Nov 3, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी कहानी से करते हैं जो अपने अंदर जीवन को बेहतर बनाने का बहुत ही सुंदर सूत्र छुपाए हुए है। बात कई वर्ष पुरानी है, रामपुर के घने जंगलों के बीच से एक बहुत ही उथली और तेज़ बहाव वाली नदी बहा करती थी। इस नदी को पार करना हर किसी के बस का नहीं था। एक बार जंगल के एक हिस्से में आग लग गई, सभी जानवर जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे। उसी जंगल में रहने वाले एक समझदार हाथी ने सभी जानवरों को सलाह दी कि अगर जान बचाना चाहते हो तो किसी भी तरह नदी के उस पार पहुँचो।
हाथी द्वारा दी गई सलाह सभी जानवरों को पसंद आ गई और सभी जानवर एक-दूसरे की मदद से सफलता पूर्वक नदी पार करके दूसरी ओर आ गए, सिवाय एक बिच्छू के। बिच्छू की डंक मारने की आदत की वजह से कोई भी उसे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं था। नदी किनारे एक कछुए को देख वह गिड़गिड़ाने लगा, उससे मदद की गुहार लगाते हुए बोला, ‘कछुए भाई अब तुम ही मेरी आख़री उम्मीद हो। तुम्हें तो पता ही है मैं एक बुरा तैराक हूँ कृपया करके अपनी पीठ पर बैठाकर मुझे नदी के उस पार छोड़ दो।’
उसकी बात सुनते ही कछुआ जोर से हंसते हुए बोला, ‘पागल थोड़ी हो गया हूँ जो तुम्हारी जान बचाने के प्रयास में अपनी जान दांव पर लगा दूँगा। जब मेरा पूरा ध्यान तैरने पर होगा तब तुम मुझे डंक मार दोगे और मैं तुम्हारे ज़हर की वजह से डूब जाऊँगा।’ कछुए की बात सुन अपने हाथ जोड़ते हुए बिच्छू बोला, ‘कछुए भाई, तुम्हें अगर मैं तैरते वक्त डंक मारूँगा तो क्या मैं बच पाऊँगा? तुम्हारी बात तुम्हें ही तर्क संगत लगती है क्या? वैसे भी तुम मेरी जान बचा रहे हो, इस बात का एहसास है मुझे।’
बिच्छू की बात सुन कछुए का दिल पसीज गया, उसे अपने व्यवहार पर ग़ुस्सा आ रहा था और वह रोने लगा। रोते-रोते ही वो किनारे के एकदम पास आया और बिच्छू से बोला, ‘माफ़ करना भैया, मैं ग़लत सोच में पड़ गया था। आओ मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें नदी पार करवा देता हूँ।’ बिच्छू के पीठ पे चढ़ते ही कछुए ने तैरना शुरू कर दिया।
बढ़िया मीठी-मीठी बात करते-करते वे अभी आधी से थोड़ी सी ज़्यादा नदी ही पार कर पाए थे कि बिच्छू ने कछुए को घातक तरीक़े से डंक मार दिया। डंक मारते ही कछुए पर मूर्छा छाने लगी और वह डूबने लगा। बड़ी मुश्किल से अपनी बची शक्ति इकट्ठे करते हुए वो बिच्छू से बोला, ‘तुम तो अभी तर्कों के साथ इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे। धर्म की दुहाई दे रहे थे, फिर तुमने ऐसा क्यूँ किया?’ कछुए के साथ ही डूबता हुआ बिच्छू बड़े उदास स्वर में बोला, ‘मेरे डंक मारने का तर्कों से कोई लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ़ मेरा चरित्र है।’
वैसे तो दोस्तों, इस कहानी में छिपे जीवन के सूत्र को आप समझ ही गए होंगे लेकिन फिर भी एक बार संक्षेप में इस पर चर्चा कर लेते हैं। हमारी इस दुनिया में भी इंसानों के रूप में बिच्छू समान लोग पाए जाते हैं, जो आपके द्वारा भला करने के बाद भी आपको धोखा देते हैं, आपके साथ छल कर, ग़लत व्यवहार करते हैं। ऐसी स्थिति में अक्सर हम खुद का दोहरा नुक़सान कर लेते हैं। पहला, जो नुक़सान उन्होंने हमें दिया, वह होता है और दूसरा, जो हम उसके बोझ को अपने दिल पर रख कर करते हैं। अगर आप ऐसी स्थिति में भी अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले तो इस बात को स्वीकार लीजिए कि ऐसे लोगों से बच कर जीवन जीना मेरी नज़र में कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है। दूसरी बात, इन्हें माफ़ कर अपने दिल के बोझ को हल्का कीजिए और एक बार शांति से विचार कर देखिए कि ऐसा करना उसकी मजबूरी थी या उसका चरित्र ही ऐसा है। अगर चरित्र ऐसा है तो उससे परिचय तक बात सीमित रहने दें। लेकिन अगर उसने मजबूरी में ग़लत किया था तो आप समय और आवश्यकतानुसार अपने विवेक से निर्णय ले सकते हैं। लेकिन दोस्तों, सबसे बेहतर उपाय तो यही है कि उसे माफ़ करें और गलती करने का अगला मौक़ा ना दें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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