Mar 11, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है..

दोस्तों, जीवन में सफलता का आधार ‘किस्मत’ है या ‘मेहनत’, यह एक ऐसा प्रश्न है जो आमतौर पर हम सभी को कभी ना कभी परेशान करता है। मेरी नजर में इसकी मुख्य वजह अपनी स्थिति की तुलना आस-पास के लोगों को मिली सफलता से करना है। यही तुलना याने दूसरों को मिली सफलता को देखना हमें सोचने पर मजबूर करता है कि 'काश, हमारी किस्मत भी ऐसी होती!’ इसके अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी असफलताओं को भी किस्मत के माथे मढ़ते हुए कहते हैं, ‘मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है!’ लेकिन आप ही सोच कर देखिए दोस्तों, क्या किसी भी इंसान को जीवन में बंगला, गाड़ी, अच्छा व्यापार या नौकरी, भौतिक सुख-सुविधाएँ या धन-दौलत सिर्फ़ और सिर्फ़ क़िस्मत से मिल सकती है? मेरी नजर में तो नहीं! मेरा तो बड़ा स्पष्ट मानना है कि जीवन में मिलने वाली सफलता के पीछे अक्सर उस व्यक्ति का समर्पण, कड़ी मेहनत और संघर्ष छुपा रहता है। अर्थात् उस व्यक्ति के द्वारा सही नजरिये के साथ की गई जी तोड़ मेहनत ही उसे सफल बनाती है।
याद रखियेगा! अगर आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए सही नजरिये के साथ, सही दिशा में जी तोड़ मेहनत नहीं कर रहे हैं तो आपके सफल होने की संभावना ना के बराबर ही है। इसलिए ही कहा गया है, ‘किस्मत से हमें उतना ही मिलता है, जितना मेहनत करने वाले छोड़ देते हैं।’ इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई सिर्फ़ अपनी किस्मत पर निर्भर रहेगा तो उसे सिर्फ़ उतना ही मिलेगा जितना मेहनत करने वालो ने छोड़ा है। इसलिए, हमेशा इस बात को अपने मन में रख कर ही जीवन जिएँ कि ‘मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।’
चलिए, इसी बात को मैं आपको जैन आचार्य उमेश मुनि जी द्वारा एक प्रश्न के उत्तर में कहे एक उद्धरण के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। मध्यप्रदेश के एक कस्बे नागदा के निवासी श्री पंकज मारू ने एक बार एक जैन मुनि आचार्य श्री उमेश मुनि जी से प्रश्न किया, ‘महाराज जी, जब अच्छे कर्म का फल और बुरे कर्म का फल दोनों ही निश्चित है तथा बैंक लोन के तरह कर्म का डेबिट या क्रेडिट नहीं होता है तो फिर व्यक्ति अच्छे कर्म ही क्यों करेगा?’ दूसरे शब्दों में कहूँ तो पंकज जानना चाहते थे कि जब भाग्य या किस्मत पहले से ही तय है, तो फिर कर्म या मेहनत करने का क्या फ़ायदा? प्रश्न सुनते ही महाराज जी मुस्कुराए और फिर गंभीर स्वर में बोले, ‘देखो अगर तुम्हारी किस्मत या भाग्य में लिखा है कि इस जन्म में तुम्हें कुत्ता बनना है, तो फिर तुम निश्चित तौर पर कुत्ता बनोगे। लेकिन कुत्ते के रूप में जन्म लेने के बाद तुम्हारे कर्म यह तय करेंगे कि तुम सड़क पर मारे-मारे फिरने वाले कुत्ते बनोगे या फिर एसी कार में घूमने वाले।’
जैन मुनि द्वारा समझाई गई बात हमें क़िस्मत और मेहनत को बेहतर तरीके से समझने के दो सूत्र देती है। पहला, निश्चित तौर पर हमारे जीवन में भाग्य या किस्मत का महत्व है। लेकिन केवल उसके भरोसे रहकर हम जीवन में श्रेष्ठ उपलब्धियां हासिल नहीं कर सकते। दूसरा, कर्म याने मेहनत हमें भाग्य या किस्मत में लिखी बात को बेहतर या बेहतरीन बनाने की शक्ति देती है। इसलिए ही कहा जाता है कि ‘केवल भाग्य या किस्मत के भरोसे बैठ कर श्रेष्ठ और महान उपलब्धियाँ हासिल नहीं की जा सकती है। उसके लिए तो आपको पहले मेहनत करना होगी। याद रखियेगा, खाली भाग्य या किस्मत के भरोसे बैठना नासमझी है।
इसलिए ही हमारे धर्मशास्त्रों में कहा गया है, ‘पुरुषार्थ ही श्रेष्ठ भाग्य का निर्माणकर्ता होता है!’ अर्थात् हमारी मेहनत ही हमारे भाग्य या हमारी किस्मत का निर्माण करती है। इसलिए दोस्तों, अंत में मैं इतना कहना चाहूँगा कि जीवन में सफलता पाने के लिए मेहनत और समर्पण आवश्यक हैं। किस्मत का महत्व है, लेकिन वह मेहनत के बिना अधूरी है। इसलिए, आइए हम सब मिलकर मेहनत को अपना मूल मंत्र बनाएँ और सफलता की ओर अग्रसर हों।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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