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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बोले बिना कहना सीखें अपनी बात…

May 9, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कहने के मुक़ाबले सुनना, हमें ज्ञानी और ज़्यादा बेहतर इंसान बनाता है। लेकिन यह केवल तब संभव हो सकता है, जब हम बोले बिना अपनी बात कहना सीख लें या बोले बिना अपना काम चला सकें। सुनने में आपको मेरी बात थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन दोस्तों, यक़ीन मानियेगा बिना बोले अपनी बात कहना भी एक कला है और जब आप यह कला सीख जाते हैं तब आप अपनी बहुत सारी ऊर्जा बचाने लगते हैं।


सुनने में साथियों, यह बड़ा आसान लग सकता है, लेकिन इसे अपने जीवन में उतारना किसी तपस्या से कम नहीं है क्योंकि इस कला को सीखने के लिए पहले आपको शांत रहना सीखना होगा और यह जीवन के प्रति सही नज़रिया रखे बिना संभव नहीं है। अगर आप थोड़ा सा गंभीरता और गहराई से सोचेंगे और स्वयं के अंदर झांक कर देखेंगे तो पाएँगे कि ज़्यादातर समय हम मानसिक ऊहापोह याने मानसिक दुविधा की स्थिति में रहते हैं और इस स्थिति में रहते हुए सही नज़रिए और शांति की अपेक्षा करना, मेरी नज़र में संभव नहीं है।


इसी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मान लीजिए आपके अंतर्मन में किसी बात को लेकर दुविधा चल रही है या आपको अपने किसी साथी का कार्य बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है। यह स्थिति आपके मन में निश्चित तौर पर दुविधा पैदा करेगी। फिर यह दुविधा आपके मन में विचारों की बाढ़ लाएगी और अत्यधिक विचार आपको ज़्यादा बोलने को मजबूर करेंगे। जब आप अधिक बोलेंगे तब आप कम सुनेंगे और जब आप कम सुनेंगे तब आप कम सीखेंगे और बिना सीखे सही नज़रिए की अपेक्षा करना संभव नहीं है और जब तक नज़रिया सही नहीं होगा तब तक शांत रहना, ख़ुद के जीवन को क़रीब से देखना, अपनी प्राथमिकताएँ समझना संभव नहीं होगा।


जी हाँ दोस्तों, इस दुनिया में अधिकांश लोग जीवन की इन्हीं छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों को ना समझ पाने की वजह से मानसिक ऊहापोह में इतने ज़्यादा उलझे या यूँ कहूँ कि इतने व्यस्त रहते हैं कि वे अपने विचारों को सही दिशा नहीं दे पाते हैं। विचारों में हर पल उलझे रहना, उनके मन में अपच की स्थिति बना देता है और इससे बचने के लिए उन्हें अपनी दुविधा को शब्दों के रूप में उगलना पड़ता है। ऐसे लोग अक्सर खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में बोलने में व्यस्त रहते हैं और यही कारण है कि उन पर हमेशा नकारात्मक विचार और भावनाएँ हावी रहती हैं।


दोस्तों, यही नकारात्मक विचार और भावनाएँ आपको अनावश्यक रूप से हर तरह की ऊर्जा में उलझने को मजबूर करती है और आप अपने जीवन को करीब से देखना भूल जाते हैं। इसीलिए लोग अनजाने में ही अपने जीवन में तनाव, नकारात्मकता, अपमान और अनादर को आमंत्रित कर लेते हैं।


साथियों, अगर आप इस स्थिति से बचना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकताएँ तय करें। सही प्राथमिकताएँ आपको अनावश्यक रूप विचारों के जाल में भटकने से रोकेगी और आप मानसिक रूप से शांत रह पायेंगे। जब आप शांत होंगे तो अपने जीवन को सही दिशा दे पाएँगे और समय के साथ, बिना कहे अपनी बात कहना सीख जाएँगे। ऐसा करना आपकी बहुत सारी ऊर्जा बचाएगा। वैसे भी दोस्तों, जब आप कम बोलते हैं तब आप ज़्यादा सुनते हैं और जब आप ज़्यादा सुनते हैं तब आप ज़्यादा सीखते हैं; ज़्यादा समझदार बनते हैं। यह स्थिति आपको अपने जीवन को बहुत स्वस्थ दृष्टिकोण से देखने में मदद करेगी। तो आईए दोस्तों, इस सूत्र को अपनाते हैं और अपने जीवन को और बेहतर बनाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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