Nov 16, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, सक्षम होना और विनम्र होना मेरी नज़र में दो अलग नहीं अपितु मानवता या इंसानियत के साथ जीवन जीने के लिए पूरक बातें हैं। लेकिन सामान्य जीवन में आजकल लोग सफलता को बल से जोड़ कर देख रहे हैं। उदाहरण के लिए जो जितना सक्षम या बलशाली है वह उतने ज़्यादा नियम तोड़ेगा। जैसे, बीच सड़क पर गाड़ी रोक, परिचितों या अपने पट्ठों के साथ बातें करना, ट्रैफ़िक सिग्नल तोड़ना, लाइन में लगने को अपनी शान के ख़िलाफ़ मानना, हर कार्य को वीआईपी कल्चर के मुताबिक़ सिस्टम को तोड़ प्राथमिकता से करवाना आदि।
इतना ही नहीं साथियों, यह कथित तौर पर शक्तिशाली और सामर्थ्यवान लोग शक्ति, सम्पर्क, सत्ता, पैसे आदि के बल पर नियम तोड़ करवाए गए कार्यों का प्रदर्शन कर खुद को समाज में स्थापित करते हुए भी नज़र आते हैं। अर्थात् आप शक्ति के बल पर नियम विरुद्ध जाकर जितने अधिक कार्य पूर्ण करवाएँगे आप उतने ही बड़े, उतने ही ज़्यादा समर्थ और सम्पन्न माने जाएँगे। और मान लीजिए कभी, किसी कारणवश यह शक्ति, सम्पर्क, सत्ता, पैसे लगाने के बावजूद भी किसी को झुका ना पाए तो यह इनके लिए मान-सम्मान या प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है।
लेकिन मेरा मानना इसके बिलकुल विरुद्ध है। मेरी नज़र में वह बल, क्षमता या सामर्थ्य किसी भी काम का नहीं है जो स्वयं को छोड़कर सबको झुकाने का सामर्थ्य रखता हो। वैसे, सामान्य जीवन में हम इस बल का सबसे ज़्यादा प्रयोग कमजोर या जरूरतमंदों को झुकाने के लिए काम में लेता हुआ देखते हैं। हक़ीक़त में देखा जाए तो बलशाली होने का अर्थ शक्तिशाली और सामर्थ्यवान होने के बाद भी लोगों को झुकाने के बजाए झुक कर जीवन जीना है।
जी हाँ साथियों, बलशाली होने का अर्थ यह क़तई नहीं है कि आप उसके प्रयोग से दूसरों को कितना झुका रहे हो, बल्कि, इसका सीधा सम्बन्ध तो बल होने के बाद भी आप कितना झुक कर कार्य कर रहे हैं से होता है। आप इतिहास उठा कर देख लीजिए जिसने भी बल के साथ विनम्रता को अपनाया है वही महान बना है। यह महान बनने का कालजयी सूत्र है।
सामान्यतः देखा गया है शक्तिशाली और सामर्थ्यवान बनते ही इंसान के अंदर सम्मान का भाव जागृत होता है। जो सही भी है, लेकिन अगर आप जीवन मूल्यों के बिना जीवन जीते हैं तो यह घमंड और अहंकार अर्थात् ‘मैं’ का रूप ले लेता है। इसीलिए जहाँ शक्तिशाली और सामर्थ्यवान लोग होते हैं वहाँ अक्सर विनम्रता का अभाव देखा जाता है। लेकिन अगर आप शक्तिशाली और सामर्थ्यवान होने के बाद भी जीवन मूल्यों के साथ जीवन जी रहे हैं तो यह सम्मान पाने के लिए नहीं बल्कि सम्मान देने के लिए प्रेरित कर, आपको लोगों के दिल में आम से ख़ास बनाता है। इसीलिए साथियों हमें बल का उपयोग स्वयं सम्मान प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के सम्मान की रक्षा करने के लिए करना है। उदाहरण के लिए आप भगवान श्री कृष्ण को देख सकते हैं, वे बलशाली थे पर उन्होंने कभी भी बल का प्रयोग दूसरों को झुकाने या अपनी बात मनवाने के लिए नहीं करा बल्कि वे पूरे समय शीलवान रहे।
आईए दोस्तों, आज से हम भी नम्रता का हरण कर अहंकार को पुष्ट करने वाले सामर्थ्य और शक्ति का त्याग कर विनम्रता के साथ झुक कर जीवन जीना प्रारंभ करते हैं। जिससे दूसरों के आशीर्वाद और स्नेह भरे हाथ हमारे सर तक सहजता से पहुँच सकें। याद रखिएगा, बिना झुके विवाद ही मिल सकता है आशीर्वाद नहीं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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