Sep 29, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा कुछ लोग सब कुछ होने के बाद भी बेचैनी के साथ अपना जीवन जीते हैं, तो वहीं कुछ लोग कमियों और चुनौतियों के बीच भी शांत, खुश और संतुष्ट रहते हुए अपना जीवन जीते हैं। अगर आप इन दोनों ही तरह के लोगों की जीवनशैली को बहुत बारीकी से देखेंगे, उसे समझने का प्रयास करेंगे तो आप पाएँगे कि उनके जीवन की उथल-पुथल के पीछे उनके अंदर चल रहा विचारों का द्वन्द है।
जी हाँ साथियों, जितना ज़्यादा आप भीतर से अशांत होते हैं उतना ही ज़्यादा बेचैनी के साथ आप जीवन जीते हैं। अब सवाल आता है, हमारे अंदर यह विचारों का द्वन्द या अशांति आती कहाँ से है? जवाब बड़ा सीधा सा है साथियों, जब भी आप अपने अंतर्मन के आवाज़ को दबाकर, उसके ख़िलाफ़ जाकर, जीवन जिएँगे आप अपने भीतर विचारों का द्वन्द, बेचैनी और अशांति पैदा करेंगे। इसके विपरीत अगर आप अंतर्मन की आवाज़, जो सामान्यतः सदाचार, नीति, धर्म, आपके अपने जीवन मूल्य की बात करती है, के अनुसार निष्ठापूर्वक जीवन जिएँगे तो यक़ीन मानिएगा, आप देवीय जीवन जीते हैं। अर्थात् आपके और देवों के जीवन में कोई अंतर नहीं होता है।
हो सकता है आप में से कुछ लोग मेरी बात से सहमत ना हों। आपको लगता होगा कि आज के युग में यह सारी बातें खोखली हैं और इनके सहारे जीवन नहीं जिया जा सकता है। आज तो आप सफल सिर्फ़ तब माने जाते हैं जब आप विशिष्ट बन पाते हैं, कुछ बड़ा, बल्कि बहुत ही बड़ा कर पाते हैं। अर्थात् जीवन में बहुत सारा पैसा, नाम, रुतबा कमा पाते हैं। ऐसे लोगों से मैं एक प्रश्न पूछना चाहूँगा। अगर यही सही और एकमात्र पैमाना है तो फिर हमें ऐसे लोग, बल्कि ऐसे परिवार अशांत, परेशान और नाखुश क्यूँ नज़र आते हैं? याद रखिएगा साथियों, देवता वे नहीं हैं जिन्होंने स्वर्ग में घर बनाया है। हक़ीक़त में तो देवता वो हैं जिन्होंने अपने घर को स्वर्ग बनाया है। यह तभी सम्भव हो सकता है जब आप अपने जीवन को जीवन मूल्यों के साथ जिएँ। आपने निश्चित तौर पर सुना होगा हम सभी के अंदर ईश्वर का वास है। इसका अर्थ है साथियों, हमारे अंदर सदाचार, सद्गुणों सद्चरित्रों का वास है। इनका हमारे जीवन में होना या ना होना ही हमें देव या दानव बनाता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो सदाचार, सद्गुणों और सद्चरित्रों का हमारे जीवन में आना ही देवत्व घटना है।
दोस्तों, अगर आप भी अपने घर को स्वर्ग बनाना चाहते हैं, सच्ची सफलता का सुख पाना चाहते हैं तो अपने जीवन को विशिष्ट बनाने या बनने में बर्बाद करने के स्थान पर शिष्ट बनने में लगाएँ। यह तब सम्भव होगा जब आप महान बनने के स्थान पर अच्छा इंसान बनने का प्रयास करेंगे। यक़ीन मानिएगा जैसे ही आप अच्छे और सच्चे इंसान बनने की शुरुआत करेंगे, आपके महान बनने की प्रक्रिया अपने आप शुरू हो जाएगी।
महान संत पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहते थे, ‘मनुष्य जन्म मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, बल्कि मनुष्य जन्म लेने के बाद अपने जीवन में मनुष्यता अर्थात् इंसानियत को जन्म देना दुर्लभ और बड़ी बात है, जो आपको महान बनाती है।’ तो आइए दोस्तों, आज से अपनी जीवनशैली में एक सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं और निर्णय लेते हैं कि हमारे जीवन में देवत्व घटे ना की हमारे जीवन से देवत्व घटे। अर्थात् हम शिष्ट बन, जीवन मूल्यों के साथ अपना जीवन जीना प्रारम्भ करें। यही हमें दूसरों या भीड़ से अलग कर विशिष्ट बनाएगा, महान बनाएगा। शायद इसीलिए विख्यात लेखक शिव खेड़ा जी ने भी कहा है, ‘जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते, वे तो बस हर काम को अलग ढंग से करते हैं।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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