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महाभारत से सीखें सफलता के 5 सूत्र…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 29, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आईए आज के लेख की शुरुआत महाभारत से जुड़ी एक सत्य घटना से करते हैं। हालाँकि जन्माष्टमी के पर्व के दौरान भी मैंने महाभारत के इस प्रसंग का ज़िक्र किया था और उस पर प्राप्त आप सभी की प्रतिक्रियाओं ने ही मुझे एक बार फिर उसी पर गहराई के साथ चर्चा करने की प्रेरणा दी। तो चलिए शुरू करते हैं…


अगर आप भारतीय इतिहास के सबसे बड़े युद्ध ‘महाभारत’ की कोई भी घटना उठाकर गहराई से देखेंगे तो आप पाएँगे कि हर घटना हमें जीवन को बेहतर तरीके से जीना सिखाती है। फिर वह चाहे हमारे जीवन का व्यक्तिगत, व्यवसायिक या सामाजिक पहलू ही क्यों ना हो। जैसे महाभारत के युद्ध में आप देखेंगे कौरव हर मामले में पांडवों से बेहतर थे। उदाहरण के लिए मैं आपको पाँच प्रमुख बिंदु बताता हूँ-


1) शक्ति - अगर आप शक्ति के आधार पर कौरवों और पांडवों की तुलना करेंगे तो आप पाएँगे कि कौरवों के पास द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, भीष्म, कर्ण, भगवान कृष्ण की चतुरंगणी सेना तथा अन्य राजाओं का समर्थन और स्वयं दुर्योधन जैसे कई शक्तिशाली एवं महारथी योद्धा थे। अगर आप इन योद्धाओं के बारे में गहराई से पढ़ेंगे तो आप पाएँगे की यह सब अपने आप में ही युद्ध जिताने के लिए काफ़ी थे, लेकिन इसके बाद भी परिणाम इन सभी के खिलाफ़ था।


2) अनुभव - अगर आप अनुभव के आधार पर दोनों सेनाओं की तुलना करेंगे तो आप पाएँगे कि पांडवों को विभिन्न कला सिखाने वाले उनके सभी गुरु कौरवों के साथ थे, फिर चाहे वे परिवार के बुजुर्ग हों या फिर गुरुकुल में शिक्षा देने वाले गुरु, लेकिन इतना अनुभव भी युद्ध के परिणाम को उनके पक्ष में नहीं मोड़ पाया।


3) सामर्थ्य - महाभारत में बताया गया है कि युद्ध की एक वजह दुर्योधन द्वारा पांडवों को सिर्फ़

पाँच गाँव देने से भी इनकार करना है, अपने आप ही बताता है कि भौतिक सामर्थ्य में कौरव पांडवों से हर हाल में बेहतर थे। इसे हम सफलता के लिए आवश्यक संसाधन की उपलब्धता से जोड़कर भी देख सकते हैं। लेकिन आवश्यक संसाधन और सामर्थ्य का होना भी परिणाम को उनके पक्ष में मोड़ नहीं पाया।


4) भावनात्मक स्थितियाँ - वैसे तो युद्ध के दोनों पक्षों को अपने परिवार तथा अपने कुल के ही अन्य लोगों के साथ युद्ध करना था। यह कहीं से भी भावनात्मक रूप से दोनों पक्षों के लिए आसान नहीं था। लेकिन फिर भी भावनात्मक रूप से कौरव, पांडवों की तुलना में बेहतर इसलिए थे क्यूँकि वे स्वयं ही सौ भाई थे। साथ ही उन्हें अपने ननिहाल पक्ष से भी पूरा समर्थन मिला था, और तो और दुर्योधन ने कुटिलता पूर्वक नकुल-सहदेव के मामा पक्ष को भी अपने साथ मिला लिया था।


5) रणनीतिकार - चूँकि कौरवों के पास योद्धा अधिक अनुभवी थे इसलिए रणनीति बनाने में भी वे पांडवों से बेहतर थे। लेकिन उनकी सभी रणनीतियों को ध्वस्त करते हुए अंत में पांडव विजेता बने।


वैसे तो दोस्तों मैं आपको कई और बिंदु बता सकता हूँ जो कौरवों के पक्ष में थे लेकिन वे युद्ध के परिणाम को बदल नहीं पाए। लेकिन आज के विषय को समझने के लिए उपरोक्त पाँच मुख्य वजह अपने आप में ही पूर्ण है। इसलिए बाक़ी सभी बातों को यहीं छोड़ते हुए, मैं यहाँ आपसे एक प्रश्न पूछना चाहूँगा। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पांडव विजेता कैसे बन गए ? अगर आपका जवाब भगवान कृष्ण का उनके साथ होना है, तो मैं इसे नकारूँगा क्योंकि इस विषय में मैं मशहूर चिंतक, कवि श्री कुमार विश्वास जी की बात का समर्थन करता हूँ कि भगवान कृष्ण भगवान अवश्य थे लेकिन वे हमारे बीच मनुष्य योनि में ही यह सिखाने आए थे कि तमाम विपरीत स्थितियों के बाद भी जीवन कैसे जिया जाता है। लेकिन हाँ पांडवों की विजय में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।


तो चलिए आईए पांडवों की विजय के सही कारण और भगवान कृष्ण की भूमिका को हम पांडवों की नज़र से देखने का प्रयास करते हैं-

1) नेतृत्व - अगर आप पांडवों की नज़र से देखेंगे तो आप पाएँगे कि पांडवों ने भगवान कृष्ण को अपना नेतृत्व-कर्ता अर्थात् लीडर माना था। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ की सफलता में इस बात का बहुत फ़र्क़ पड़ता है कि आपका नेतृत्व कौन कर रहा है।


2) समर्पण - भगवान कृष्ण का नेतृत्व स्वीकारने के बाद सफलता के लिए दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ होती है, पूर्ण समर्पण। तमाम दुविधाओं, प्रश्नों, मानसिक या भावनात्मक उलझनों के बाद भी पांडव भगवान कृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित थे।


3) विश्वास - दोस्तों विश्वास के बिना समर्पण नहीं आ सकता है। जिस तरह अर्जुन ने युद्ध शुरू होने के पहले अपनी सभी दुविधाओं पर भगवान श्री कृष्ण से चर्चा करी थी, ठीक उसी तरह हमें भी सफलता के लिए कार्य शुरू करने के पहले नेतृत्व से खुलकर चर्चा कर लेना चाहिए, जिससे आपस में विश्वास का माहौल विकसित किया जा सके।


4) नीति - पूरी महाभारत में आप देखेंगे कि पांडव नीति के साथ थे और कौरव अनीति के हालाँकि दोनों के पास इसकी अपनी-अपनी वजह थी। पर याद रखें तमाम दिक्कतों के बाद भी जीत नीति की ही होती है।


5) कर्म - पांडवों ने परिस्थितियों, घटनाओं या किसी भी बात पर दोष देनें के स्थान पर कर्म को प्रधानता दी, जो अंत में उनकी विजय का मुख्य कारण बना।


दोस्तों अगर आप वाक़ई अपने व्यवसायिक या व्यक्तिगत जीवन में सफल बनाना चाहते हैं तो उपरोक्त बातों को काम में लें और अपने जीवन को बेहतर बनाएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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