Aug 21, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी घटती हैं जो उस वक्त तो बहुत साधारण सी लगती हैं, लेकिन बीतते समय के साथ वे आपकी सोच, आपकी कार्यशैली और जीवन जीने के तरीके में बहुत बड़ा परिवर्तन लेकर आती है। यह परिवर्तन नकारात्मक या सकारात्मक दोनों तरह का हो सकता है। नकारात्मक प्रभाव के बारे में तो मैं आज इतना ही कहूँगा कि ऐसी घटनाओं, ऐसे लोगों या ऐसे कारकों को भूल कर, उसे जीवन का महत्वपूर्ण पाठ मान कर, ऐसे लोगों को दिल से माफ़ कर जीवन में आगे बढ़ जाना ही बेहतर रहता है। रही बात सकारात्मक प्रभाव की, तो आज मैं आपको एक सच्ची घटना के साथ इसे समझाने का प्रयास करता हूँ-
हाल ही में मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर रतलाम के प्रसिद्ध विद्यालय सेंट जोसेफ़ कॉन्वेंट सीनियर सेकंड़री स्कूल द्वारा मुझे पेरेंटिंग पर एक सेमिनार करने के लिए आमंत्रित किया गया था। सेमिनार के पश्चात एक सज्जन मेरे पास आए और बोले, ‘सर, बच्चों के लालन-पालन के संदर्भ में आपकी बताई हर बात बिल्कुल सही थी। बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि इतने अच्छे सेमिनार मैं भाग लेने का मौक़ा मुझे जीवन में पहली बार मिला है। आपकी कई बातें हमारे जीवन को बेहतर बना सकती हैं लेकिन मैंने अक्सर पाया है कि इनका असर कुछ दिन ही रहता है। हर कोई इससे लाभ नहीं ले पाता है।’
उन सज्जन की कही बात, थी तो एकदम सही। ट्रेनिंग या बेहतर होगा मैं इसे सत्संग कहूँ, से कुछ लोग अपना जीवन पूरी तरह बदल लेते हैं, तो कुछ जिस हाल में रहते हैं, वैसे ही रह जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी ट्रेनिंग के दौरान हुआ था। यह बात उन दिनों की है जब मैं अपने गुरु श्री राजेश अग्रवाल से लीडरशिप ट्रेनिंग लेने के साथ-साथ मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में कार्य कर रहा था, लेकिन अपनी ओर से पूरा प्रयास, पूरी मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं हो पा रहा था। मुझे लगने लगा था कि ट्रेनिंग या गुरु की सिखाई बातें कम से कम मेरे लिए तो काम नहीं कर रही हैं।
एक दिन परेशानी बढ़ने पर मैं इसी प्रश्न को लेकर अपने गुरु के पास पहुँचा। उन्होंने मेरी सारी परेशानी और मेरे प्रश्न को पूरे ध्यान से सुना और बड़े शांत भाव के साथ बोले, ‘निर्मल, अक्सर जो लोग मंदिर के पास रहते हैं, वे भगवान से दूर हो जाते हैं।’ उनकी कही बात की गहराई समझने में मुझे ज़रा भी वक्त नहीं लगा। मैंने एक बार फिर पूरी सच्चाई और गहराई के साथ खुद को टटोलना शुरू किया और जल्द ही अपनी समस्या का समाधान गुरु के मार्गदर्शन में खोज लिया। असल में दोस्तों, इस समस्या की मुख्य जड़ सामान्यतः हमारे व्यवहार में निम्न 4 भावों की अधिकता होती है-
1) अभिमान - अपनी सफलता, योग्यता, क्षमता अथवा अपनी किसी भी विशेषता पर अभिमान होना बिलकुल भी ग़लत नहीं है। लेकिन जब इस अभिमान की अधिकता खुद को खुदा मानने पर मजबूर करदे, तब यह आपके सीखने-समझने, जीवन में आगे बढ़ने की क्षमता को प्रभावित करता है और आप किसी भी ट्रेनिंग या सत्संग से लाभ नहीं ले पाते हैं।
2) अहंकार - अभिमान की ही तरह अहंकार भी खुद को सर्वोपरि मानने के भाव से ही उत्पन्न होता है और जब आप खुद को सर्वोपरि मानने लगते हैं तो सत्संग या ट्रेनिंग से कुछ सीख नहीं पाते हैं।
3) अज्ञान - मेरी नज़र में अज्ञानता दो वजह से किसी भी व्यक्ति के अंदर हो सकती है। पहली वजह, वास्तव में ही मूर्ख होना। दूसरी वजह, अहंकार या अभिमान की अधिकता की वजह से किसी नई बात को सीखने के लिए तैयार ना होना। जब आप सीखने के लिए ही तैयार नहीं रहते हैं तो अच्छी से अच्छी ट्रेनिंग या सत्संग भी आपको कुछ सिखा नहीं पाता है।
4) कुतर्क - अपनी गलती को ना स्वीकारने का भाव भी अथवा खुद को हर हाल में सही सिद्ध करने के लिए कुतर्कों का सहारा लेना भी, सामान्यतः सत्संग या ट्रेनिंग के दौरान आपके सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है।
आगे बढ़ने से पहले मैं आपको एक महत्वपूर्ण बात और बताना चाहूँगा, सत्संग या ट्रेनिंग से उपरोक्त 4 श्रेणी के लोगों को तो छोड़िए, किसी को भी कुछ सिखाया नहीं जा सकता है। जी हाँ, सत्संग या ट्रेनिंग किसी के भी जीवन को बदलने की क्षमता नहीं रखती है। सत्संग या ट्रेनिंग की वजह से बदलाव तो सिर्फ़ उसी व्यक्ति के जीवन में आता है, जो खुद को बदलने या कुछ नया सीखने के लिए तैयार होता है। रही बात उपरोक्त चार तरह के व्यवहार वाले लोगों की, तो ये लोग तभी सीखते हैं, जब इन पर मुसीबत या आफ़त आती है। इसीलिए तो शायद कहा गया है, ‘मूर्खाणां औषधम् दंड:’ अर्थात् मूर्खों की औषधी सिर्फ़ दंड है!!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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