Feb 27, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कुछ साल पुरानी है शहर के बाहरी इलाक़े में चार ग़रीब मित्र रहा करते थे। वे हर पल पैसों के विषय में ही सोचा करते थे; उसी के बारे में चर्चा किया करते थे। एक बार चारों दोस्त आपस में इसी विषय पर चर्चा करते-करते तुलना में लग गए कि एक ओर तो इस दुनिया में कुछ लोगों के पास ढेर सारा पैसा है और दूसरी ओर हमारे जैसे लाखों लोग हैं जो जीवन की छोटी-छोटी ज़रूरतें भी पैसे के अभाव में पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
उन चारों दोस्तों की चर्चा वहाँ बैठे एक संत भी सुन रहे थे। उन्होंने उन चारों दोस्तों को बुलाया और समझाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘वत्स, इस दुनिया में पैसा सब कुछ नहीं है। तुम लोग अपने समय और क्षमता को ग़लत विचारों और ज़रूरतों की पूर्ति के लिए बर्बाद कर रहे हो।’ संत की बात सुनते ही चारों दोस्त बिफर गए और उन पर पलटवार करते हुए बोले, ‘गुरुजी आप तो संत हैं। आपके लिये पैसा महत्व नहीं रखता होगा लेकिन हमारा जीवन तो पूरी तरह इसी पर निर्भर है। हम चारों निर्धन होने के कारण बहुत दुखी हैं, इसलिए जैसे भी हो, आप तो हमें अमीर बनने का रास्ता बताओ।’
उन चारों को अपने विचार के प्रति कटिबद्ध देख संत को उनपर दया आ गई और उन्होंने चारों को एक-एक बत्ती देते हुए कहा, ‘वत्स, इन बत्तियों को लेकर तुम सामने वाले पहाड़ पर चढ़ जाओ और चोटी पर पहुँचने के बाद इन्हें एक-एक कर नीचे फेंकना। जहाँ भी यह बत्ती गिरेगी वहाँ खोदने पर तुम्हें ख़ज़ाना मिलेगा। लेकिन जैसे ही तुम्हें लगे कि तुम्हें अपनी इच्छा अनुसार जीवन जीने के लिए पर्याप्त ख़ज़ाना मिल गया है। बस वहीं से वापस लौट जाना।’
चारों दोस्तों ने संत को प्रणाम करते हुए धन्यवाद दिया और सामने वाले पहाड़ पर चढ़ गए। वहाँ पहुँच कर उनमें से एक ने अपनी बत्ती फेंकी। इसके पश्चात जहाँ बत्ती गिरी थी उस स्थान पर खोदने पर उन्हें बहुत सारा ताँबा मिला। ताँबे को देखते ही तीन दोस्त मुँह बनाते हुए बोले, ‘यह तो बेकार है। इससे हम अमीर नहीं बन सकते। चलो आगे चलते हैं। लेकिन चौथा मित्र उन तीनों की बातों से सहमत नहीं था। वह बोला, ‘मेरे लिये तो यही पर्याप्त है। अब मैं और आगे नहीं जाऊँगा।’
इतना कहकर वह वहीं रुक गया और बाक़ी तीनों मित्र आगे बढ़ गए। कुछ आगे चलने पर उन तीनों में से एक ने बत्ती को ज़मीन पर फेंका और फिर जिस स्थान पर बत्ती गिरी उस स्थान को खोदा। ज़मीन खोदते ही उन्हें वहाँ बहुत सारी चाँदी मिली। ढेर सारी चाँदी देखते ही वह ख़ुशी के मारे चिल्लाते हुए बोला, ‘भाइयों, इतनी चाँदी से हम सब का जीवन बड़े आराम से कट जाएगा। इसलिए अब हमें और आगे जाने की ज़रूरत नहीं है।’ उसकी बात सुनते ही बाक़ी दोनों मित्र हंसते हुए बोले, ‘पहले ताँबा मिला, फिर चाँदी। क्या भरोसा आगे हमें सोना मिल जाए। तुम्हें चलना हो तो चलो नहीं तो हम दोनों तो अभी और आगे जाएँगे।
इतना कहकर वह दोनों मित्र आगे बढ़ गए। कुछ और आगे चलने पर दोनों में से एक ने अपनी बत्ती को नीचे फेंका और उसके गिरने वाले स्थान को खोदा तो उसे वहाँ ढेर सारा सोना मिला। सोना मिलते ही वह अपने दोस्त से बोला, ‘मित्र, अब आगे जाने की ज़रूरत नहीं है। इतने सोने से हमारी कई पीढ़ियों का जीवन आराम से कट जाएगा। लेकिन अब तक चौथे मित्र के मन में लालच चरम सीमा तक पहुँच चुका था। वह मित्र की बात को नज़रंदाज़ करते हुए बोला, ‘पहले ताँबा, फिर चाँदी, उसके बाद सोना। क्या पता आगे ढेर सारी हीरे-जवाहरात मिल जाएँ। तुम्हें चलना हो तो चलो नहीं तो मैं तो और आगे जाऊँगा।’
तीसरे मित्र ने रुकना बेहतर समझा इसलिए उसे छोड़ कर चौथा साथी अकेला ही आगे बढ़ गया। कुछ ही दूर जाने पर चौथे मित्र को एक इंसान दिखाई दिया जिसके सर पर एक बहुत बड़ा चक्र चल रहा था। उसने चौथे साथी को देखते ही बोला, ‘क्या तुम भी हीरे-जवाहरात की तलाश में यहाँ तक आये हो?’ चौथे मित्र ने तुरंत हाँ में सर हिला दिया और बोला, ‘लेकिन तुम्हारा ऐसा हाल कैसे हो गया?’ अभी वह इंसान कुछ कह पाता उसके पहले ही वह चक्र उसके सिर से उड़ कर इस चौथे मित्र के सिर पर आ गया। चौथा मित्र अब दर्द और पीड़ा से तड़पने लगा। उसे इस हाल में देख वह आदमी बोला, ‘भाई मैं भी तुम्हारी तरह लालच में पड़कर चौथी बत्ती लिए यहाँ तक आ गया था। तब यह चक्र किसी और इंसान को जकड़े बैठा था। जब मैं यहाँ पहुँचा और मैंने उसे अपने लालच और लोभ के विषय में बताया तो इस चक्र ने उसे आज़ाद कर दिया और मुझे जकड़ लिया। आज मैं आज़ाद हूँ और अब तुम…’
दोस्तों, उक्त कहानी मुझे उस वक़्त याद आई जब मैं अपने एक बीमार परिचित को देखने अस्पताल गया। वहाँ वे उस बीमारी की हालत में भी बिलकुल अकेले (पड़े) थे। जब मैंने उनसे इस विषय में पूछा तो वे बोले, ‘क्या बताऊँ यह दुनिया बड़ी मतलबी हो गई है। कोई किसी की फ़िक्र नहीं करता।’ फिर एक पल रुकते हुए बोले, ‘दूसरों को क्या दोष दूँ मेरे बच्चों ने ही आने में असमर्थता जता दी है।’
उस वक़्त तो मैंने उन्हें सांत्वना दी और कुछ देर रुककर वापस आ गया। लेकिन वापस आते समय में सोच रहा था कहीं यह उनकी पूर्व की जीवनशैली का ही परिणाम तो नहीं है। असल में दोस्तों, कुछ लोगों के लिए संबंध, संस्कार, समानता, समाज, स्वास्थ्य आदि सब से ज़्यादा बढ़कर ज़रूरी पैसा होता है। ऐसे लोग पैसा कमाने के लिए इनमें से किसी भी चीज का बलिदान दे सकते हैं। इन लोगों का मानना होता है कि धन से वे सब कुछ अर्जित कर लेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं है दोस्तों। धन एक संसाधन से अधिक कुछ नहीं है। इस जीवन को पूर्णता से जीने के लिए और भी कई बहुमूल्य चीजों की आवश्यकता पड़ती है। याद रखियेगा दोस्तों, लोभ ही सब दुखों की जड़ है। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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