Sep 1, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, अगर मैं आपसे पूछूँ कि ''मैं'' और ''हम'' में क्या फर्क है? तो निश्चित तौर पर आप कहेंगे, ‘मैं और हम दोनों ही उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम के अन्तर्गत आते हैं। इनमें केवल इतना अंतर है कि “मैं” का प्रयोग एकवचन के लिए और “हम” का प्रयोग बहुवचन के लिए होता है।’ कह तो आप बिलकुल सही रहे हैं लेकिन सिर्फ़ हिंदी भाषा के आधार पर। लेकिन अगर आप ‘मैं’ और ‘हम’ के व्यापक अंतर को समझना चाहते हैं तो दोस्तों, आपको इसे अपने जीवन से जोड़ कर देखना होगा।
बिलकुल सही सुना साथियों आपने, मेरी नज़र में तो यह दोनों शब्द वाक़ई में इतने व्यापक हैं। बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि दोनों अपने आप में ही पूर्ण जीवन शैलियाँ हैं। वैसे तो आप इस साधारण सी लगने वाली बात की गहराई समझ ही गए होंगे, लेकिन फिर भी एक बार आज हम मिलकर इस विषय पर थोड़ा गहराई से चर्चा कर लेते हैं-
असल में साथियों, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अर्थात् समाज के बीच रहने वाला जीवन है। समाज अर्थात् समूह अर्थात् बहुत सारे लोग और जहाँ बहुत सारे लोग एक साथ हैं, वहाँ ‘मैं’ अकेला कैसे रह सकता है? शायद मैं बहुत ज़्यादा सांकेतिक तरीके से आपसे इस पर चर्चा कर रहा हूँ, जिसे समझना थोड़ा समय लेने वाला कार्य होगा। चलिए, इसे थोड़ा आसान बनाते हैं और सीधे-सीधे मुख्य विषय पर बात करते हैं-
समाज में आजकल एक परिवर्तन बहुत ज़्यादा देखा जा रहा है और वह है एकल परिवार। जहाँ हर कोई सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने फ़ायदे, अपनी प्राथमिकताओं के लिए सोचता है, कार्य करता है और सिर्फ़ उससे ही मतलब रखता है। अर्थात् हम सब ‘मैं और मेरा’, पर केंद्रित होकर रह गए हैं। लेकिन मेरी नज़र में ‘मैं और मेरा’, हम सभी को सिर्फ़ और सिर्फ़ अकेलेपन या ख़ालीपन की ओर ले जा रहा है, जहाँ जीवन के उत्तरार्ध में हमारे पास भौतिक रूप से तो सब होगा लेकिन आत्मिक रूप से हम सब पूर्णतः ख़ाली होंगे।
दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को पूर्णता के साथ जीना चाहते हैं जहाँ आपके लिए भौतिक और आत्मिक सुख दोनों मायने रखता है और आप सफलता को ख़ुशी से जोड़कर देखते हैं तो मैं आपको सुझाव दूँगा कि ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ का महत्व सीखें। मेरा ऐसा कहने की दो मुख्य वजह है, पहली, ‘मैं’, जहाँ हमें लोगों से काट कर अलग करता है, वहीं ‘हम’, हमें लोगों के साथ जुड़ने का मौक़ा देता है। दूसरा, ‘मैं’, जहाँ आपके अंदर अहम का भाव पैदा करता है, वहीं ‘हम’, आपको ज़मीन से जुड़े रहने का मौक़ा देता है।
वैसे आप इस अंतर को प्रकृति से जोड़ कर बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। अगर आप किसी भी पेड़ या पौधे को देखेंगे वह कभी सिर्फ़ अपने विषय में नहीं सोचता उसके फल दूसरे जीवों को जीवन देते हैं, उसकी ख़ुशबू दूसरों के जीवन को ख़ुशनुमा बनाती है। ठीक इसी तरह दोस्तों जब ‘मैं’ को छोड़कर हम, ‘हम ‘ के साथ जीवन जीते हैं तो हम दूसरों के जीवन को बेहतर बनाते-बनाते खुद के जीवन को पूर्णता के स्तर तक जी लेते हैं। उदाहरण के लिए जो दूसरों के लिए फूलों की खेती करता है उसे ख़ुशबू के बीच हमेशा रहने को मिलता है। इसी तरह जो यहाँ मीठे फल दूसरों के लिए उगाता है, उन्हें वे स्वतः मिल जाते हैं।
याद रखिएगा दोस्तों, जिन लोगों ने इस दुनियाँ को स्वर्ग कहा उनके लिए यही प्रकृति उनके अच्छे कार्यों से स्वर्ग बन गई और जिन लोगों ने गलत काम किये उनके लिए यही प्रकृति, यही दुनियाँ नर्क बन गई। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था गहराई से देखोगे तो पाओगे कि ‘मैं’ और ‘हम’ एक जीवनशैली है और अगर आप पूर्णता और ख़ुशी के साथ जीना चाहते हैं तो ‘हम’ के साथ चलें और लोगों के जीवन को बेहतर बनाते-बनाते खुद अपने जीवन को पूर्णता के साथ जिएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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