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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

यह दुनिया वैसी ही है, जैसे हम हैं…

Aug 24, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, यक़ीन मानियेगा यह दुनिया हमारा प्रतिबिंब ही है। सीधे शब्दों में कहूँ तो आप जैसे हैं, ठीक वैसी ही यह दुनिया है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से विस्तार से बताने का प्रयास करता हूँ। बात कई साल पुरानी है गाँव के बाहरी इलाक़े में एक शीशमहल याने काँच से बना हुआ एक महल था। इस महल के मध्य में एक कमरे में हज़ार से ज्यादा शीशे लगे हुए थे। सामान्यतः यह विशेष कमरा हमेशा बंद रहता था, इसलिए इसके विषय में किसी को कुछ पता नहीं था।


एक दिन एक बच्ची अनायास ही इस कमरे को खुला देख उसमें अंदर चली गई और उसके अंदर खेलने और मस्ती करने लगी। अचानक ही उस बच्ची ने सामने दीवारों की ओर देखा तो वह यह देख कर हैरान रह गई कि उसके साथ हज़ारों बच्चे मस्ती कर रहे हैं। वह ताली बजाती, तो सब बच्चे ताली बजाते। वह नाचती, तो सब बच्चे नाचते। वह खेलती, तो सब बच्चे खेलते। उस बच्ची को यह कमरा दुनिया की सबसे अच्छी जगह लगी।


शीशमहल से बाहर आने के बाद जब उस बच्ची से शीशमहल और उस विशेष कमरे के अनुभव के बारे में पूछा तो उसने कहा, ‘यह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जगह है और मैं यहाँ बार-बार आना चाहूँगी।’ उस बच्ची के जाने के बाद शीशमहल देखने के लिए एक दुखी और उदास आदमी वहाँ पहुँचा। जब वह हज़ार काँच वाले उस विशेष कमरे में पहुँचा तो उसने पाया कि उसके चारों ओर दुखी और उदास लोग हैं। यह देख उसे बहुत बुरा लगा। वह सोचने लगा कि वह तो यहाँ अपना मूड ठीक करने आया था, लेकिन यहाँ का तो माहौल बहुत ही ख़राब है। विचार आते ही उसने अपने हाथ उठाए और उन्हें धक्का दे कर बाहर करने का प्रयास करने लगा। उसके ऐसा करते ही उसे प्रतीत हुआ कि उसे हज़ारों हाथ धक्का मार कर बाहर करने का प्रयास कर रहे हैं। उसने तत्काल वह स्थान छोड़ दिया और शीशमहल से बाहर आ गया।


शीशमहल के बाहर उसकी मुलाक़ात एक व्यक्ति से हुई, जिसने उनसे उनके शीशमहल के अनुभव के बारे में पूछा। इस पर वह सज्जन बोले, ‘मेरी नज़र में तो यह दुनिया की सबसे ख़राब जगह है, जहाँ सिर्फ़ दुखी और उदास लोग रहते हैं। वह इस जगह पर अपने जीवन में कभी दोबारा नहीं आना चाहेगा।’ इतना कहकर वह वहाँ से चला गया।


दोस्तों, उपरोक्त क़िस्से में काँच के कमरे में गई बच्ची और दूसरे शख़्स के अनुभव बिलकुल विपरीत थे। इसका अर्थ हुआ उनके अनुभवों पर किसी भी हाल में काँच के कमरे का प्रभाव नहीं था। उनके अनुभव तो बिलकुल वैसे ही थे, जैसे वे ख़ुद थे। ठीक ऐसी ही तो हमारी ज़िंदगी है। यह ठीक वैसी ही होती है, जैसे हम होते हैं। दूसरे शब्दों में इसी बात को कहा जाए तो यह दुनिया एक कमरा है, जिसमें हजारों शीशे लगे है। यह सभी शीशे हमें वही दिखाते हैं, जो हमारे अंदर भरा होता है। अगर आपको लगता है कि आपके कर्मचारी, आपकी पत्नी, आपके बच्चे या अन्य रिश्तेदार और दोस्त सभी लोग मतलबी हैं, इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि आप उन सब लोगों को अपने हित या अपने फ़ायदे के अनुरूप तोल रहे हैं अर्थात् कहीं ना कहीं आप भी मतलबी है।


वैसे दोस्तों, यही प्रकृति का नियम है। जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है या जो हम इस प्रकृति को देते हैं, प्रकृति हमें वो ही लौटा देती है। अगर आप अपने मन और दिल में लोगों के लिए नकारात्मक भाव रखेंगे तो यह दुनिया निश्चित तौर पर आपको नकारात्मक लगेगी और अगर आप अपने मन और दिल को साफ़ रखोगे तो यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग समान हो जाएगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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