Jan 13, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, एजुकेशन कंसलटेंसी के अपने कार्य के दौरान 7 राज्यों के 150 से ज़्यादा विद्यालयों के साथ काम करते हुए मुझे नई पीढ़ी के साथ काफ़ी वक्त बिताने का मौक़ा मिला है। उनसे हुई बातचीत के दौरान मैंने कई बार महसूस किया है कि वे हमारी पीढ़ी के मुक़ाबले ज़्यादा गति से चीजों को सीख और समझ सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शायद इस पीढ़ी का आई॰क्यू॰ हमसे अधिक है। इसके साथ ही अगर संसाधनों की बात की जाए तो इस पीढ़ी के पास वह भी हमारी पीढ़ी के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा है। उदाहरण के लिए इंटरनेट, अच्छे विद्यालय, कोचिंग सेंटर आदि को देख सकते हैं।
इतना ही नहीं इस पीढ़ी में आगे बढ़ने, जीवन को पूर्णता के साथ खुश रहते हुए जीने, अमीर बनने की चाहत भी शायद हमारी पीढ़ी के मुक़ाबले ज़्यादा है। यह पीढ़ी अपने जीवन को मज़े के साथ जीना चाहती है अर्थात् वे क्वालिटी ऑफ़ लाइफ़ पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन दोस्तों किसी चीज़ को पाने की इच्छा रखना और उसे पाना दो बिलकुल अलग बातें हैं। अगर आप इस पीढ़ी को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि यह सब चीजों को पाना तो चाहती है लेकिन उसे पाने के लिए आवश्यक मेहनत करने से बचना भी चाहती है। इस पीढ़ी के ज़्यादातर युवा सफलता सही नहीं, किसी भी क़ीमत के पक्षधर हैं। इसलिए कई बार जीवन मूल्यों को ताक पर रख सफलता शॉर्टकट से पाना चाहते हैं।
उपरोक्त बातों को सुनकर आपको ऐसा लग रहा होगा कि नई पीढ़ी थोड़ा बिगड़ती जा रही है। तो आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि नई पीढ़ी बिगड़ नहीं रही है अपितु हम लोग उन्हें सही दिशा नहीं दिखा पा रहे हैं। अगर आप उपरोक्त बातों को एक बार फिर बिना धारणा बनाए पढ़ेंगे तो आप निश्चित तौर पर देख पाएँगे कि यह पीढ़ी सफल होने की इच्छा नहीं इरादा रखती है, इसके पास सफलता के लिए आवश्यक ऊर्जा भी है, यह पीढ़ी सफलता के लिए आवश्यक तार्किक ज्ञान भी रखती है, लेकिन दिशा का सही भान और जीवन मूल्यों की महत्ता पता ना होने के कारण थोड़ी सी भटकी हुई लगती है। गम्भीरता से सोच कर देखिएगा साथियों, इस पीढ़ी को दिशा दिखाने और जीवन मूल्य सिखाने का ज़िम्मा किसका था? निश्चित तौर पर हमारा…
इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ नई पीढ़ी को तैयार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को हम लोग सही तरीके से नहीं निभा पाए। इतना ही नहीं, इसके बाद भी हमने अपनी गलती को स्वीकारने के स्थान पर उसका दोष नई पीढ़ी पर देना प्रारंभ कर दिया और उन पर बिगड़े हुए होने का ठप्पा लगा दिया। साथ ही हमारी पीढ़ी के कुछ लोगों ने तो इसके लिए तकनीक याने टेक्नॉलजी याने इंटरनेट, मोबाइल, टीवी आदि को भी ज़िम्मेदार ठहरा दिया है। ऐसे सभी लोगों से मैं सिर्फ़ एक प्रश्न पूछना चाहूँगा, ‘इन बच्चों के हाथ में पहली बार मोबाईल पकड़ाया किसने था? इन्हें टीवी के सामने पहली बार किसने बैठाया था?’ निश्चित तौर पर हमने…
इसका सीधा-सीधा अर्थ यही है साथियों कि हम अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाने में फैल हुए। हमने अपनी इच्छाओं की पूर्ति, अपने कैरियर को बेहतर बनाने, अपने बच्चों को साधन सम्पन्न बनाने या फिर जो चुनौतियाँ या परेशानियाँ आपने अपने जीवन में झेली है, से बचाने के लिए अपना समय अपनी इच्छा अनुसार लगाने का निर्णय लिया था। दूसरे शब्दों में कहा जाए साथियों तो हमने अपना समय बच्चों की परवरिश में लगाने के बजाय अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने में लगाया। जी हाँ साथियों, हमने बच्चों को समय देने के स्थान पर उनकी परवरिश सपोर्ट सिस्टम और संसाधनों से करना बेहतर समझा ताकि हम उनके जीवन को आसान बना सकें और शायद इसी वजह से आज यह परिणाम हमारे सामने है। सोच कर देखिएगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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