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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

मनचाहा जीवन जीने के लिए आवश्यक है विनम्रता और सरलता…

May 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मैं हमेशा कहता हूँ, ‘अगर आप जीवन को पूर्णता के साथ जीने के लिए क्या-क्या करना चाहिए, सीखना चाहते हैं, तो रामायण पढ़िए और क्या-क्या करने से बचना चाहिए, जानना चाहते हैं ,तो महाभारत पढ़िए।’ अपनी बात को मैं आपको रामायण में वर्णित एक घटना के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


लक्ष्मण को मेघनाद से युद्ध करने जाना था। मेघनाद जो स्वयं एक अप्रतिम योद्धा थे और राम रावण के युद्ध में अभी तक अविजित थे। रावण को उनके बल, उनके युद्ध कौशल पर बहुत गर्व था और उनका मानना था कि मेघनाद ईश्वर से प्राप्त दिव्यास्त्रों के बल पर युद्ध का परिणाम उनके पक्ष में मोड देगा। वैसे यह बात लक्ष्मण जी भी बहुत अच्छे से जानते थे। इसलिए वे सुबह-सुबह भगवान राम का आशीर्वाद लेने, उनकी कुटिया पर पहुँच गए। उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण जी वही रुक कर भगवान राम की पूजा पूर्ण होने का इंतज़ार करने लगे।


पूजा समाप्ति के पश्चात प्रभु श्री राम ने हनुमानजी से पूछा, ‘हनुमान जी! अभी युद्ध शुरू होने में कितना समय है?’ हनुमानजी पूर्ण विनम्रता के साथ हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘प्रभु, अभी काफ़ी समय है! यह तो प्रातःकाल है…' भगवान राम तुरंत लक्ष्मण जी की ओर देखते हुए, मुस्कुराए और बोले, ‘अनुज, यह पात्र लो और भिक्षा माँगकर लाओ। जो भी पहला व्यक्ति मिले उसी से कुछ अन्न माँग लेना…’


भगवान राम के वचन ने हनुमान जी सहित वहाँ मौजूद सभी लोगों को अचरज में डाल दिया। वे सोच रहे थे कि प्रभु श्री राम ने आशीर्वाद देने के स्थान पर, लक्ष्मण जी को भिक्षा माँगने क्यों भेज दिया। ख़ैर, लक्ष्मण जी ने भगवान श्री राम की आज्ञा का तुरंत पालन किया और पात्र लेकर निकल पड़े। कुछ दूर चलने पर उन्हें दुश्मन की सेना का एक सिपाही मिला। आज्ञानुसार लक्ष्मण जी ने उससे भिक्षा माँग ली। सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण जी को कुछ अन्न दे दिया। जिसे लेकर वे वापस भगवान राम के पास आ गये और अन्न उन्हें अर्पित कर दिया। उसके बाद भगवान श्री राम ने मुस्कुराते हुए लक्ष्मण जी को आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘विजयी भव!’


उस वक़्त हनुमान जी सहित वहाँ मौजूद, कोई भी, ना तो भिक्षा का मर्म समझ पाया और ना ही इस विषय में भगवान श्री राम से कुछ पूछ पाया। बस, यह प्रश्न सबके अंदर ही रह गया। उस दिन लक्ष्मण और मेघनाद में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंत में मेघनाथ ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियाँ जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपास्त्र , वैष्णवास्त्र आदि को लक्ष्मण पर चलाया। लक्ष्मण ने उसी पल अपना शीश झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया। हालाँकि, इन अस्त्रों की कोई काट न थी, लेकिन उसके बाद भी सभी अस्त्र लक्ष्मण जी को आशीर्वाद देकर वापस चले गए। इसके पश्चात लक्ष्मण ने भगवान राम का ध्यान करके एक बाण मेघनाद पर चलाया, जिसे देख मेघनाद हंसने लगा। लेकिन देखते ही देखते उस बाण ने मेघनाद का सिर काट दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।


उस दिन शाम को शिवजी की आराधना के पश्चात, वहाँ मौजूद अन्य लोगों के समक्ष हनुमानजी ने प्रभु राम से कहा, ‘प्रभु, आप आज्ञा दें तो एक प्रश्न है?" भगवान राम ने तुरंत हाँ में सर हिला दिया। इसपर हनुमान जी बोले, ‘प्रभु, लक्ष्मण जी को भिक्षा के लिए भेजने के पीछे क्या मर्म था?’ भगवान राम मुस्कुराते हुए बोले, ‘मैं लक्ष्मण को जानता हूँ। वह अत्यंत क्रोधी स्वभाव का है। लेकिन युद्ध को क्रोध से नहीं, विवेक से जीता जाता है। जीवन के हर क्षेत्र में विजयी वही होता है, जो विपरीत समय में अपने विवेक को नहीं खोता है। मैं जानता था कि मेघनाथ ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह युद्ध जीतने के लिये हर तरह के दिव्यास्त्रों का प्रयोग करेगा। इन अमोघ शक्तियों के सामने ताकत नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ विनम्रता ही काम कर सकती थी, इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना सिखाया। एक वीर शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा माँगेगा, तो विनम्रता उसमें स्वयं प्रवाहित होगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण छोड़ा था। यदि मेघनाथ उस बाण के सामने विनम्रता दिखाता, तो मैं उसे भी क्षमा कर देता।’


दोस्तों, जब आप जीवन में पद, पैसा, प्रतिष्ठा आदि की महानता की दीवार को तोड़कर स्वयं को विनम्र एवं तुच्छ या यूँ कहूँ सामान्य लोगों जैसा ही प्रस्तुत करते हैं, तब आप अपनी व्यवहार संबंधी जटिलताओं और अहंकार को वश में कर लेते हैं। जटिलताओं और अहंकार का वश में होना वास्तव में आपके जीवन को आनंददायक बनता है। इसीलिए कहा जाता है, ‘अहंकार को बहला कर, हम समर्पण की कला में श्रेष्ठता हासिल कर सकते हैं।’ याद रखियेगा, यदि आपमें विनम्रता और सरलता के गुण हैं, तो आप यह मान सकते हैं कि आपके पास वह सब कुछ है, जो आपको पूर्णता के साथ जीवन जीने के लिए चाहिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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