Aug 13, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, जीवन में कई बार आप ना चाहते हुए भी ऐसी दुविधा में फँस जाते हैं, जहाँ एक ओर खाई तो दूसरी ओर कुआँ नजर आता है। अर्थात् आप जीवन में संतुलन बनाने के लिए कुछ भी क्यूँ ना कर लें चारों ओर खुद का ही नुक़सान नज़र आता है।उदाहरण के लिए किसी अपने के साथ विचारधारा का मेल ना खाना।
विचारधारा का मेल ना खाना एक ऐसी स्थिति है, जिसमें अगर आप सामने वाले की विचारधारा को मान के जीवन में आगे बढ़ते हैं तो आप खुद के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाते हैं और अगर आप अपनी विचारधारा या अपने मत के अनुसार चलते हैं तो रिश्ते को खोने या बिगड़ने का डर लगता है। दोनों ही स्थितियाँ हमारे अंदर तर्क, वितर्क और कुतर्क के साथ आंतरिक द्वन्द पैदा करती है। जिसके कारण आपके अंदर बेचैनी, जलन, घबराहट, डर, क्रोध, निराशा जैसे ढेरों नकारात्मक भाव पैदा होते हैं, जो आपकी शांति और ख़ुशी को प्रभावित करते हैं, उन्हें आपसे छीन लेते हैं।
दोस्तों अगर आप इन नकारात्मक भावों से खुद को बचाना चाहते हैं, तो मेरा सुझाव है सबसे पहले अपने सोचने के तरीके को थोड़ा सकारात्मक और यथार्थवादी बनाएँ। आपको लग रहा होगा, ‘यह भी कोई समाधान हुआ क्या?’, लेकिन मेरी सलाह पर, इस बात को सिरे से नकारने से पहले सिर्फ़ एक बार गहराई से सोचकर, महसूस करके देखिएगा।
जी हाँ साथियों, 360 डिग्री पर सोचना आपको उन आयामों पर विचार करने का मौक़ा देता है, जिन पर सामान्यतः हमारा ध्यान नहीं जाता है। सोचने की प्रक्रिया को विकसित करने के लिए आप किसी भी बात को बोलने से पहले एक शॉर्ट पॉज़ लेना शुरू कर सकते हैं। छोटा पॉज़ लेना, विचार की प्रक्रिया को गहराई देने का एक जादुई तरीक़ा है, जिसे आप जितना ज़्यादा प्रयोग में लाते जाएँगे, आप बेहतर बनते जाएँगे। हालाँकि इस उपाय से लाभ मिलने में लम्बा समय लगता है, लेकिन यह वाक़ई में लाभदायक उपाय है। इस प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए आप ध्यान और श्वास व्यायाम का अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान और श्वास व्यायाम का दैनिक जीवन में प्रयोग भावनाओं के प्रवाह पर बेहतर नियंत्रण देकर आपकी विचार प्रक्रिया को बेहतर बनाता है और बीतते समय के साथ न्यूरोलॉजिकल सेटअप को विकसित करता है। हालाँकि सामान्य जीवन में हम इस उपाय से मिलने वाले लाभ को लम्बे समय में महसूस कर पाते हैं।
अगर आप विचारधारा के ना मिल पाने की वजह से उपजी समस्या से तत्काल राहत पाना चाहते हैं, तो मेरा सुझाव है कि आप व्यक्तिगत दृष्टिकोण अर्थात् व्यक्ति और पारिस्थितिक सोच के अनुसार ज़रूरी बातों पर फ़ोकस करते हुए कार्य करना शुरू करें। परिस्थिति के अनुसार सही दृष्टिकोण आपको स्थिति की गम्भीरता को समझने में मदद करेगा। जिससे आप आवश्यकतानुसार आगे बढ़ना, पीछे हटना या नकारात्मक विचारों के ट्रिगर को पहचानकर उससे बचना, जैसे कदम उठा, जागरूक बन सकते हैं। व्यक्तिगत दृष्टिकोण के आधार पर काम करना आपको व्यक्ति और स्थिति को भड़काने या उत्तेजित करने वाली बातों से बचा सकता हैं। दृष्टिकोण पर कार्य करके विचारधारा की वजह से उपजने वाली समस्याओं बचना आसान होता है। विशेषकर तब, जब आप सामने वाले व्यक्ति की सोच, व्यवहार पैटर्न और भावनात्मक स्तर को अच्छे से जानते हों।
वैसे दोस्तों मेरा मानना है, आप पहले उपाय पर अर्थात् सही सोच के लिए ध्यान और श्वास व्यायाम का प्रयोग कर लाभ लेना चाह रहे हों या दूसरे उपाय अर्थात् व्यक्तिगत दृष्टिकोण से, दोनों ही तरीक़ों का प्रयोग कर भिन्न विचारधारा की वजह से उपजी विपरीत परिस्थितियों से सुरक्षित और खुशी से बाहर निकलने के लिए आपको अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया को धीमा करना होगा। याद रखिएगा दोस्तों, जीवन के उच्चतम स्तर को छूने के लिए आपको अपने दिमाग को प्रशिक्षित करना होगा और उपरोक्त सूत्र आपकी इसमें मदद कर सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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