Aug 13, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
चलिए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक प्रेरणादायी सच्ची कहानी से करते हैं, जो निश्चित तौर पर आपका दिन बनाने की क्षमता रखती है। जो निश्चित तौर पर आपके जीवन में एक नया उत्साह, एक नई उम्मीद, एक नयी ऊर्जा का संचार करेगी। 90 के शुरुआती दशक में हिंदुस्तान पेट्रोलियम में कार्यरत ‘जो फ्रांसिस’ के घर एक बहुत ही प्यारी लड़की ने जन्म लिया।
माता-पिता दोनों ने बहुत ध्यान और लाड़-प्यार के साथ उसकी परवरिश करना शुरू किया। इसी वजह से मात्र 10 माह की उम्र में ही माता-पिता को पता चल गया कि वह जन्म से ही सुनने और बोलने में सक्षम नहीं थी। तब से उन्होंने उस बच्ची पर और अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया जिससे वे उसकी प्रतिभा को जल्द पहचान कर निखार सकें। लेकिन यह ना तो उस बच्ची के लिए, ना ही उसके माता-पिता के लिए आसान था। इस बच्ची का छोटा भाई रिचर्ड भी इसी बीमारी से पीड़ित था, इसलिए स्कूल में अन्य बच्चे उन्हें तरह-तरह के ताने मारकर चिढ़ाया करते थे तथा उनका और उनके परिवार का मज़ाक़ उड़ाया करते थे। कई बार तो उन बच्चों के साथ लोगों का रवैया ऐसा रहता था मानो उन्होंने कोई पाप किया हो।
पिता इन सब बातों का दुष्परिणाम जानते थे इसलिए उन्होंने कुछ वर्षों के लिए स्कूली शिक्षा घर पर ही देने का निर्णय लिया। बच्चों को मानसिक रूप से मज़बूत बनाने के बाद माता-पिता ने उनका दाख़िला केरल के एक साधारण से स्कूल में करवा दिया। इसके साथ ही माता-पिता ने धीरे-धीरे उस बच्ची को सामान्य छात्र के रूप में ही प्रशिक्षित करना शुरू किया।
कुछ समय बाद पिता को महसूस हुआ कि अपनी प्यारी बिटिया का मनोबल अर्थात् कोनफ़िडेंस बढ़ाने के लिए उसे प्रोफ़ेशनल दुनिया से जोड़ना आवश्यक है। इसलिए उन्होंने उसे मॉडल बनने के लिए प्रेरित किया। बस यहीं से उस बच्ची के जीवन ने एक नया मोड लिया और वो तेज़ी के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने लगी। बीतते समय के साथ उस बच्ची ने सेंट जेवियर्स कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बीए की डिग्री पूरी करी और साथ ही स्वयं को एक सफल मॉडल के रूप में स्थापित करा। इतना ही नहीं दोस्तों, इस बच्ची ने स्वयं को कला के अन्य क्षेत्रों में भी निखारा जैसे ग्लास पेंटिंग, ज्वैलरी डिजाइनिंग आदि।
कहते हैं ना दोस्तों, इंसान के अंदर असीमित क्षमताएँ होती हैं, बस वह उन्हें कभी पहचान नहीं पाता है और इसीलिए परेशान रहता है। पर यह लड़की थोड़ी अलग थी। शायद ईश्वर ने इसे बोलने और सुनने की क्षमता के बदले में अनेकों दूसरी खूबियों से नवाज़ा था। 'इंसान अगर चाहे तो कुछ भी हासिल कर सकता है’, को चरितार्थ करते हुए स्वयं को मॉडल के साथ-साथ खिलाड़ी के रूप में भी स्थापित करा और शॉट-पुट और डिस्क थ्रो में तीन बार राष्ट्रीय चैंपियन बनी। इसके साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अब आप के मन में प्रश्न आ रहा होगा जिसके बारे में इतनी चर्चा कर ली आख़िर उस विशेष व्यक्तित्व का नाम क्या है? तो चलिये उसका नाम भी जान लेते हैं लेकिन उससे पहले उसकी दो मुख्य उपलब्धियों पर भी थोड़ी सी चर्चा कर लेते हैं। वर्ष 2014 में इस लड़की ने मिस डेफ एंड डंब प्रतियोगिता में भाग लिया और फ़र्स्ट रनर अप का ख़िताब जीता और प्राग में मिस वर्ल्ड डेफ एंड डंब प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। डिफ़्रेंटली एबलड लोगों के लिए बनी फ़िल्म ‘बेस्ट विशेज’ में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई और इतना ही नहीं अपने अधिकारों के लिए लड़कर केरल की पहली महिला बनी जिन्होंने श्रवण विकलांगता के बाद भी ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया। तो चलिए आपका परिचय करवाता हूँ लगभग 30 वर्षीय सुश्री सोफिया एम से, जो अभी भी रुकी नहीं हैं बल्कि स्वयं को आने वाले समय में कार रेसर के रूप में स्थापित करने के लिए मेहनत कर रही हैं।
दोस्तों, सोच कर देखिएगा, जब केरल के छोटे से शहर कोच्चि की एक मूक-बधिर लड़की, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी स्वयं को एक प्रसिद्ध मॉडल, एथलीट, ज्वैलरी डिजाइनर, पेंटर, कार रेसर, अभिनेत्री आदि के रूप में स्थापित कर सकती है तो आख़िर हम अपने सपनों को क्यों पूरा नहीं कर सकते? असल में दोस्तों हम और हमारी सफलता के बीच में सिर्फ़ और सिर्फ़ मानसिक बेड़ियाँ ही होती हैं, जिस दिन आप उन बेड़ियों को तोड़ देते हैं, आप सफल होने लगते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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