Oct 20, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत अकबर-बीरबल की एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं, जो हमें विषम परिस्थितियों में अपना सर्वश्रेष्ठ देकर, जीवन को बेहतर बनाने, उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने में मदद करती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस कहानी में छिपे संदेश को पहचानकर, उसे अपने जीवन में काम में लेकर, हम जीवन जीने का सही सलीका सीख सकते है। तो चलिए शुरू करते हैं-
बीरबल की अकबर से निकटता और उनके प्रति अकबर के विशेष प्रेम को देख कई दरबारी बीरबल से बहुत चिड़ा करते थे। इन्हीं चिढ़ने वाले लोगों में एक अकबर का प्रिय नाई भी था। वह रोज़ ही किसी ना किसी तरह बीरबल को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र बनाया करता था। एक दिन अपनी इसी नकारात्मक सोच के कारण उसे बीरबल को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने का विचार आया। अगले दिन जब अकबर ने नाई को दाढ़ी बनवाने के लिए बुलाया तो उसने अपनी योजना के तहत उसने कहा, ‘जहाँपनाह, आपको पता है कल रात मैंने सपने में आपके पिता को देखा।’ पिता के विषय में सुनते ही अकबर की आँखों में चमक आ गई और उन्होंने नाई से कहा, ‘जल्दी बताओ पिताजी तुमसे क्या कह रहे थे?’ नाई बोला, ‘जहाँपनाह वैसे तो वे जन्नत में बहुत खुश हैं। लेकिन जन्नत में अकेले रहते-रहते वे काफ़ी परेशान हो गए हैं। वे चाहते हैं कि आप किसी को भेज दें जो उनसे बातचीत कर सके।’ नाई की बात सुन अकबर ने प्रश्नवाचक भाव के साथ कहा, ‘किसी को भेज दें! किसे?’ नाई ने अपनी योजनानुसार बिना एक भी पल गँवाए कहा, ‘मुझे तो लगता है आप बीरबल जी को वहाँ भेज दें, वे बड़े मज़ाक़िया स्वभाव के हैं। उनसे बात कर पिताजी का मन बहल जाएगा और वे ख़ुशी-ख़ुशी जन्नत में रह सकेंगे।
अकबर को नाई का सुझाव बड़ा पसंद आया। उन्होंने तुरंत बीरबल को बुलाया और अपनी मंशा बताते हुए उससे कहा, ‘बीरबल, हमें पता चला है की हमारे अब्बू जन्नत में अकेलेपन की वजह से काफ़ी परेशान रह रहे हैं। मैं चाहता हूँ की तुम स्वर्ग जाकर उनका मन बहलाओ, उनका अकेलापन दूर करो। हम जानते हैं, यह बहुत कठिन है, लेकिन तुमने आज तक हमारी ख़ुशी के लिए कई कुरबानियाँ दी है और हमें लगता है, आज भी तुम हमें निराश नहीं करोगे।’ बादशाह की बात सुनते ही नाई के चेहरे पर कुटिल हंसी आ गई, जिसे देखते ही बीरबल सारा माजरा समझ गए। उन्होंने बिना एक पल भी गँवाएँ हाँ में उत्तर देते हुए कहा, ‘जी जहाँपनाह, लेकिन मुझे तैयारी के लिए एक सप्ताह का समय चाहिए।’ अकबर ने एकदम खुश होते हुए कहा, ‘जब तुम हमारे लिए इतना बड़ा बलिदान दे रहे हो तो हम इतना तो कर ही सकते हैं।’
बीरबल ने उसी वक्त अकबर से आज्ञा ली और घर की ओर चल दिया। घर पहुँचकर बीरबल ने अपने कमरे के बीच में से पास के मैदान में जाने के लिए एक सुरंग खोदना शुरू की। सुरंग बनते ही बीरबल ने उसके ऊपर अपनी चिता इस तरह बनवाई की वे उसमें से सुरक्षित निकल, सुरंग के रास्ते अपने घर पहुँच जाएँ। ठीक एक सप्ताह बाद बीरबल दरबार में पहुंचे और बोले, ‘जहाँपनाह हमारे धर्म और रिवाज के अनुसार मैं अपने घर के समीप अपनी चिता तैयार करके आया हूँ। कृपया मुझे वहीं जलाया जाए जिससे में अपनी आस्थाओं का निर्वहन अंतिम समय तक कर सकूँ और अंत में स्वर्ग पहुँचकर आपके पिता की ख़िदमत कर सकूँ।’
अकबर ने बीरबल की बात तुरंत मान ली और उसी दिन शाम को पूरे सम्मान के साथ उन्हें चिता पर बैठा कर आग लगा दी। बीरबल अपनी योजनानुसार लोगों की आँखों से बचकर उस सुरंग के रास्ते अपने घर पहुँच गया और अगले छः माह तक वहीं छुप कर रहा। इतने समय में बीरबल की दाढ़ी और बाल काफ़ी बढ़ गए थे। एक दिन वह उसी हाल में दरबार में पहुँच गया। बीरबल को देख सभी दरबारियों के साथ अकबर भी चकित रह गए और चौंकते हुए बोले, ‘बीरबल तुम? वापस कैसे आ गए और मेरे पिताजी कैसे हैं?’ बीरबल ने अकबर को प्रणाम करा और बोला, ‘जहाँपनाह, मैंने आपके पिता के साथ बहुत अच्छा समय बिताया और आज उन्हीं की आज्ञा से वापस आया हूँ।’ बीरबल की बात से अकबर की जिज्ञासा काफ़ी बढ़ गई, उसने बीरबल से अगला प्रश्न करा, ‘जब तुम उनकी आज्ञा से आए हो तो निश्चित तौर पर उन्होंने तुम्हारे साथ कोई महत्वपूर्ण संदेश भी भेजा होगा।’ बीरबल ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, ‘जी जहाँपनाह, वैसे तो मेरा हाल देख कर आपको पता चल ही रहा होगा की जन्नत में नाई की कितनी कमी है। आपके पिता चाहते हैं की आप यहाँ से उनके लिए एक अच्छे नाई को भेज दें।’
दोस्तों मुझे नहीं लगता की अब आपको बताने की ज़रूरत है की नाई का क्या हुआ होगा। लेकिन अगर आप इस कहानी को ज़िंदगी से जोड़ कर देखेंगे तो पाएँगे की क्रोध को अपनी कमजोरी की जगह ताक़त बनाते हुए बीरबल ने धैर्य, कठोर निश्चय, उच्च मनोबल, आत्मबल और सकारात्मक सोच को अपना साथी बनाया और विषम परिस्थितियों में भी मनमाफ़िक परिणाम पाया। बीरबल की यही विशेषता अर्थात् विषम परिस्थितियों में अपना सर्वश्रेष्ठ देना, उन्हें अकबर का नवरत्न बनाती था।
वैसे भी दोस्तों, मेरा मानना है कि विषम या विपरीत परिस्थितियों के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना करना सम्भव ही नहीं है, क्यूँकि इन्हीं की वजह से तो आज इंसान खुद को इंसान बना पाया है। अन्यथा वह भी जानवरों के समान वैसा ही होता जैसा वे 5000 वर्ष पहले थे। जी हाँ साथियों, थोड़ा गहराई से सोच कर देखिएगा, जानवर आज भी वैसे ही हैं, जैसे, 5000 साल पहले थे और वे 5000 साल बाद भी ऐसे ही रहेंगे। लेकिन इंसानों ने विषम, विपरीत या चुनौतियों भरे समय में खुद की सुप्त क्षमताओं को पहचान कर, खुद को हमेशा बेहतर बनाया है। इसीलिए तो मैं कहता हूँ, विषम या विपरीत परिस्थितियों और चुनौतियों के दौर में अपनी अनछुई प्रतिभा या क्षमता को पहचानना और उनके प्रयोग से खुद को बेहतर बनाना ही तो इंसान को इंसान बनाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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