इतनी विकट हो जाती है कि परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें दूसरों से उधार तक लेना पड़ता है। बातचीत के दौरान पिता, जो स्वयं अनपढ़ थे, ने मुझसे कहा कि उनके जीवन का सबसे गलत निर्णय बच्चे को अच्छे प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाना था।


दोस्तों, किसी की आमदनी, सम्पत्ति, पोजीशन अथवा वैभव को देख प्रेरणा लेना या प्रेरित होना तो ठीक है, लेकिन बिना मेहनत के उसे पाने की आस रखना कहीं से भी उचित नहीं है और शायद यही बात हम आज के बच्चों को सिखा नहीं पा रहे हैं। जिसके कारण बच्चे बराबरी ना कर पाने पर हीन भावना, ईर्ष्या जैसे भाव का शिकार हो जाते हैं। मुझे लगता है कि इसकी मूल वजह बच्चों का जीवन के प्रति नज़रिया हो सकता है, सामान्यतः वे जीवन को एक ही नज़र से देखते हैं। वे भूल जाते हैं कि इस जगत में कोई भी दो लोग समान नहीं हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो भौतिक संसाधनों को दृष्टिगत रख कोई पूर्ण हो ही नहीं सकता है।


जी हाँ साथियों, बच्चों को इससे बचाने के लिए हमें उन्हें बताना होगा कि यह सत्य है कि आपके कुछ साथियों के पास जो है वह आज आपके पास नहीं है, मगर आप इसी स्थिति को दूसरे नज़रिए से देखेंगे तो पाएँगे कि जो कुछ भी आपके पास है, उसमें से भी बहुत कुछ सामने वाले के पास नहीं है अर्थात् जिस तरह वह कुछ संसाधनों के साथ अनूठा है, ठीक उसी तरह आप भी कुछ संसाधनों के साथ अनूठे हैं। प्रकृति या ईश्वर कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस दुनिया में अगर कोई भी पूर्ण नहीं है तो कोई भी पूरी तरह अपूर्ण भी नहीं है। अगर हमारा बच्चा या हम दूसरों को देख हीनभावना का शिकार हो रहे हैं तो इसका अर्थ सिर्फ़ इतना सा है कि हमारा जीवन के प्रति दृष्टिकोण सही नहीं है। जी हाँ, इसे आप इस भाव से समझ सकते हैं कि आप जीवन के जिस पहलू पर नज़र रखते हैं, आपको जीवन का वही पहलू नज़र आता है। अर्थात् पूर्णता या अपूर्णता का भाव इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस पर ध्यान लगा रहे हैं, जो आपके पास नहीं है उसपर या जो आपके पास है उसपर।


याद रखिएगा साथियों, जीवन में तुलना या बराबरी करने का गलत नज़रिया, आपके अंदर ईर्ष्या का भाव पैदा करेगा और अगर आपने इसपर समय से ध्यान नहीं दिया, तो यही ईर्ष्या की आग दूसरों को जलाए या ना जलाए, आपको ज़रूर खत्म कर देगी। अत: दोस्तों अगर हम अपने बच्चों या खुद को तुलना की वजह से उपजी ईर्ष्या से बचाना चाहते हैं, तो हमें उनके या अपने अंदर संतोष के भाव को लाना होगा और साथ ही सही ज्ञान भी लेना होगा, ताकि आप ख़ुशियों भरा जीवन जी सकें। इसके लिए हमें लोगों से ईर्ष्या करने से बचना होगा। साथ ही सकारात्मक रहते हुए खुद को बराबरी करने के लिए तैयार करना होगा। इसीलिए तो कहा गया है, ‘जलो मत, साथ-साथ चलो क्योंकि खुशियाँ जलने से नहीं, अपितु सदमार्ग पर चलने से मिला करती है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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