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‘मोहर’ लगाने से पहले देखें बच्चों कि नज़र से…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Dec 06, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में एक विद्यालय में ‘शिक्षा और कैरियर’ विषय पर, बच्चों से चर्चा करने का मौक़ा मिला। इस सेमिनार या चर्चा का मुख्य उद्देश्य एक अच्छे कैरियर को बनाने में शिक्षा का कितना महत्व होता है, बच्चों को समझाना था। सेमिनार के पश्चात, प्रश्नोत्तर के समय अंतिम बेंच पर बैठा छात्र अचानक से खड़ा हुआ और बोला, ‘सर, आपने जो बातें बताई मैं उससे सहमत नहीं हूँ।’ उस बच्चे के इतना कहते ही कई छात्रों ने बिना मुँह से कुछ कहे, दबी मुस्कुराहट के साथ उसका समर्थन किया। मैंने सभी छात्रों की मूक प्रतिक्रिया को नज़रंदाज़ करते हुए कहा, ‘यह तो बहुत अच्छा है; इसका अर्थ हुआ तुमने मेरी बात को बहुत अच्छे से सुना, उस पर मनन किया और निर्णय लिया कि यह तुम्हारे लिए उपयोगी है या नहीं। मैं तुम्हें एप्रिशिएट करना चाहूँगा। लेकिन क्या मैं जान सकता हूँ तुम्हें ऐसा क्यों लगता है।’


मेरी प्रतिक्रिया सुन उस बच्चे का मनोबल एकदम बढ़ गया। उसे लगा शायद उसने मुझे हरा दिया है या मैं उसकी बातों से सहमत हूँ। वह थोड़े जोश के साथ बोला, ‘सर, इस दुनिया में बहुत से सफल लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी शिक्षा ली ही नहीं है या वे ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं; जैसे, धीरूभाई अंबानी। मुझे लगता है शिक्षा और सफलता का आपस में कोई लेना-देना नहीं है।’ बच्चे का तर्क और प्रश्न पूरा होते ही, मुस्कुराने की बारी मेरी थी। जो शायद बच्चों को चौकानें या कुछ पलों के लिए हतप्रभ करने के लिए काफ़ी थी। मैंने उसी मुस्कुराहट को बरकरार रखते हुए बच्चों से पूछा, ‘आपमें से कौन-कौन इस छात्र की बात से सहमत है?’ मेरा प्रश्न सुनते ही कई छात्रों के हाथ खड़े हो गए। जिसका सीधा-सीधा अर्थ था कि हम सभी लोग बच्चों को यह समझाने में असफल रहे हैं कि शिक्षा, एक अच्छा भविष्य बनाने में उनकी कैसे मदद कर सकती है। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो हमारी आज की शिक्षा बच्चों को हक़ीक़त या जीवन से काफ़ी दूर नज़र आती है।


ख़ैर, विषय से भटकने के स्थान पर मैं अभी मूल प्रश्न पर ही वापस आता हूँ। बच्चों के हाथ खड़ा करते ही मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आपमें से कौन-कौन इस बात को मानता है कि धीरूभाई अंबानी अशिक्षित थे?’ प्रश्न सुनते ही एक बार फिर कई छात्रों ने अपने हाथ उठा दिए। उनकी प्रतिक्रिया पर मुस्कुराते हुए मैंने कहा, ‘मेरे अनुसार तो वे अशिक्षित नहीं पोस्ट ग्रेजुएट या शायद उससे भी ज़्यादा शिक्षित थे।’ मेरे इतना कहते ही बच्चों की प्रश्नवाचक निगाहें मुझे घूरने लगी, जिसे नज़रंदाज़ करते हुए, कुछ पल शांत रहने के बाद मैं बोला, ‘बस अंतर इतना सा है उन्होंने अपनी शिक्षा पब्लिक यूनिवर्सिटी से ली थी।’


कुछ पलों का विराम लेते हुए मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘बिना शिक्षा सफलता की कामना रखना एक कोरी कल्पना है। जीवन में आज तक बिना शिक्षा के कोई भी सफल नहीं हुआ है। इंसानों के पास शिक्षा लेने के दो विकल्प हैं, पहला, औपचारिक शिक्षा प्रणाली अर्थात् फ़ॉर्मल एजुकेशन सिस्टम से शिक्षा लेना और दूसरा, जीवन के अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ना। जहाँ पहली शिक्षा प्रणाली आपको अनावश्यक नकारात्मक अनुभवों, विपरीत परिस्थितियों, असफलताओं से बचाते हुए व्यवस्थित तरीके से सीढ़ी-दर-सीढ़ी ऊपर चढ़ने का मौक़ा देती है। वहीं दूसरी प्रणाली में सफलता अत्यधिक रिस्क लेने के पश्चात जीवन के अनुभवों से सीखने का परिणाम होती है। अगर आप दूसरी तरह की शिक्षा पद्धति, जिसे मैं पब्लिक यूनिवर्सिटी से शिक्षित होना कहता हूँ, के माध्यम से सफल होना चाहते हैं तो आपको अपने अंदर बात, हाथ या लात में से किसी भी एक में विशेष कौशल को विकसित करना होगा। इसके साथ ही आपको हर पल सजग रहते हुए जीवन जीने की कला सीखना होगी जिसकी मदद से आप जीवन में मिलने वाली छोटी-बड़ी, बहुत सारी असफलताओं, ठोकरों से सीखते हुए आगे बढ़ पाओ। अगर आप मेरी बात से सहमत ना हों, तो आपके अनुसार अशिक्षित सफल लोगों की जीवनी पढ़ कर देख लीजिएगा।’


जी हाँ दोस्तों, बिना औपचारिक शिक्षा लिए सफलता जीवन के अनुभवों और बात, हाथ या लात के हुनर में माहिर होकर ही पाई जा सकती है। यहाँ बात का हुनर याने बोलने और कम्यूनिकेशन की कला, हाथ का हुनर याने किसी भी क्षेत्र जैसे कला आदि में विशेष योग्यता विकसित करना है और लात के हुनर का अर्थ किसी खेल में माहिर बनना है।


दोस्तों, आजकल ज़्यादातर लोग मुझसे कहते हैं कि आज के युग के बच्चे सुनते नहीं है; वे अपना ध्यान किसी एक चीज़ पर विशेषतः शिक्षा पर केंद्रित नहीं कर पाते हैं; तो मैं आपसे कहना चाहूँगा कि बच्चे भटके नहीं हैं बल्कि वे तार्किक होने के साथ अपने जीवन से ज़्यादा प्यार करने लगे हैं। अगर आप आज उनसे कोई बात मनवाना चाहते हैं तो आपको आदेश देने के स्थान पर उन्हें तार्किक तरीके से, बारीकी के साथ समझाना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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